[केसी त्यागी] महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में हाल में संयुक्त राष्ट्र में एक विशेष श्रद्धांजलि सभा में उनका स्मरण किया गया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव समेत तमाम राष्ट्राध्यक्षों ने गांधी की प्रासंगिकता को रेखांकित किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा, ‘महात्मा गांधी भारतीय थे, लेकिन वह केवल भारत के नहीं थे और यह मंच इसका जीवंत उदाहरण है।’ वास्तव में महात्मा गांधी की स्वीकार्यता विश्व के कोने-कोने में है। इसी कारण भारत समेत दुनिया के कई मुल्क उनकी 150वीं जयंती पर उनके आदर्शों को प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं। गांधी के प्रति सच्ची श्रद्धा एवं वैश्विक स्वीकार्यता की ऐसी ही एक कड़ी में संयुक्त राष्ट्र ने 15 जून 2007 को उनकी जन्मतिथि को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ घोषित किया था।

किंग लूथर  के लिए भारत 'तीर्थ स्थल' की तरह

अमेरिका के प्रसिद्ध अश्वेत नेता डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने जब भारत दौरा किया तो उन्होंने इसे ‘तीर्थयात्रा’ कहा था। इसका एकमात्र कारण गांधी जी थे। गांधी जी के सिद्धांतों के कारण भारत की धरती को ‘तीर्थ स्थल’ करार देकर उन्होंने भारत का मान बढ़ाया। किंग लूथर ने जैसे-जैसे गांधी जी के बारे में जाना, उनके मन में गांधी के प्रति सम्मान और बढ़ता चला गया। गांधी को जानने से पहले रंगभेद और नस्लभेद आंदोलन के प्रणेता मार्टिन लूथर का मानना था कि ‘प्रेम की नीति सिर्फ व्यक्तिगत संबंधों में ही प्रभावी हो सकती है, अन्य सामाजिक, प्रजातीय संघर्षों एवं राष्ट्रों के बीच में नहीं।’

सामाजिक-सामूहिक परिवर्तन 

गांधी के विचारों का अनुसरण कर वह इस नतीजे पर पहुंचे कि ‘प्रेम और अहिंसा’ किसी सामाजिक-सामूहिक परिवर्तन के लिए भी शक्तिशाली उपकरण साबित हो सकते हैं। उन्होंने कहा था, ‘जो बौद्धिक-नैतिक संतुष्टि मैं बेथम और मिल के उपयोगितावाद, माक्र्स और लेनिन की क्रांतिकारी पद्धतियों, हॉब्स के सामाजिक सिद्धांत और नीत्शे के दर्शन में भी नहीं पा सका, वह मुझे गांधी के अहिंसक प्रतिरोध के दर्शन में मिला।’

अफ्रीका के गांधी कहलाए नेल्सन मंडेला ने भी गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर रंगभेद के खिलाफ अपने अभियान को मूर्त रूप दिया। गांधी से प्रेरणा लेकर ही उन्होंने अन्याय के खिलाफ आक्रोश को रचनात्मक और अहिंसक रूप प्रदान कर नस्लभेद और रंगभेद की लड़ाई को एक मुकाम तक पहुंचाने का काम किया।

असहयोग, अहिंसा और सत्य का मार्ग  

उनकी एक विशेषता यह भी रही कि वह गांधी की ही तरह स्थानीय लोगों में अहिंसा की धारा का प्रवाह तेज करने में कामयाब रहे। कोई किसी से कितना प्रभावित हो सकता है, मंडेला इसकी मिसाल हैं। रंगभेद के खिलाफ लड़ाई में मंडेला को 27 वर्षों तक जेल में यातनाएं झेलनी पड़ीं, लेकिन जैसे गांधी ने विश्व युद्ध के बाद के हालात में असहयोग, अहिंसा और सत्य का मार्ग बुलंद किया, ठीक उसी तरह तमाम विषम और हिंसक परिस्थितियों के बावजूद मंडेला गांधीवादी तौर-तरीकों पर टिके रहे।

गांधी जी की विचारधारा बहुत बड़ा बदलाव

स्मरण रहे कि वह समय तबाही और हिंसक माहौल का था। हिरोशिमा और नागासाकी की तबाही के बाद अहिंसा की हिमायत तब बेमानी लगती थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांधीजी ने हिटलर के खिलाफ अहिंसात्मक रुख अपनाने की अपील की। कई वैश्विक दार्शनिकों का मानना है कि गांधी की अहिंसा और असहयोग वाली नीति किसी राष्ट्र की सीमा तक सीमित नहीं रही, बल्कि वह वैश्विक बन गई। स्वयं मंडेला ने कहा था, ‘दक्षिण अफ्रीका के शांतिपूर्ण बदलाव में गांधी जी की विचारधारा का बहुत बड़ा योगदान है। उनके सिद्धांतों के बल पर ही दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद जैसा सामाजिक पाप समाप्त हो पाया।’

बीसवीं शताब्दी में भारत समेत विश्व के कई मुल्कों के लिए गांधी के सत्याग्रही औजार कर्तव्य का रूप ले चुके थे। जाफना यूथ कांग्रेस के संस्थापक और श्रीलंका एवं भारत के लिए पूर्ण स्वराज की वकालत करने वाले पेरिनबनयागाम के निमंत्रण पर अक्टूबर 1927 में गांधी जी ने श्रीलंका की यात्रा की। लगभग 20 दिनों के प्रवास के दौरान गांधीवादी मूल्यों का प्रवाह तेज हो चुका था।

शेख मुजीबुर्रहमान का अहिंसात्मक संघर्ष 

बांग्लादेश यानी पूर्वी पाकिस्तान में शांतिप्रिय बंगालियों के आंदोलन पर भी गांधी जी के आदर्शों की अमिट छाप देखने को मिली थी। पाकिस्तानी शासकों के अत्याचार के खिलाफ शेख मुजीबुर्रहमान का अहिंसात्मक संघर्ष भी गांधीवादी प्रवृत्ति का था। दुनिया के अन्य देशों में भी लोगों ने गांधीवादी तरीकों से अपनी लड़ाई लड़ी।

गांधी ने लंदन में वकालत की पढ़ाई की और दक्षिण अफ्रीका में प्रैक्टिस की। इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में उनका व्यापक प्रभाव भी पड़ा। उन्होंने अमेरिका की यात्रा कभी नहीं की, लेकिन हिंदुस्तान के बाद अमेरिका शायद ऐसा देश है जहां गांधी जी की सर्वाधिक प्रतिमाएं हैं।

जातीय भेदभाव की समाप्ति

अमेरिकी नागरिकों पर गांधी जी के विचारों का गहरा असर है। भारत में उनके द्वारा किए जा रहे समाज सुधार और स्वाधीनता आंदोलन पर अमेरिकियों की पैनी नजर रहती थी। स्वराज प्राप्ति की दिशा में गांधी जी का असहयोग आंदोलन दैनिक रूप से अमेरिकी अखबारों की सुर्खियों में हुआ करता था। जातीय भेदभाव की समाप्ति और करीब छह दशक बाद एक अश्वेत का अमेरिकी राष्ट्रपति चुना जाना जातीय बराबरी के संघर्ष का नतीजा है जिसमें कहीं न कहीं महात्मा गांधी का अप्रत्यक्ष योगदान देखा गया। बराक ओबामा खुद को गांधी का अनुगामी मानते हैं। गांधी को अंग्रेजों से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन ब्रिटिश उपनिवेशवाद और उसके शोषक रवैये के प्रति उनके असहयोग की नीति दुनिया के लिए मजबूत हथियार बनी।

बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय 

गांधी भारत की मिट्टी के ऐसे सपूत थे जिन्होंने विश्वपटल पर भारत की ‘बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय’वाली छवि प्रस्तुत की। शायद गांधी इकलौते भारतीय हैं जो समूची विश्व बिरादरी के लिए प्रेरणास्नोत हैं। अपने जीवन काल में उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, भाषाई, मानवतावादी आदि सभी पक्षों को अपने जागरण और सत्याग्रह अभियान से जोड़े रखा। ये सभी विषय आज भी पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक है। इसलिए वह जहां भारत में स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, महात्मा के नाम से जाने जाते हैं वहीं पूरी दुनिया में एक बड़े समाज सुधारक, और राजनीतिक मार्गदर्शक के रूप में।

(लेखक जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)