[ अनूप मणि त्रिपाठी ]: अचानक थाने पहुंचे बापू को देखकर सकपकाए दरोगा जी ने पूछा कि बताइए बापू कैसे आना हुआ? बापू ने जवाब में कहा, ‘मेरी लाठी नहीं मिल रही।’

थाने पहुंचकर दरोगा से कहा, मेरी लाठी चोरी हो गई

‘लाठी!’ दरोगा उचक कर बोला। ‘हां, मेरी लाठी चोरी हो गई!’ बापू ने पानी का गिलास नीचे रखते हुए कहा। यह सुनकर दरोगा हंसा। उसके साथ-साथ दूसरे सिपाही भी हंसे, पर बापू शांत बैठे रहे। 

दरोगा ने कहाबापू यहां लोग बड़ी-बड़ी वारदातों की शिकायत करनेआते हैं लाठी की नहीं

‘क्या बापू! यहां लोग कितनी बड़ी-बड़ी वारदातों की शिकायत के लिए आते हैं और आप लाठी लेकर आ गए।’ दरोगा अपनी हंसी को काबू करते हुए बोला। ‘लेकर कहां आया हूं भाई’ बापू ने अपने हिसाब से सफाई दी।

दरोगा बोला- आप घर जाइए, लाठी मिलते ही आपको सूचित किया जाएगा

बापू का यह कहना ही था कि दरोगा की हंसी छूट गई, पर बापू का लिहाज करते हए हंसी को दबाते हुए बोला, ‘आप घर जाइए! आपकी लाठी मिलते ही आपको सूचित किया जाएगा।’

बापू बोले, आपने मेरी रपट नहीं लिखी

‘मगर आपने मेरी रपट नहीं लिखी।’ बापू बोले। ‘आपने कह दिया, समझो हो गई! अब आप घर जाएं।’ दरोगा ने मुस्करा कर कहा। ‘यह बताइए। आप मेरी लाठी को पहचानेंगे कैसे।’ ‘पहचानना क्या! सभी लाठी एक सी तो होती हैं।’ दरोगा ने जवाब दिया।

बापू बोले, सभी लाठी एक सी नहीं होतीं

‘न, सभी लाठी एक सी नहीं होतीं।’ बापू दो टूक बोले। बापू ने एक फोटो मेज पर रख दी। ‘अच्छा, अब आप जाइए।’ फोटो देखकर दरोगा बोला। बापू उठकर जाने लगे। बापू के जाने के बाद दरोगा कुछ सोच में पड़ गया।

पत्थर, बम और गोलियां चलाने वालों की तलाश करना मुश्किल हो रही, लाठी कहां से ढूंढें

‘सर, यहां पहले ही तमाम मुसीबतें हमारे पीछे पड़ी हैं। धरना-प्रदर्शन, जाम, हिंसा। जब पत्थर, बम और गोलियां चलाने वालों की तलाश करना मुश्किल हो रहा है तो इनकी लाठी कहां से ढूंढें।’ एक सिपाही ने दुखड़ा सुनाया। ‘हम्म’ दरोगा थाने में इधर-उधर देखने लगा। ‘अरे यार! कोई भी लाठी दे दो जो इससे मिलती-जुलती हो।’ दरोगा ने यह कहते हुए वह फोटो सब इंस्पेक्टर के सामने बढ़ा दी। संयोग से थाने में एक लाठी फोटो से मिलती-जुलती पाई गई।

सर, ये रही बापू की लाठी

‘सर, ये रही बापू की लाठी!’ लाठी देखकर दरोगा खुशी से उछल पड़ा। फिर गंभीर होकर पूछा, ‘अगर बापू पहचान गए तो!’ ‘आपको अलग लग रही है?’ सब इंस्पेक्टर यानी एसआइ ने पूछा। ‘न! कतई नहीं!’ दरोगा अपनी खुशी को छुपाते हुए बोला। ‘अरे, सर सवाल ही नहीं उठता! इस उम्र में नजरें इतनी तेज नहीं होतीं।’ सब इंस्पेक्टर ने बहुत विश्वास के साथ कहा।

वर्क लोड के कारण दरोगा तो नहीं जा सके, बापू खुद ही थाने आ गए

दरोगा ने राहत की सांस ली। उसने तय किया वह खुद बापू के पास लाठी लेकर जाएगा, मगर वर्क लोड के कारण ऐसा कर न सका। तीसरे दिन बापू खुद ही थाने आ गए। ‘आइए बापू।’ दरोगा ने बापू का अभिवादन किया। फिर बापू के सामने लाठी हाजिर थी। ‘यह लीजिए आप की लाठी। बड़ी मेहनत से मिली।’ दरोगा लाठी बापू के हाथ मे थमाते हुए बोला। 

लाठी देखते ही बापू कहने लगे, यह मेरी लाठी नहीं है

लाठी देखते ही बापू उठ खड़े हुए। ‘यह मेरी लाठी नहीं है।’ ‘आप कैसे कह सकते हैं कि यह आप की लाठी नहीं है! दरोगा ने पूछा।

जिसमें खून लगा हो, वह मेरी लाठी हो ही नहीं सकती, अहिंंसा की लाठी है

‘जिसमें खून लगा हो, वह मेरी लाठी हो ही नहीं सकती।’ मेरी लाठी तो भरोसे की लाठी है-अहिंंसा की लाठी है’, यह कहकर बापू उठे और जाने लगे।

आज के जमाने में भरोसे की लाठी और अहिंंसा की लाठी मिलेगी कहां

‘खून का क्या है! ’ एसआइ उत्साहपूर्वक बोला। पर बापू बगैर कुछ कहे चले गए। ‘देने से पहले पोंछ तो लेते।’ बापू के जाने के बाद दरोगा ने सिपाही से कहा। ‘सर ये लाठीचार्ज के बाद ही आ गए। टाइम ही नहीं मिला। और अब तो मुझे समझ नहीं आ रहा कि आखिर आज के जमाने में हम भरोसे की लाठी और अहिंंसा की लाठी को खोजेंगे कहां और वह मिलेगी कहां।’

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार है ]