[रिजवान अंसारी]। हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने ‘राष्ट्रीय दुग्ध सुरक्षा तथा गुणवत्ता सर्वेक्षण 2018’ रिपोर्ट जारी की। सर्वेक्षण में दुग्ध को काफी हद तक सुरक्षित पाया गया है। रिपोर्ट की मानें तो परीक्षण किए गए दुग्ध के नमूनों में से लगभग 93 फीसद नमूनों को उपभोग के लिए सुरक्षित पाया गया और बाकी सात फीसद नमूनों में एफ्लाटॉक्सिन-एम1, एंटीबायोटिक्स जैसे दूषित पदार्थों की उपस्थिति पाई गई।

दरअसल संस्थान ने पूरे देश से 6,432 सैंपल इकट्ठा किए थे। ये सैंपल देश के 1,103 ऐसे शहरों और कस्बों से लिए गए थे जिनकी आबादी कम से कम 50 हजार है। इन नमूनों में से 456 असुरक्षित पाए गए। 77 नमूने ऐसे थे जिनमें एंटीबायोटिक्स की मात्रा स्वीकृत स्तर से ज्यादा थी। इनमें 12 सैंपल ऐसे भी थे जिनमें यूरिया, हाइड्रोजन पेरॉक्साइड, डिटर्जेंट की मिलावट पाई गई थी। इन 12 नमूनों में से 9 तेलंगाना, दो मध्य प्रदेश और एक केरल से थे।

41 फीसद मानकों पर खरे नहीं उतरेे  

यहां पर गौर करने वाली बात यह भी है कि सुरक्षित नमूनों में 41 फीसद ऐसे भी हैं जो भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के मानकों पर पूरे खरे नहीं उतरते। कहने का अर्थ है कि जिन चार पैरामीटर पर नमूनों की परख हुई है उनमें क्वॉलिटी पैरामीटरों में कुछ न कुछ कमी है। हालांकि प्राधिकरण ने साफ किया है कि बिना डरे इनका उपभोग किया जा सकता है।

एफ्लाटॉक्सिन-एम1 नामक घातक कैंसरकारी तत्व पाया 

रिपोर्ट की मानें तो तमिलनाडु, केरल और दिल्ली ऐसे तीन राज्य हैं जहां के दूध सैंपलों में सबसे ज्यादा एफ्लाटॉक्सिन-एम1 नामक घातक कैंसरकारी तत्व पाया गया है जो दुधारू पशुओं को दिए जाने वाले चारे में मिला होता है। इनमें तमिलनाडु के 551 में से 88 सैंपल इस समस्या से ग्रसित पाए गए हैं। कच्चे दूध के बरक्स प्रसंस्कृत दूध में एफ्लाटॉक्सिन की मात्रा ज्यादा पाई गई है। ये कुछ खास किस्म के फफूंद से पैदा होना वाला जहरीला पदार्थ है जो मक्का, मूंगफली, कपास आदि फसलों में मिलता है। इसी तरह एंटीबायोटिक्स के मामले में तीन राज्य-मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश शीर्ष पर हैं। इन तीनों राज्यों में कुल 39 सैंपलों में एंटीबायोटिक्स तय स्तर से ज्यादा पाए गए।

दूध में मिलावट की सबसे अधिक समस्या उत्तर भारत में

इन तमाम तथ्यों पर गौर करने पर हम पाते हैं कि सभी प्रमाण दुग्ध से जुड़ी दो धारणाओं के उलट हैं। खाद्य सुरक्षा नियंत्रक का हमेशा ही मानना रहा है कि दूध में मिलावट की सबसे अधिक समस्या उत्तर भारत के राज्यों में पाई जाती है। 2017 में हुए एक सर्वे में पाया गया था कि नकली दूध के मामले में उत्तर भारत के राज्य अव्वल हैं। लेकिन इस ताजा सर्वे में सबसे खराब सैंपल वाले पहले तीन राज्यों में दो-तमिलनाडु और केरल दक्षिण भारत के ही हैं। लिहाजा यह सर्वे इस मिथक को तोड़ने में कामयाब रहा है कि उत्तर भारत में मिलावट की सबसे अधिक समस्या है।

देशभर में 7 फीसद दूध व डेयरी उत्पाद उपभोग के योग्य नहीं

दूसरा मिथक यह रहा है कि भारत में सुरक्षित और उपभोग योग्य दुग्ध विरले ही पाए जाते हैं। एक ऐसी छवि बनी हुई है जिसमें दूध और डेयरी उत्पादों को संदेह की नजर से देखा जाता है। लेकिन इस ताजा सर्वे ने यह साफ कर दिया है कि महज देशभर में सात फीसद ही दूध और डेयरी उत्पाद ऐसे हैं जो उपभोग के योग्य नहीं हैं। हालांकि दिसंबर 2018 में भी लोकसभा में एक सवाल के जवाब में तत्कालीन कृषि एवं कल्याण राज्य मंत्री कृष्णा राज ने यह साफ किया था कि मिलावटी दूध के मामलों में लगातार कमी आ रही है। उन्होंने साफ किया कि खराब फार्म से आए नमूने ही प्रदूषित पाए गए हैं। जाहिर है इस नए सर्वे ने इन दो मिथकों को तोड़ने का काम किया है।

दुग्ध से जुड़ा मसला हमारी सेहत से जुड़ा

यकीनन इस सर्वे से डेयरी उद्योग को बड़ी राहत मिलेगी और दूध के कारोबार से जुड़े लोगों को लाभ भी पहुंचेगा। लेकिन फिर भी कई मोर्चों पर काम किए जाने की जरूरत है। यह कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि दुग्ध से जुड़ा मसला हमारी सेहत से जुड़ा है। दुग्ध के नमूनों में मिलने वाले एफ्लाटॉक्सिन-एम1, माल्टोडेक्सट्रिन और चीनी जैसे दूषित पदार्थों की संभावित मात्रा से अधिक उपस्थिति चिंता का विषय होना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि दूध या दूध से बनने वाले पदार्थों की जांच सालाना के बजाय तीन या छह महीनों के अंतराल पर कराई जाए।

खाद्य व्यवस्था की तिमाही जांच क्यों नहीं?

समझने की जरूरत है कि यह हमारी सेहत से जुड़ी बात है और इसमें ज्यादा अंतराल पर्यावरणीय समस्या और विभिन्न तरह की बीमारियों वाले माहौल में एक बड़े खतरे का कारण बन सकता है। एफ्लाटॉक्सिन-एम1, यूरिया, डिटर्जेंट जैसे कैंसर को जन्म देने वाले पदार्थों की मिलावट को हल्के में नहीं लिया जा सकता। समझना होगा कि जब अर्थव्यवस्था की तिमाही जांच की जा सकती है तो खाद्य व्यवस्था की क्यों नहीं। जबकि यह हमारी जिंदगी से जुड़ा मसला है। इसके अलावा दूध उत्पादन के सबसे निचले चरण के लोग यानी साधारण किसान और पशुपालकों के लिए सही व्यवस्था करने की जरूरत है।

डेयरियों पर भी लगाम कसने की जरूरत

सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि पशुओं के चारे, जरूरी उपकरण, आर्थिक मदद आदि को सुनिश्चित किया जाए। इस तरह की मदद से किसानों की आमदनी में इजाफ होगा और तभी दूध में मिलावट की संभावना पर लगाम लग सकेगी। इससे इतर देखें तो देश में संगठित डेयरी उद्योग के समांतर विशाल असंगठित सेक्टर एक चिंता का विषय है। गली-मोहल्लों में नगर निगमों और जिला प्रशासनों की नाक के नीचे ऐसी डेयरियां धड़ल्ले से चल रही हैं जहां प्राधिकरण के मानक तो बहुत दूर की बात हैं बुनियादी साफ सफाई की ओर भी कम ही ध्यान दिया जाता है। फिर ऐसी डेयरियों पर भी लगाम कसने की जरूरत है।

हालांकि सरकार ने परीक्षण और सैंपलिंग से जुड़ी एक योजना को भी अगले साल से शुरू किए जाने का प्रस्ताव रखा है। प्राधिकरण की मानें तो मिलावट की जांच के लिए एक विशेष परीक्षण किट भी विकसित किया गया है, लेकिन इस किट का बड़े पैमाने पर उत्पादन और वितरण अभी नहीं किया जा सका है। कुल मिलाकर दूध को अभी सौ फीसद सुरक्षित बनाने की दिशा में संजीदगी से पहल करने की जरूरत है।

[अध्येता, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली]