युद्धवीर सिंह लांबा। आज शिद्दत से करो कोशिश चिराग जलाने की, कौन जाने तुम्हीं से कल रोशन सारा जहां हो। किसी व्यक्ति को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसी शायर की ये पंक्तियां जोश और उत्साह बढ़ाने व प्रोत्साहित करने वाली है। कहते हैं प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है। कोई भी बाधा प्रतिभा को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती है। अपनी विलक्षण प्रतिभा के बलबूते मेजर ध्यानचंद ने लगातार तीन ओलंपिक (1928 एम्सटर्डम, 1932 लॉस एंजेलिस और 1936 बर्लिन) में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाकर दुनिया में भारत का मान-सम्मान बढ़ाया, जो सभी देशवासियों के लिए प्रेरणादायक, गौरवमयी एवं अनुकरणीय है।

कहा जाता है कि मेजर ध्यानचंद के जैसा हॉकी खिलाड़ी आज तक कोई नहीं है। मेजर ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में डॉन ब्रेडमैन के बराबर माना जाता है। वर्ष 2012 में मेजर ध्यानचंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन 29 अगस्त के अवसर पर भारत सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया और तब से हर वर्ष 29 अगस्त को इसी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

केंद्र की सरकारों ने नहीं दिया ध्यान : काफी लंबे समय से मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिलाने को लेकर कई बार अलग अलग स्तर पर मांग उठती रही है, लेकिन उन्हें भारत रत्न देने के प्रति केंद्र की सरकारों ने जो बेरुखी दिखाई है, वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। सवाल उठता है कि वर्ष 1928, 1932 और 1936 में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीत कर भारत को पूरी दुनिया में गौरवान्वित करने वाले मेजर ध्यानचंद की भारत रत्न के लिए लगातार अनदेखी करना क्या उचित है? हॉकी के समर्थकों और खेल प्रेमियों में बेचैनी है कि हॉकी के जादूगर को सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा जाएगा या नहीं? अब तो यह बात पूरी तरह से साफ हो चुकी है कि सरकारें वर्षो से भारत रत्न देने के फैसले में अपना सियासी नफा-नुकसान देखती रही हैं। यह मेजर ध्यानचंद के साथ मजाक के अतिरिक्त और कुछ नहीं कि तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने वर्ष 2011 में संसद के 82 सदस्यों की मांग ठुकरा दी थी, जिन्होंने भारत रत्न के लिए ध्यानचंद के नाम की सिफारिश की थी।

हो सकता है कि कुछ लोग इससे अलग विचार रखते हों, सचिन तेंदुलकर से पहले भारत रत्न सम्मान के असली हकदार ध्यानचंद थे। मुंबई के वानखेडे स्टेडियम पर वर्ष 2013 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार ने सचिन तेंदुलकर की लोकप्रियता को भुनाने के लिए भारत रत्न देने की सारी औपचारिकता महज 24 घंटों में पूरी कर ली थी। वर्ष 2014 में सचिन तेंदुलकर और सीएनआर राव को भारत रत्न देने के साथ-साथ मेजर ध्यानचंद को भी यह सम्मान दिया जा सकता था, परंतु मनमोहन सरकार ने ऐसा नहीं किया। भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है और खिलाड़ियों को भी इससे सम्मानित किए जाने के लिए वर्ष 2013 में ही इसके पात्रता के मानदंड में संशोधन किया गया।

भाजपा सरकार भी कर रही अनदेखी : एक समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग की थी। आज वह स्वयं प्रधानमंत्री हैं, ऐसे में ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने में देरी होना दुर्भाग्य की बात है। अपने पहले कार्यकाल के दौरान केंद्र की मोदी सरकार ने वर्ष 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न से नवाजा। उस समय ध्यानचंद को भी यह पुरस्कार दिया जा सकता था, परंतु मोदी सरकार ने ऐसा नहीं किया। वर्ष 2019 में मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, जनसंघ के नेता नानाजी देशमुख और गायक भूपेन हजारिका को भी भारत रत्न से सम्मानित किया।

जर्मनी की नागरिकता और सेना में कर्नल पद के प्रस्ताव से इन्कार : वर्ष 1936 में बर्लिन में हॉकी ओलंपिक का फाइनल मैच भारत और जर्मनी के बीच हुआ था। जर्मनी के शासक हिटलर भी मैच देख रहे थे। भारत ने उस मैच में जर्मनी को 8-1 से हरा दिया था। मैच खत्म होने के बाद हिटलर ने ध्यानचंद के खेल से प्रभावित होकर जर्मनी की नागरिकता के साथ जर्मन सेना में कर्नल बनाने तक का प्रस्ताव दिया। हालांकि मेजर ध्यानचंद ने इस प्रस्ताव को बड़ी विनम्रता के साथ यह कहकर ठुकरा दिया, मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारत के लिए ही खेलूंगा।

देश के लिए लगातार तीन ओलंपिक खेलों में हॉकी का स्वर्ण जीतने वाले ध्यानचंद ने 1948 में खेल से संन्यास लिया था। वर्ष 1956 में भारत सरकार ने मेजर ध्यानचंद को भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया था। तीन दिसंबर 1979 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनके सम्मान में दिल्ली में स्थित नेशनल स्टेडियम को वर्ष 2002 में ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम का नाम दिया गया। उनके नाम ऐसी तमाम उपलब्धियां हैं, जिस कारण से मेजर ध्यानचंद को अब भारत रत्न से सम्मानित करने में ज्यादा विलंब नहीं होना चाहिए।

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