लालजी जायसवाल। E-courts In India वर्तमान दौर में मुकदमों की सुनवाई भी प्रभावित होती दिख रही है। वैसे तो पूरे देश में मुकदमों की सुनवाई देशव्यापी लॉकडाउन के पहले से ही लगभग रुकी हुई थी, अदालतें केवल बहुत जरूरी मामलों को ही निपटा रही थीं। फिर भी भौतिक रूप से मुकदमों का दाखिल होना लॉकडाउन के बाद प्रभावित हुआ है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट समेत बहुत सी अदालतों में ई-फाइलिंग की सुविधा है यानी बंदी के दौरान भी लगातार मुकदमे दाखिल हो रहे हैं।

इसी वजह से उच्चतम न्यायालय ने सभी आपात मामलों की सुनवाई के लिए वर्चुअल कोर्ट की शुरुआत करने का निर्देश दिया है तथा देश भर की सभी निचली अदालतों में ऑनलाइन सुनवाई करने का भी आदेश दिया है। इसके लिए न्यायालयों में वर्चुअल कोर्ट की स्थापना की जाएगी और अधिवक्ता मामलों की सुनवाई इसी के माध्यम से कर सकेंगे। इसके लिए एक एप जारी किया गया है जिससे अधिवक्ता घर बैठे ही अपने आवेदन टाइप करके भेज सकते हैं। उनके आवेदन को न्यायालय द्वारा स्वीकृत कर सीधे तौर पर अधिवक्ता के साथ जुड़कर आगे की कार्रवाई की जा सकती है।

ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी, क्योंकि धीमी न्याय व्यवस्था का समाज पर बहुत बुरा असर पड़ता है। ऐसे में कोरोना जनित आपदा ने भारत के न्याय तंत्र में माकूल परिवर्तन करने पर विवश कर दिया है, जिसकी वजह से आज त्वरित न्याय की परिकल्पना साकार होती दिख रही है। अगर लंबित पड़े मामलों पर नजर डाला जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि पहले न्यायिक प्रक्रिया का पहिया दो कारणों से पूरी तरह जाम था। न्याय व्यवस्था में सरकार का कम बजट और न्यायालय में खाली पड़े पदों पर भर्ती न होना, लेकिन कोरोना महामारी ने जाम पहिये में ग्रीस और तेल डालने का काम किया है।

हमारे देश के न्यायालयों में लगभग तीन करोड़ मामले आज भी लंबित हैं। ऐसे में ऑनलाइन सुनवाई से निश्चित तौर पर मामलों के निपटान दिनों में कटौती हो सकेगी और न्याय प्रक्रिया त्वरित और जनोन्मुखी बनेगी। प्राय: देखा जाता है कि अलग-अलग न्यायालयों के बीच मिलने वाले डाटा में समानता नहीं होती है। उनमें लिखे जाने वाले संक्षिप्त रूप में वर्गीकरण और प्रारूप में भिन्नता के कारण दो अलग-अलग न्यायालयों के बीच डाटा की तुलना करना एक पेचीदा और खर्चीला काम है। हालांकि अब न्यायालयों को कंप्यूटरीकरण करने पर काफी जोर दिया जा रहा है। महामारी से मुक्त होने के बाद भारत न्यायिक कार्य को तीव्रता से आगे बढ़ा सकता है।

 

ऑनलाइन सुनवाई के फायदे : ऑनलाइन सुनवाई के फायदों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। भारत में अदालतों में सालाना करीब एक करोड़ पन्नों का इस्तेमाल किया जाता है। ऑनलाइन सुनवाई होने से कागज के इस्तेमाल में बहुत कमी आएगी। इससे वृक्षों का संरक्षण होगा। साथ ही अदालतों में इमारत, स्टाफ, ढांचागत

सुरक्षा, परिवहन आदि पर लागत भी कम होगी। सरकारी बजट की बचत होगी। वैसे देश में वर्चुअल कोर्ट को स्थापित करने में कुछ चुनौतियां भी हैं जैसे सूचना एवं संचार तकनीक से संबंधित संरचना का पर्याप्त विकास नहीं है जिससे पिछड़े हुए क्षेत्रों तक इंटरनेट की अच्छी पहुंच नहीं बन पाती है। साथ ही आज भी अधिकांश जनता अशिक्षित और तकनीक के प्रति असहज है तथा वर्तमान व्यवस्था में वीडियो-कांफ्रेंसिंग द्वारा सुनवाई में सबसे बड़ी समस्या साक्ष्यों की स्वीकार्यता और उनकी प्रमाणिकता जैसी महत्वपूर्ण कानूनी और व्यावहारिक समस्याओं की है। गवाहों की पहचान एवं सुनवाई की गोपनीयता जैसी चुनौतियां भी सामने आ सकती हैं। हालांकि यदि दोनों पक्षों को आमने-सामने खड़े करके तर्क-वितर्क हों तो वो ज्यादा प्रभावी होते हैं। साथ ही किसी अपराध और उसकी प्रवृत्ति को जानने के बहुत से पक्ष होते हैं जैसे मानसिक पक्ष या अपराधी का इरादा क्या था इत्यादि। ये ऑनलाइन सुनवाई में स्पष्ट नहीं हो पाते हैं।

इसमें एक चुनौती यह भी है कि तकनीक से अनभिज्ञ लोग वीडियो लिंक के माध्यम से खुलकर या स्पष्टता के साथ अपने विचार नहीं रख पाएंगे। इसके अलावा यदि कोई अभियुक्त पुलिस स्टेशन में बैठकर कार्यवाही से जुड़ेगा तो हो सकता है वह अधिक दबाव में हो और पुलिस के डर से बहुत कुछ स्वीकार ले। इसलिए पहले इन चुनौतियों से निपटना होगा। साथ ही नागरिकों को सूचना एवं तकनीक से जोड़ने हेतु उन्हें प्रशिक्षित करने का प्रयास भी करना होगा। न्याय के प्रशासन में एक नए दृष्टिकोण, नई रणनीति और डिजिटलीकरण के माध्यम से अधिक सशक्त निर्णय-क्षमता को स्थापित किया जा सकता है। देश में लोक अदालतों की संख्या बढ़ानी होगी। याचिकाकर्ताओं को मध्यस्थता जैसी प्रक्रिया का सहारा लेने के लिए प्रेरित करना होगा। बहरहाल आपदा की इस घड़ी में अधिक से अधिक वर्चुअल कोर्ट को शुरू करना आवश्यक हो गया है, जिसे नियमित भी किया जा सकता है।

वर्चुअल कार्यों पर जोर देने से न्याय तंत्र का भी डिजिटलीकरण होगा और न्यायिक प्रक्रिया में डिजिटल प्रवेश से मामलों का निपटान भी कई गुना तेजी से हो सकेगा और इससे कागजी कार्यवाही नहीं के बराबर रह जाएगी और भीड़ भी कम होगी। डाटा साइंस और कृत्रिम इंटेलिजेंस की मदद से लंबित पड़े मामलों को शीघ्रता से निपटाया जा सकेगा। लेकिन इसमें न्यायाधीशों की जवाबदेही का निर्धारण किया जाना जरूरी होगा। इससे नागरिकों को समयबद्ध तरीके से न्याय उपलब्ध हो सकेगा।

[शोधार्थी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय]