[प्रदीप सिंह]। भाजपा विरोधियों का यह आरोप रहा है कि वह देश का संविधान और इतिहास बदलना चाहती है। विरोधी बार-बार ऐसे मुद्दे उठाते रहते हैं जिससे लगे कि उनके आरोप में दम है। विपक्ष का सारा ध्यान संविधान और इतिहास की किताबों, प्रतीकों पर है। उन्हें अब पता चल रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह न केवल देश बदल रहे हैं, बल्कि नया इतिहास भी रच रहे हैं। भाजपा और संघ परिवार के एजेंडे को आज जैसी राष्ट्रीय स्वीकृति पहले कभी नहीं मिली। आज मोदी सरकार के काम का विरोध करने वालों को पहले सफाई देनी पड़ती है कि वह राष्ट्रहित के खिलाफ नहीं है। हालत यह है कि पिछले करीब छह साल से सांप्रदायिकता शब्द राष्ट्रीय विमर्श से गायब हो गया है।

अवैध मुसलमानों के हक में क्यों खड़ा है विपक्ष

मोदी सरकार देश का मानस बदल रही है। इससे भी बड़ी बात यह है कि लोग इस बदलाव के लिए तैयार हैं। वास्तव में यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि वह भारतीय समाज को उसकी जड़ों की ओर वापस ले जा रही है। जो काम आजादी के बाद ही शुरू हो जाना चाहिए था वह अब हो रहा है। इस देश की आत्मा भारतीय संस्कृति में बसती है। पिछले सात दशकों में हिंदू विरोध और धर्म निरपेक्षता पर्यायवाची बन गए थे। नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करने वाले पता नहीं क्यों बांग्लादेश और पाकिस्तान से अवैध रूप से आए मुसलमानों के हक के लिए खड़े हैं?

क्यों बंद किए गए दरवाजे

भाजपा का मानना है कि देश के धर्म के आधार पर हुए बंटवारे का एजेंडा पूरा नहीं हुआ है। यही बात संविधान सभा में सरदार भूपिंदर सिंह मान ने उठाई थी। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं- सिखों को भारतीय नागरिकता देने के लिए 19 जुलाई 1948 को कट ऑफ डेट क्यों तय किया गया है? इसके बाद पाकिस्तान में जिन हिंदुओं-सिखों का उत्पीड़न होगा उनके लिए भारत के दरवाजे क्यों बंद किए गए हैं? पीएस देशमुख ने तो यहां तक कहा कि हिंदू और सिख जहां भी हों, अगर किसी और देश के नागरिक न हों तो उन्हें भारत की नागरिकता मिलनी चाहिए।

पलायन की समस्या की शुरुआत

देश के बंटवारे के बाद पलायन की समस्या की शुरुआत उस समय हुई जब दिसंबर 1949 में भारत पाकिस्तान के आर्थिक संबंध टूट गए। दस लाख लोगों ने दोनों देशों की सीमा पार की। इसके बाद आठ अप्रैल 1950 को नेहरू-लियाकत समझौता हुआ। तय हुआ कि दोनों देश अपने यहां के अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करेंगे। इतना ही नहीं, यह भी कहा गया है कि जो भागकर आए हैं उन्हें लौटकर अपनी संपत्ति बेचने का अधिकार होगा, अपहृत औरतों को लौटाना होगा और जबरन कराया गया धर्म परिवर्तन अमान्य किया जाएगा, लेकिन कुछ ही महीने बाद पाकिस्तान से दस लाख हिंदू भागकर भारत आ गए। तब सरदार पटेल ने पाकिस्तान को धमकी दी कि यह एकतरफा नहीं चल सकता। पाकिस्तान नहीं सुधरा तो उसे नतीजा भुगतना होगा। इसके बाद पलायन का सिलसिला रुका, पर 1950 में सरदार का निधन हो गया। इसके बाद क्या हुआ, यह बताने की जरूरत नहीं है। अतीत से लौटकर वर्तमान में आते हैं।

मोदी-शाह पर लोग भरोसा करने को तैयार

घुसपैठ का मुद्दा हमेशा से भाजपा के एजेंडे पर रहा है, लेकिन उसके समर्थक भी मानते थे कि इस मुद्दे पर भाजपा जो भी कहती है वह एक राजनीतिक दिखावा है। 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त अमित शाह हर चुनावी सभा में कहते थे कि एक-एक घुसपैठिये को चुन-चुन कर बाहर निकालेंगे। तब भी कम ही लोगों को यकीन था कि ऐसा हो सकता है, लेकिन फिर से चुनकर आने पर तीन तलाक, कश्मीर में अनुच्छेद 370 एवं 35-ए पर सरकार के कदम के बाद मोदी-शाह की विश्वसनीयता ऐसी हो गई है कि वे जो भी वादा करेंगे, लोग भरोसा करने को तैयार हो जाएंगे।

नागरिकता बिल पर लोकसभा में बहस के दौरान गृह मंत्री ने एक बार नहीं कई बार कहा कि कैब कोई बहाना नहीं है, एनआरसी (नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर) लाने का। उन्होंने कहा कि पूरे देश में एनआरसी आएगा और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यह काम पूरा कर लिया जाएगा। यह करने का हमें जनादेश प्राप्त है।

राजनीतिक हित-अहित की चिंता नहीं करती भाजपा

पिछले साढ़े पांच साल में इस सरकार ने नोटबंदी, जीएसटी, सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, आइबीसी, रेरा, तीन तलाक, जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद 370 एवं 35-ए हटाने और अब नागरिकता संशोधन विधेयक जैसे बहुत से कदम उठाए हैं। इनके जरिये सरकार ने एक संदेश दिया है कि वह जिन बातों को देशहित में समझती है उसे करने के लिए वह राजनीतिक हित-अहित की चिंता नहीं करती। सरकार और भाजपा पर आरोप है कि नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी भारत को हिंदू राष्ट्र या धुर दक्षिणपंथ की ओर ले जा रहा है। वास्तविकता इसके इतर है।

दरअसल देश उन नव औपनिवेशिक कुलीनों के प्रभाव से मुक्त हो रहा है, जिन्होंने देशवासियों को भारतीय संस्कृति से दूर रखने का षडयंत्र किया। इस वर्ग को अपने अस्तित्व पर खतरा नजर आ रहा है। इसकी अभिव्यक्ति कभी कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों, कभी एनजीओ, कभी मुट्ठीभर बुद्धिजीवियों की अपीलों और सुप्रीम कोर्ट में कथित जनहित याचिकाओं के रूप में सामने आती रहती है।

कांग्रेस सरकार ने करवाया अमित शाह का परिचय

मामला कश्मीर में बदलाव का हो या नागरिकता संशोधन विधेयक का, अमित शाह के जिक्र के बिना पूरी नहीं हो सकती। अमित शाह से देश के लोगों का पहला परिचय कांग्रेस सरकार ने करवाया, एक झूठे मामले फंसाकर। उनका दूसरा परिचय 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनने पर हुआ। उनका तीसरा परिचय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में हुआ। उनका चौथा परिचय देश के गृह मंत्री के रूप में हुआ। उन्होंने प्रत्येक अवसर पर लोगों को चौंकाया। उनकी बेबाकी से तो लोग परिचित हो चुके थे, लेकिन लोकसभा में आने के बाद एक सांसद के रूप में उनकी क्षमता हैरान करने वाली है।

पहले अनुच्छेद 370 और फिर नागरिकता संशोधन विधेयक पर वे जिस स्पष्टता, आत्मविश्वास, दृढ़ता और तथ्यों के आधार पर बोले वैसा कब कौन गृहमंत्री बोला था, याद करना कठिन है। उद्योगपति राहुल बजाज ने एक कार्यक्रम में अमित शाह से पूछा था कि लोग उनसे डरते क्यों हैं? वास्तविकता यह है कि सच और खरी बात कहने वालों से लोग अक्सर डरते ही हैं।

नागरिकता विधेयक के कानून बनने, एनआरसी लागू होने और अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के बहुसंख्यक समाज के मन में अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक होने का दंश निकल रहा है। इनका विरोध करने वालों के एक बात समझ लेनी चाहिए कि इस देश में बहुसंख्यक समाज की भावनाओं की उपेक्षा करके धर्म निरपेक्ष समाज की स्थापना नहीं हो सकती।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं स्तंभकार हैं)