[भरत झुनझुनवाला]। खुशखबरी है कि हाल के समय में हमने आयात कम और निर्यात अधिक किए और हमें व्यापार खाते में शुद्ध लाभ हुआ। जब हम दूसरे देशों को निर्यात करते हैं तो हमें डॉलर प्राप्त होते हैं। देश में होने वाले विदेशी निवेश से भी डॉलर मिलते हैं। व्यापार और निवेश के योग को चालू खाता कहा जाता है। चालू खाते में लाभ का अर्थ हुआ कि हमें निर्यात एवं विदेशी निवेश से डॉलर अधिक मात्रा में मिल रहे हैं। अप्रैल से जून 2019 में चालू खाते में हमें 15 अरब डॉलर का घाटा हुआ था, जो 2020 के इन्हीं महीनों में 20 अरब डॉलर के लाभ में परिर्वितत हो गया।

दूसरी खुशखबरी है कि हमारे निर्यातन में सेवा क्षेत्र के निर्यात कोविड संकट के दौरान भी टिके हुए हैं। उनमें मामूली वृद्धि भी हुई है। भारत का भविष्य सेवा क्षेत्र में ही निहित है, इसलिए सेवा क्षेत्र के निर्यात में तेजी रहना हमारे लिए एक शुभ समाचार है। तीसरी खुशखबरी है कि अप्रैल से जून 2020 में रसायन के निर्यात में 19 प्रतिशत की वृद्धि और दवाओं के निर्यात में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। चौथी खुशखबरी है कि तेल के हमारे आयात में भारी गिरावट आई है। यह हमारे पर्यावरण और दीर्घकाल में स्वावलंबन को इंगित करता है, क्योंकि तेल के आयात पर निर्भरता हमारी आर्थिक संप्रभुता पर कभी भी संकट पैदा कर सकती है। हमारे सामने चुनौती है कि इस उपलब्धि को हम दीर्घकाल तक टिकाऊ बनाएं।

विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की मांग कम होने से गिरने चाहिए दाम

यहां पहला विषय रुपये के मूल्य का है। सामान्य रूप से जब किसी देश को चालू खाते में लाभ होता है तो इसका अर्थ होता है कि निर्यात और आने वाले निवेश से डॉलर अधिक मिल रहे हैं, जबकि आयात और जाने वाले निवेश के लिए डॉलर की मांग कम है। विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की मांग कम होने से डॉलर के दाम गिरने चाहिए। जिस प्रकार मंडी में सब्जी की आवक अधिक हो जाए और मांग कम तो सब्जी के दाम गिरते हैं, उसी प्रकार हमारे मुद्रा बाजार में डॉलर की आवक अधिक और मांग कम होने से डॉलर के दाम गिरने चाहिए और रुपये का मूल्य बढ़ना चाहिए, लेकिन हो इसके ठीक विपरीत रहा है।

चालू खाते में लाभ के कारण डॉलर में आनी चाहिए गिरावट

सितंबर 2019 में एक डॉलर का दाम 72 रुपये था, जो सितंबर 2020 में बढ़कर 73 रु. हो गया। डॉलर के मूल्य में यह वृद्धि मामूली है। चालू खाते में लाभ के कारण इसमें गिरावट आनी चाहिए। गिरावट के स्थान पर मामूली वृद्धि संकट का द्योतक है। रुपये की हैसियत में इस गिरावट का कारण शायद यह है कि विदेशी निवेशकों की नजर में भारत की अर्थव्यवस्था का भविष्य कमजोर है। जैसे आलू की फसल कमजोर होने के संकेत मिलते ही बाजार में आलू के दाम बढ़ जाते हैं, भले ही आलू अधिक मात्रा में उपलब्ध हो, वैसे ही भारत के चालू खाते पर संकट आने के संकेत के कारण फिलहाल विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर के दाम बढ़ रहे हैं। यद्यपि आज डॉलर अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं।

रुपये के मूल्य में गिरावट भरोसे का बता रहा अभाव

विदेशी निवेशकों का यह आकलन हमारे लिए खतरे की घंटी है। इस समय अवसर है कि चीन से बाहर जाने वाले निवेश को हम भारत ले आएं। ऐसा तभी संभव होगा, जब विदेशी निवेशकों को भारत पर भरोसा हो, लेकिन रुपये के मूल्य में गिरावट भरोसे का अभाव बता रहा है। दूसरा संकट यह है कि हमारे निर्यात में कच्चे माल के निर्यात की तुलना में सुदृढ़ रहे हैं, जबकि मैन्यूफैक्चर्ड या विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात में गिरावट आई है। पिछले वर्ष अप्रैल-जून की तुलना में इस वर्ष इसी अवधि में लौह अयस्क निर्यात में 63 फीसद वृद्धि हुई। सरसों और मूंगफली के निर्यात में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और चावल के निर्यात में 33 प्रतिशत की वृद्धि। सितंबर 2019 की तुलना में सितंबर 2020 में इन निर्यातों में और अधिक वृद्धि हुई है। अनाज के निर्यात में 304 प्रतिशत और लौह अयस्क के निर्यात में 109 फीसद वृद्धि हुई है। वहीं अप्रैल- जून 2020 में आभूषणों के निर्यात में 50 प्रतिशत की गिरावट आई है। चमड़े से बने माल में 40 प्रतिशत की गिरावट आई है और कपड़े के निर्यात में 35 प्रतिशत की। हमारी अर्थव्यवस्था की यह स्थिति हमारी अपेक्षा के ठीक विपरीत है।

प्रमुख मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग दबाव में

हमारा उद्देश्य है कि हम भारत को विश्व का मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाएं और चीन से जो मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग बाहर जा रहे हैं, उन्हें अपने यहां लाएं, लेकिन वस्तुस्थिति इसके ठीक विपरीत है। रसायन और दवाओं को छोड़ दें तो हमारे प्रमुख मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग दबाव में हैं और विश्व अर्थव्यवस्था में अपना स्थान गंवा रहे हैं। तीसरा संकट रिजर्व बैंक द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में है।

बताया गया है कि मार्च 2020 में भारतीय उपभोक्ता का विश्वास 115 अंक था, जो मई 2020 में 98 अंक रह गया था। इन संकेतों का परिणाम है कि देश की अर्थव्यवस्था की मौलिक स्थिति विपरीत है। यद्यपि वर्तमान में हमारे चालू खाते की स्थिति सुदृढ़ दिख रही है।

कोविट संकट के पहले देश में शुरू हो गई थी निर्यात में गिरावट

यदि कोई व्यक्ति बीमार हो जाए और वह भोजन कम करे तो उसका भोजन खाता लाभ में बताया जा सकता है, लेकिन जानकार समझ लेंगे कि बीमारी के कारण उसका भविष्य कठिन है और उसके भोजन खाते में दिख रहा लाभ भ्रामक है। इसलिए वर्तमान में हमारे चालू खाते में दिख रहे लाभ पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसलिए और भी कि हमारे मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग अपनी जमीन खो रहे हैं। बताते चलें कि हमारे निर्यात में गिरावट कोविड के संकट के पहले ही शुरू हो गई थी।

2018-19 की तुलना में 2019-2020 में हमारे निर्यात में पांच प्रतिशत की गिरावट आई थी। संपूर्ण निर्यात में यह गिरावट आज भी जारी है। चूंकि कच्चे माल के निर्यात में वृद्धि हुई है, अत: वर्तमान में चालू खाते की जो सुदृढ़ता है, वह अंदरूनी कमजोरी के साथ है। इस परिस्थिति में सरकार को तीन कदम उठाने चाहिए। पहला, देश की शिक्षा व्यवस्था को कंप्यूटर और इंटरनेट की तरफ मोड़ना चाहिए, जिससे हम सेवा क्षेत्र में अपनी महारत को बनाए रख सकें। दूसरे, मैन्यूफैक्र्चंरग में आधुनिक तकनीक के आयात के लिए सरकार को उद्यमियों को सब्सिडी देनी चाहिए, जिससे हमारे उद्यमी आधुनिक तकनीक खरीदकर ला सकें और देश में सस्ते दाम पर उत्पादन कर सकें। तीसरे, जमीनी प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार करना चाहिए, जिससे उद्यमी की ऊर्जा सरकारी अधिकारियों से निपटने के स्थान पर अपने उद्योग के क्रियान्वयन पर केंद्रित हो और हम विश्व में सबसे सस्ता माल बनाकर निर्यात कर सकें।

(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

[लेखक के निजी विचार हैं]