कांग्रेस में विफलता के कगार में पहुंच गई थी मनरेगा, मोदी सरकार ने बनाया पारदर्शी और विश्वसनीय
मोदी सरकार के कार्यकाल में मनरेगा को पारदर्शी और विश्वसनीय बनाया गया है जबकि इससे पूर्व यह योजना विफलता की कगार पर पहुंच गई थी।
[नरेंद्र सिंह तोमर]। यह किसी से छिपा नहीं कि सोनिया गांधी की संप्रग सरकार का जहां भी हाथ पड़ा, वह चौपट ही हो गया। जिस किसी भी चीज को उसने छुआ, उसमें या तो भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया या वह पूरी तरह बेअसर होकर गई या फिर उसमें दोनों ही दोष आ गए। मनरेगा में भी ऐसा ही हुआ। 2014 में संप्रग के भ्रष्ट शासन मॉडल की तरह उसके द्वारा रचित मनरेगा का स्वरूप भी समाप्त हो गया। उस समय से लगातार सुधार प्रक्रिया को बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे रचनात्मक, प्रभावकारी, श्रमिकों के लिए अधिक अनुकूल बनाकर उसका मौलिक स्वरूप पूरी तरह बदल दिया है। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की यह प्रवृत्ति शुरू से रही है कि वह सूरज उगने तक का श्रेय लेने से नहीं चूकते।
कांग्रेस ने मोदी सरकार पर उठाए थे सवाल
जब भारत ने शत-प्रतिशत ग्रामीण स्वच्छता कवरेज का स्तर प्राप्त कर लिया तो कांग्रेस के कुछ लोगों ने कुतर्क करते हुए कहा कि मोदी सरकार शौचालयों का निर्माण करने वाली कोई पहली सरकार नहीं है। अगर कांग्रेस सरकार ने इस दिशा में कुछ भी कार्य किया होता तो उस समय देश में केवल 39 प्रतिशत ही ग्रामीण स्वच्छता कवरेज नहीं होता। इसका श्रेय मोदी सरकार को जाता है कि स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से उसने केवल पांच साल के भीतर ग्रामीण स्वच्छता कवरेज को शत प्रतिशत पर लाकर खड़ा कर दिया। उपेक्षा की ऐसी ही गाथा विद्युतीकरण, गांवों में ऑप्टिक फाइबर लाइनें बिछाने और संप्रग सरकार द्वारा आधी-अधूरी या बेजान छोड़ी गई अन्य परियोजनाओं की भी है।
मनरेगा का पारदर्शी और विश्वसनीय बनाया गया
मोदी सरकार के पिछले छह साल के कार्यकाल के दौरान श्रंखलाबद्ध सुधारों के जरिये मनरेगा को पारदर्शी और विश्वसनीय बनाया गया है, जबकि इससे पूर्व यह योजना विफलता की कगार पर पहुंच गई थी। मनरेगा के कार्यान्वयन के बारे में चल रही बहस को नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी की हाल की उस स्वीकारोक्ति के नजरिये से देखा जाना चाहिए कि किस तरह भारी खामियों को दूर किया गया है और शत-प्रतिशत प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के एजेंडे को जोरदार तरीके से आगे बढ़ाया गया है। इससे सुनिश्चित हुआ कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के 100 में से वे 85 पैसे, जो भ्रष्ट तत्वों की जेब में चले जाते थे, अब गरीबों के हाथों में पहुंच रहे हैं।
अब लगभग 8.46 करोड़ खातों को आधार के साथ जोड़ा जा चुका है, जबकि जनवरी 2014 में यह संख्या केवल 76 लाख थी। इसमें 11 गुनी वृद्धि हुई है। 2013-14 में इलेक्ट्रॉनिक निधि प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से केवल 37 प्रतिशत मजदूरी का भुगतान किया जा रहा था, जबकि वर्तमान में 99 प्रतिशत मजदूरी का भुगतान इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली के जरिये किया जा रहा है।
60:40 का अनुपात जिला पंचायत स्तर पर किया जा रहा लागू
सोनिया गांधी उस पार्टी की मुखिया थीं, जिसकी सरकार केवल 34 प्रतिशत मनरेगा भुगतान कर पाई, फिर भी वह मोदी सरकार को सलाह देने का काम कर रही हैं। बेहतर नियोजन और स्थाई परिसंपत्तियों का निर्माण सुनिश्चित करने के लिए अब मजदूरी सामग्री का 60:40 का अनुपात ग्राम पंचायत स्तर पर नहीं, जिला पंचायत स्तर पर लागू किया जा रहा है। जल-संरक्षण गतिविधियों और स्थाई कार्यों में निधियों के उपयोग पर बल दिया जा रहा है। लगभग 67 प्रतिशत निधियों का उपयोग प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में हो रहा है। 2018 में एक अध्ययन में कहा गया कि मनरेगा के तहत किए गए केवल 0.5 प्रतिशत एनआरएम कार्य ही असंतोषजनक पाए गए।
कांग्रेस को केवल अव्यवस्थि माहौल ही पसंद
सोनिया गांधी ने हाल में एक लेख के माध्यम से बताया कि स्वच्छ भारत और पीएम आवास योजना प्रधानमंत्री जी की महत्वाकांक्षी एवं प्रिय योजनाएं हैं। इस प्रकार वे जाने-अनजाने इससे सहमत हैं कि प्रधानमंत्री का सर्वाधिक ध्यान स्वच्छता और गरीबों के लिए आवास पर है। वे इस बात का रोना रोती हैं कि मनरेगा को इन योजनाओं से जोड़ा जा रहा है। लगता है कि कांग्रेस को केवल अव्यवस्थित माहौल ही पसंद है।
उसे पता होना चाहिए कि व्यक्तिगत लाभार्थियों से जुड़े कार्यों पर जोर देना स्थाई आजीविका के सृजन से जुड़ी रणनीति का हिस्सा है। 2014-15 में ऐसे कार्यों की मात्रा कुल गतिविधियों की केवल 21.4 प्रतिशत थी, जबकि मौजूदा समय में यह 67 प्रतिशत है। मनरेगा के फंड का उपयोग प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण में होने से गरीब भूमिहीन मजदूरों के लिए महत्वपूर्ण मजदूरीआधारित रोजगार उपलब्ध हुआ है और इससे उन्हें आश्रय और गरिमा प्रदान करने में मदद मिली है।
मोदी सरकार में वार्षिक कार्यों का औसत 72 लाख
2013-14 में पूरे किए गए कार्यों की औसत संख्या 25-30 लाख थी। पिछले चार वर्षों के दौरान पूरे किए गए वार्षिक कार्यों का औसत 72 लाख है। इससे साफ है कि उत्पादकता बढ़कर दोगुनी हो गई है। 20.18 लाख से अधिक कृषि-तालाब, 11.68 लाख वर्मी/नैडेप गड्ढ़े, 6.12 लाख सोक पिट, 6.08 लाख कुंए, 1.65 लाख बकरी शेड और मवेशियों के लिए 6.91 लाख शेड का निर्माण वर्ष 2015-16 से 2020-21 के दौरान किया गया। इससे करोड़ों लोगों को काम उपलब्ध कराने में मदद मिली। साथ ही गांवों में स्थाई परिसंपत्तियों के निर्माण से अन्य व्यक्तियों को भी लाभ हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी ने मनरेगा के लिए बजट प्रावधान 40 हजार करोड़ रुपये बढ़ा दिया है। इससे मनरेगा का कुल बजट आवंटन बढ़कर एक लाख एक हजार पांच सौ करोड़ रुपये हो गया है, जो 2013-14 की तुलना में तीन गुना है। इस तरह उन्होंने इसे न केवल दोगुना उत्पादक बनाया है, बल्कि इस परिष्कृत योजना के लिए ज्यादा से ज्यादा धनराशि भी दी है।
समग्र सुधार की दी गई सही दिशा
संप्रग सरकार के अंतर्गत लूट-खसोट के युग से लेकर राजग सरकार की उत्पादकता के वर्तमान युग तक इस योजना में समग्र सुधार कर सही दिशा दी गई है। कांग्रेस की इकलौती धरोहर यही है कि अच्छी पहल की आलोचना करो, उनमें खराबी पैदा करो। यही कारण है कि देश की जनता ने कांग्रेस को दस प्रतिशत से भी कम सांसदों तक ही सिमटाकर रख दिया। सोनिया गांधी के एक सहयोगी ने कभी कहा था कि अब कोई सल्तनत तो बची ही नहीं है, लेकिन कांग्रेस पार्टी ऐसा प्रदर्शन कर रही है, मानो वही सुल्तान हो और देश भी उसी की बदौलत चल रहा हो।
(लेखक केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री हैं)