नई दिल्ली (अनिल सिंह)। सरकार ने सितंबर 2014 में जोर-शोर से ‘मेक इन इंडिया’ योजना शुरू करते वक्त लक्ष्य रखा था कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसका योगदान 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 2022 तक 25 प्रतिशत कर दिया जाएगा। लेकिन सितंबर 2019 तक यह 17.38 प्रतिशत पर अटका हुआ था।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार के बजट में ‘उद्योग, वाणिज्य व निवेश’ पर बोलना शुरू किया तो उन्होंने भारत की शाश्वत उद्यमशीलता का उल्लेख किया। जब प्रोत्साहन की बात आई तो मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण व सेमीकंडक्टर पैकेजिंग बनाने पर केंद्रित स्कीम तक सिमट गईं।

इस स्कीम में उन्होंने मेडिकल उपकरणों को भी नत्थी कर दिया। लेकिन ये उद्योग क्षेत्र तो खुद ही तेजी से बढ़ रहे हैं। उन्हें शायद किसी प्रोत्साहन की जरूरत नहीं थी। टेक्निकल टेक्सटाइल के 16 अरब डॉलर के आयात को पलटने के लिए चार साल के राष्ट्रीय टेक्निकल टेक्सटाइल मिशन का प्रस्ताव रखा गया और इसके लिए 1480 करोड़ रुपये का आवंटन कर दिया। लेकिन गुजरे जमाने का टेक्सटाइल उद्योग सरकारों के पुरजोर प्रयासों के बावजूद सालों-साल से क्यों दुर्दशा का शिकार है या क्यों बांग्लादेश व वियतनाम जैसे देश हमें टेक्सटाइल निर्यात में मात दे रहे हैं, इसकी कोई समीक्षा नहीं पेश की।

वित्त मंत्री ने पांच नए स्मार्ट शहरों, निर्यातकों और सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) का भी उल्लेख किया। देश के हर जिले में निर्यात हब बनाने की बात की। लेकिन नहीं बताया कि हमारा निर्यात सालदर-साल क्यों घटता जा रहा है। अंतत: जब उद्योग व वाणिज्य क्षेत्र के लिए बजट आवंटन करना था तो असल आंकड़ा 27,227 करोड़ रुपये तक सिमट गया। यह मौजूदा वित्त वर्ष के 28,608 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से 4.82 प्रतिशत कम है।

इंफ्रास्ट्रक्चर इस सरकार की नहीं, देश के लिए भी बड़ी प्राथमिकता है। वित्त मंत्री ने दिसंबर अंत में घोषित पांच साल में 103 लाख करोड़ रुपए निवेश करने के राष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन का एक बार फिर उल्लेख किया। लेकिन जब कुछ ठोस करने की बारी आई तो मामला इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनियों की इक्विटी में 22,000 करोड़ रुपये लगाने पर आ टिका। ये कंपनियां लगभग एक लाख करोड़ रुपये का फाइनेंस जुटाने में मदद कर सकती हैं। लेकिन 103 लाख करोड़ रुपये में से अधिकांश रकम निजी क्षेत्र को जुटानी है।

घोटाले में फंसी इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंस सर्विसेज़ (आइएल एंड एफएस) के अनुभव को देखते हुए यह पेशकश कितनी कारगर होगी, इसको लेकर भारी संदेह है। रियल एस्टेट को उबारने के लिए मकान खरीदने-बेचने पर कैपिटल गेन्स टैक्स में थोड़ी रियायत दी गई है। अभी तक मकान की कीमत सर्किल रेट के 5 प्रतिशत से ज्यादा कम है तो अंतर पर 20 प्रतिशत कैपिटल गेन्स टैक्स देना पड़ता है। अब यह अंतर सर्किल रेट के 10 प्रतिशत से ज्यादा कर दिया है।

देश के नौ प्रमुख शहरों में ही लगभग 7.75 लाख मकान अनबिके पड़े हैं, तब बजट का यह कदम कितना कारगर होगा? वित्त मंत्री ने सिंथेटिक फाइबर से बनने वाले कपड़ों व कुछ प्लास्टिक उत्पाद बनाने के कच्चे माल पीटीए (प्योरिफाइड टेरेफ्थैलिक एसिड) पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी खत्म की है, उसका घरेलू उद्योग ने स्वागत किया है।

वैसे तो देश में रिलायंस इंडस्ट्रीज और इंडियन ऑयल जैसी कंपनियां पीटीए बनाती हैं, लेकिन वे पीटीए की सारी मांग नहीं पूरी कर पातीं। उद्योग का कहना है कि इससे देश को निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी। उद्योग को निराशा के बीच आशा की बस यही एक किरण नजर आ रही है। (संपादक अर्थकाम.कॉम)