डॉ. मुरारजी त्रिपाठी। कोरोना महामारी के इस दौर में सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा के सामने खड़ी हुई है। कक्षाएं खाली पड़ी हैं। आमने सामने की शिक्षण विधि अप्रासंगिक हो गई है। ऑनलाइन शिक्षण का रास्ता निकाला जा रहा है, किंतु तकनीकी दिक्कतों के कारण सभी तक इसकी पहुंच बना पाना मुश्किल हो रहा है। हालांकि विद्यालयों की ओर से ऑनलाइन शिक्षण को बाकायदा विद्यालय में होने वाली पढ़ाई की तरह संचालित किया जा रहा है, फिर भी संसाधनों की कमी के कारण लक्ष्य को प्राप्त करने में काफी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।

विद्यालयों में सुबह सुबह ही समयानुसार ऑनलाइन शिक्षण कार्य शुरू हो जाता है। जहां पर मोबाइल नेटवर्क ठीक है, या घरों में बच्चों की संख्या के हिसाब से मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि हैं और अभिभावक दिलचस्पी भी ले रहे हैं, तथा समस्याएं बहुत अधिक नहीं हैं, वहां तो फिर भी बहुत कुछ सही तरीके से चल रहा है, किंतु जहां एक ही घर में कई भाई-बहन पढ़ने वाले हैं और स्वाभाविक रूप से सबकी कक्षाओं का समय एक ही है, और केवल एक मोबाइल फोन है, वहां पर समस्या बहुत गंभीर है।

उत्तर प्रदेश बोर्ड के माध्यमिक विद्यालयों में यह समस्या ज्यादा जटिल बनी हुई है। कुछ गरीब शिक्षाíथयों के पास स्मार्टफोन तथा लैपटॉप खरीदने की क्षमता नहीं होने के कारण यह व्यवस्था प्रश्नों के घेरे में आ गई है। तकनीकी क्षेत्र में शिक्षकों की दक्षता की कमी से ऑनलाइन शिक्षण का यह महत्वपूर्ण कार्य मूर्त रूप नहीं ले पा रहा है। शिक्षक अभी तक आमने सामने की शिक्षा देते रहे हैं, लिहाजा नई चुनौती का सामना करने के लिए उन्हें अभी तक किसी तरह का कोई विभागीय प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया। शिक्षा विभाग ने हालांकि इस कमी को महसूस किया है, और इसी के तहत शिक्षकों को प्राथमिक स्तर का प्रशिक्षण देने के लिए एक्शन रिसर्च इन एजुकेशन विषय पर ऑनलाइन कोर्स की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। यह प्रशिक्षण सीआइईटी यानी सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन टेक्नोलॉजी और एनसीईआरटी यानी नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी के सहयोग से शुरू होने वाला है।

ऑनलाइन शिक्षण में सबसे बड़ी बाधा संवाद हीनता की भी है। शिक्षक और विद्याíथयों के बीच संवाद में सामंजस्य नहीं बन पा रहा है। ऐसे में यह एक पक्षीय व्यवस्था बनकर रह गई है, जबकि शिक्षण कार्य द्विपक्षीय प्रक्रिया है। यह भी समझना होगा कि जैसे शिक्षक होंगे वैसी ही देश की शिक्षा व्यवस्था होगी। इसलिए देश की शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए तकनीकी रूप से दक्ष व योग्य शिक्षकों की सर्वाधिक आवश्यकता है। शिक्षा कोई वस्तु नहीं है, जिसे अर्जति कर या जिससे स्वयं को संपन्न कर उसका इस्तेमाल किया जाए, बल्कि वह व्यक्तियों तथा समाज के लिए अपरिमित महत्व रखने वाली प्रक्रिया है।

वैश्वीकरण के इस दौर में व्यापक स्तर पर होने वाले सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी परिवर्तनों का सीधा असर शिक्षा पर पड़ा है। समय के साथ शिक्षा की भूमिका में भी बदलाव आया है। अब विद्यालय ही एकमात्र शिक्षा का केंद्र नहीं रह गए हैं। शिक्षा के विभिन्न उपकरण विद्याíथयों को सीखने में मदद दे रहे हैं। एक तरह से ये उपकरण शिक्षक की अहमियत को घटा रहे हैं। तकनीक का उपयोग बढ़ रहा है। आज जिस तरह छोटे बच्चे भी डिजिटल मीडिया के विभिन्न रूपों से परिचित हो रहे हैं, उससे ऑनलाइन शिक्षण को तो सहायता मिल रही है, किंतु उनकी शिक्षक से साक्षात्कार करने की तत्परता कम होती जा रही है। ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और तकनीकी रूप से दक्ष शिक्षक दोनों की ही अहमियत बढ़ गई है। ज्ञान देने वाले तकनीकी गुरुओं के नए संस्करण भी आ रहे हैं जो पूरी शिक्षा प्रक्रिया को नया आकार दे रहे हैं। इसका सीधा असर शिक्षकों की परंपरागत भूमिका और प्रासंगिकता पर पड़ रहा है और तमाम विषयों पर डिजिटल प्रारूप में प्रचुर मात्र में पठनीय सामग्री सरलता से मिल रही है।

अध्यापन भी दूसरे क्षेत्रों की तरह एक व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है। शिक्षक होना आज के युवा की पसंद में नीचे स्थान पाता है, क्योंकि प्रबुद्ध और आíथक दृष्टि से यह अधिक आकर्षक नहीं है। बाजारवाद ने शिक्षा की प्रक्रिया और शिक्षक दोनों को आíथक प्रलोभनों के दायरे में ले लिया है। अपने जीवन स्तर में सुधार की तमन्ना के लिए शिक्षक भी लालायित हो रहे हैं। कई अध्यापक सामान्य कक्षा और विद्यालय जीवन की उपेक्षा कर अर्थ उपार्जन के अन्य कार्यो में व्यस्त रहने लगे हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए आज योग्य शिक्षकों का टोटा है। शिक्षक की गरिमा दिनों-दिन घटती जा रही है।

वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की देश को सर्वाधिक जरूरत है। नौजवानों में आज जहां एक ओर बेरोजगारी की समस्या है, वहीं सरकारी नौकरियों के लिए योग्य नौजवानों का अभाव दिख रहा है। प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 68,000 पद विज्ञापित किए गए थे, जिनमें बहुत से पद इसलिए नहीं भरे जा सके, क्योंकि योग्य अभ्यर्थी मिला ही नहीं। ऐसी स्थितियां गुणवत्ता विहीन शिक्षा के कारण हो रही है।

राष्ट्रीय पुननिर्माण के लिए शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखना जरूरी हो गया है। प्रदेश एवं केंद्र की राष्ट्रवादी सरकारों को इस दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए। शिक्षा संस्थानों में ही राष्ट्र का निर्माण होता है। कोरोना के कारण बदली हुई परिस्थितियों में शिक्षा के संपूर्ण ढांचे पर नए सिरे से विचार करना होगा, तभी शिक्षा के माध्यम से संस्कारित भारत की कल्पना साकार हो सकेगी। यह कार्य राष्ट्रीय पुननिर्माण का कार्य है। इसमें शिथिलता का अर्थ है पूरी पीढ़ी को पीछे धकेलना। ऑनलाइन शिक्षा की बाधाओं को दूर कर राष्ट्रीय पुननिर्माण के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

महामारी के कारण देश भर में स्कूल पिछले करीब पांच माह से बंद हैं। विकल्प के तौर पर ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था जरूर विकसित कर ली गई, लेकिन शिक्षक और छात्रों के बीच संवाद में सामंजस्य नहीं बन पा रहा है, जिस कारण यह एक पक्षीय व्यवस्था बनकर रह गई है, जबकि शिक्षण द्विपक्षीय प्रक्रिया है। शिक्षा और शिक्षक के बीच अन्योन्याश्रित संबंध है। शिक्षा विस्तार एवं रूपांतरण की प्रक्रिया है। लिहाजा तमाम परिस्थितियों के बीच यह मूल्यांकन होना भी आवश्यक है कि ऑनलाइन शिक्षण पद्धति से शिक्षण के उद्देश्य की प्राप्ति हो भी रही है या नहीं।

[प्रधानाचार्य, सर्वार्य इंटर कॉलेज, प्रयागराज]