[ डॉ. आरएस सोढ़ी ]: हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को दिए अपने संबोधन में देश को विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए आत्मनिर्भर बनने का सुझाव दिया। इसके बाद भी उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण से उनका क्या आशय है। हमारे आसपास के कई लोगों ने प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के विचार की हंसी उड़ाई, लेकिन मेरा मानना है कि यह लक्ष्य हासिल करना असंभव नहीं है। सवाल उठता है कि अरबों डॉलर के माल का आयात करने वाले भारत जैसे देश में आत्मनिर्भरता के इस मंत्र को कैसे साकार किया जाए? इसका जवाब आयात पर निर्भर ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स, खाद्य तेल, ड्यूरेबल्स और खनिज जैसे क्षेत्रों की पहचान करने में निहित है।

ऑपरेशन फ्लड के चलते भारत दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बना

मैं आपको 1970 के दशक में वापस ले जाता हूं जब भारत में दूध का सालाना उत्पादन 21 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) प्रतिदिन था। यह प्रति व्यक्ति मात्र 110 ग्राम की उपलब्धता पर स्थिर था। उस दौरान भारत बड़े पैमाने पर दूध के आयात पर निर्भर था और घरेलू दुग्ध उत्पादक संकट की स्थिति में थे। उस समय त्रिभुवनदास पटेल और डॉ.वर्गीज कुरियन द्वारा देश भर में बनाई गईं दुग्ध सहकारी समितियों के सफल अमूल मॉडल को दोहराने के लिए हितधारकों, नीति निर्माताओं और राजनीतिक नेतृत्व द्वारा एक प्रतिबद्धता व्यक्त की गई। देश ने ऑपरेशन फ्लड के माध्यम से श्वेत क्रांति के बेहतर नतीजे प्राप्त किए और आज स्थिति यह है कि भारत दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बन गया है।

भारत अब दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है

भारत अब सालाना 189 एमएमटी दूध के उत्पादन के साथ दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। एक ऐसा देश जो कभी अमेरिका का 1/3 और यूरोप का 1/8 दुग्ध उत्पादन करता था, उसने आज अमेरिका की तुलना में अपने उत्पादन को दोगुना कर दिया है और यूरोप की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक उत्पादन बढ़ाया है। यह उल्लेखनीय काम हमारे अपने लोगों ने किया।

पांच दशकों में जनसंख्या में 2.5 गुना वृद्धि होने के बावजूद प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता 400 ग्राम है

बीते पांच दशकों में जनसंख्या में 2.5 गुना वृद्धि होने के बावजूद आज प्रतिदिन प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता 400 ग्राम है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि श्वेत क्रांति ने दस करोड़ परिवारों को स्वतंत्र उद्यमी बनने और सम्मान के साथ अपनी आजीविका कमाने में सक्षम बनाया है। यह एक सवाल उठ सकता है कि आज आप श्वेत क्रांति जैसी एक और क्रांति का सृजन कैसे कर सकते हैं? इसका उत्तर भारत के तीन स्तंभों- राजनीतिक नेतृत्व, हितधारकों और नीति निर्माताओं को मजबूत करने में निहित है।

भारत के पास स्थिर लोकतांत्रिक व्यवस्था है

नीति निर्माता और राजनीतिक नेतृत्व पहले से ही रोडमैप के साथ आगे आ गए हैं और प्राथमिकताएं तय करके हालात को चुनौती दे रहे हैं। हमारे पास सभी संसाधन और कौशल हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमारे पास एक स्थिर लोकतांत्रिक व्यवस्था है। ऐसे में सब कुछ भारत की जनशक्ति पर निर्भर है कि वह भारतीय ब्रांड में अपना आत्मविश्वास दिखाए।

आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रयास शुरू

एक नजर उन उद्यमों के उदाहरणों पर डालें जिन्होंने पहले ही आत्मनिर्भरता की दिशा में अपने प्रयास भी शुरू कर दिए हैं। गुजरात का जो थामना गांव 2015 में पहली बार सौर सहकारी के साथ आया था वह आज किसानों के लिए एक व्यावहारिक व्यवसाय मॉडल बन गया है। यहां सौर ऊर्जा का उपयोग अपनी स्वयं की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाता है और अधिशेष ऊर्जा राज्य विद्युत बोर्ड को बेची जाती है। इस प्रकार किसानों को अतिरिक्त आय उपलब्ध होती है।

पशु अपशिष्ट से बायोगैस, अतिरिक्त सालाना आय

इसी तरह का एक और अनुकरणीय उपक्रम गुजरात के ही जकारियापुरा गांव में है, जो देश में ऊर्जा और उर्वरकों के अरबों डॉलर के आयात का समाधान पेश कर रहा है। एक छोटी, लेकिन प्रभावी बायोगैस इकाई पशु अपशिष्ट को बायोगैस में परिवर्तित करती है और बचे हुए गारे को पास के सुविधा केंद्र भेज दिया जाता है, जिसे बाद में खेतों के लिए उर्वरक में बदल दिया जाता है। भले ही मवेशी दुधारू हों या न हों, यह व्यवसाय प्रति परिवार 36 हजार रुपये की अतिरिक्त सालाना आय प्रदान कर रहा है।

मोदी का देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मंत्र- वोकल फॉर लोकल और लोकल फॉर ग्लोबल

प्रधानमंत्री ने देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोगों को अधिक से अधिक स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए वोकल फॉर लोकल और लोकल फॉर ग्लोबल का मंत्र दिया है। हमें न सिर्फ स्वदेशी उत्पाद खरीदने हैं, बल्कि उनका गर्व से प्रचार भी करना है। यही मंत्र हमारे स्थानीय ब्रांड के लिए वैश्विक उपस्थिति के महत्व को सामने लाएगा। विभिन्न उत्पादों के लिए भारत पूरी दुनिया में सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ता बाजार है।

उपभोक्ता केवल राष्ट्रीयता नहीं, उत्कृष्टता भी देखते हैं

मेरा मानना है कि उपभोक्ता ब्रांड नहीं खरीदते, वे लाभ खरीदते हैं। वे केवल राष्ट्रीयता नहीं, उत्कृष्टता भी देखते हैं। घरेलू बाजार में मार्केट लीडर बनने के लिए ब्रांड को तकनीकी विशेषज्ञता, बेहतर गुणवत्ता और किफायती मूल्य पर र्नििमत करना होगा। किसी भी व्यावसायिक संगठन के लिए उसका ब्रांड सबसे मूल्यवान संपत्ति होता है। जब कोई ब्रांड वैश्विक बाजार में बिकता है तब रॉयल्टी और तकनीकी शुल्क के अलावा, घरेलू फर्म के मालिक को अपने ब्रांड के मूल्यांकन में सराहना मिलती है। यह सिद्ध बहुराष्ट्रीय रणनीति है।

स्पर्धा से लड़ने के लिए भारतीय ब्रांड को बेहतर उत्पादों के लिए काउंटर रणनीति सुनिश्चित करनी होगी

मैंने हाल में अपनी दुबई यात्रा के दौरान विश्व प्रसिद्ध आतिथ्य सत्कार शृंखलाओं की तुलना में द ताज और ओबेरॉय को चुना। अन्य होटल द ताज और ओबेरॉय की तुलना में बहुत सस्ते थे, लेकिन भारत में उनके साथ मेरे पिछले अनुभव और उनकी प्रीमियम गुणवत्ता सेवाओं में मेरे विश्वास ने मुझे उन्हें चुनने के लिए प्रेरित किया। जब हम अपने ब्रांड के साथ वैश्विक स्तर पर काम कर रहे हैं तो अन्य देश भी भारत की मांग का लाभ उठाने के लिए इसी तरह से रणनीति बनाएंगे। इस स्पर्धा से लड़ने के लिए भारतीय ब्रांड को बेहतर उत्पादों और उत्तम सेवाओं के रूप में एक काउंटर रणनीति सुनिश्चित करनी होगी और भारत में सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता को वास्तविक बनाना होगा।

( लेखक जीसीएमएमएफ-अमूल के प्रबंध निदेशक हैं )