[ डॉ. आरए बडवे ]: उत्तर प्रदेश और बिहार आबादी के लिहाज से देश के दो सबसे बड़े राज्य हैं। कैंसर के सबसे ज्यादा मरीज भी इन दो राज्यों में ही हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आइसीएमआर के आंकड़ों से भी इसकी पुष्टि होती है। इन आंकड़ों के अनुसार देश में कैंसर के कारण सबसे ज्यादा मौतें अकेले उत्तर प्रदेश में होती हैं। राज्य में इस बीमारी की व्यापकता और भयावहता के बावजूद यहां उसके उपचार के लिए सुविधाओं के अभाव ने स्थिति को और बिगाड़ा, क्योंकि यहां कुछ ही अस्पतालों में विशेष ओंकोलॉजिक केयर सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां तक कि बीएचयू स्थित अति विशिष्ट संस्थान माने जाने वाले इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में भी कैंसर के उचित इलाज के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का अभाव रहा है।

ऐसा अनुमान है कि केवल वाराणसी क्षेत्र में कैंसर निदान की सुविधाओं से करीब 1.83 लाख रोगी उपचार का लाभ उठाएंगे। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया ताकि यहां पर ये सुविधाएं बेहतर हो सकें। यहां बनाए जा रहे इस नए कैंसर केयर सेंटर से लगभग 20 करोड़ लोगों तक उपचार की सुविधा पहुंचेगी। इससे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों के अलावा पड़ोसी देश नेपाल के लोग भी लाभान्वित होंगे। यहां लोगों को उपचार मिलने से देश के अन्य कैंसर उपचार केंद्रों पर दबाव भी कम होगा।

बीमारी को अगर पनपने ही न दिया जाए तो उससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता। ऐसे में उसकी रोकथाम और शुरुआती स्तर पर ही पहचान कर इलाज करने के लिए जागरूकता का भी प्रसार किया जाएगा। इसके लिए मध्य भारत में स्पेशियलिटी कैंसर सेंटर और यूनिट्स के विकास एवं मार्गदर्शन के लिए एक केंद्र विकसित होगा। यह सेंटर नेशनल कैंसर ग्रिड के लिए एक नोडल के रूप में कार्य करेगा। इस मिशन के लिए पहले कदम के रूप में टाटा मेमोरियल सेंटर यानी टीएमसी द्वारा जून 2017 में जनसंख्या आधारित रजिस्ट्री शुरू की गई ताकि बीमारी का विस्तार और प्रकृति को समझा जा सके। इसमें वाराणसी की कुल अनुमानित 36.77 लाख आबादी को शामिल किया गया। रजिस्ट्री की अंतरिम रिपोर्ट में कैंसर के 1,002 मामले दर्ज हुए जिनमें से 501 मरीजों की मौत हो गई।

पुरुषों में मुंह का कैंसर, जीभ, फेफड़ों, गले और प्रोस्टेट कैंसर मुख्य रूप से होता है। वहीं महिलाओं में मुख्य रूप से स्तन कैंसर, गर्भाशय, गाल ब्लैडर, ओवेरी और फेफड़ों के कैंसर से जुड़े मामले ही मुख्य रूप से दिखते हैं। रिपोर्ट के अनुसार कैंसर से जुड़े अधिकांश मामले देरी से सामने आए और उनमें अक्सर बीच में ही इलाज छोड़ दिया जाता है।

ऐसे में दो संस्थानों पर काम करने का फैसला किया किया गया। एक इंडियन रेलवेज कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर यानी आइआरसीआइ जिसका विस्तार कर बाद में उसका हस्तांतरण टीएमसी को किया जाना है। 180 बेड वाले आइआरसीआइ का नाम होमी भाभा कैंसर अस्पताल (एचबीसीएच) रखा गया है। इसी तरह टीएमसी द्वारा बीएचयू परिसर में 350 बेड का नया महामना पंडित मदनमोहन मालवीय कैंसर सेंटर यानी एमपीएमएमसीसी भी शुरू किया जा रहा है। एमपीएमएमसीसी के निर्माण और एचबीसीएच के कायाकल्प दोनों कामों से टाटा ट्रस्ट जुड़ा रहेगा। इन दोनों इकाइयों में कुल 530 बेड होंगे जहां अत्याधुनिक उपकरणों के साथ नई तकनीक वाला बेहतर इलाज संभव हो सकेगा। फिलहाल दोनों परियोजनाओं का काम द्रुत गति से आगे बढ़ रहा है जिसमें एचबीसीएच का छह माह में कायाकल्प हो जाएगा तो एमपीएमएमसीसी में भी दस महीनों में सेवाएं शुरू हो जाएंगी। इन केंद्रों के विकास में प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत रुचि ने भी अहम भूमिका निभाई जिन्होंने इसमें हरसंभव सहयोग किया।

टाटा ट्रस्ट की एक कारपोरेट प्रबंधन टीम ने इस प्रोजेक्ट को संभाला। टीम के सदस्यों को प्रोजेक्ट के साझीदारों के के साथ कार्यस्थल पर तैनात किया गया ताकि कि वे काम की निगरानी कर सकें और समय-सीमा का ध्यान भी रख सकें। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में बचाए गए प्रत्येक वर्ष का अर्थ होगा दस हजार से अधिक मरीजों को अत्याधुनिक उपचार प्रदान करना। इससे प्रति वर्ष पांच हजार से अधिक लोगों के जीवन की रक्षा होगी। टाटा मेमोरियल ट्रस्ट ने उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ आसपास के इलाकों में कैंसर पर चौतरफा हमला करने की योजना बनाई है।

पहला लक्ष्य, 70 प्रतिशत रोके जा सकने वाले कैंसर को रोकना। दूसरा, पूरी तरह ठीक किए जा सकने वाले कैंसर का इलाज। तीसरा, आम कैंसर का उपचार और साथ ही उनके होने के कारणों को उजागर करना। इसी के साथ ऐसा मानव संसाधन तैयार करने का भी लक्ष्य है जिसमें कैंसर से निपटने के लिए सेवा-संस्कृति की भावना विकसित हो और उपलब्ध शोध को और बेहतर बनाने में मदद मिल सके।

[ लेखक टाटा मेमोरियल सेंटर, मुंबई के निदेशक हैं ]