सद्गुरु शरण। कहा जाता है कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है। मुख्यमंत्री के रूप में चौथी पारी खासे आक्रामक अंदाज में खेल रहे शिवराज सिंह की कार्यशैली में यह बात साफ दिखती है। वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव के नतीजों ने शिवराज सिंह समेत पूरी पार्टी को स्तब्ध कर दिया था, क्योंकि लगातार करीब 13 वर्ष के कार्यकाल की उपलब्धियां और शिवराज सिंह की लोकप्रियता देखते हुए किसी को ऐसे नतीजे की उम्मीद नहीं थी। बहरहाल, 15 महीने बाद कांग्रेस सरकार का पतन हो गया और शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी चौथी बार हासिल हो गई।

मुख्यमंत्री पिछले करीब एक साल से जिस शैली में काम कर रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि उनका ध्यान वर्ष 2023 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव पर केंद्रित है। यह स्वाभाविक भी है। वह अपने फैसलों और तेवरों से चुनाव का एजेंडा भी तय कर रहे हैं। उनके चुनाव रथ पर भगवा झंडा ही फहरा रहा होगा, इसके बावजूद वह अपने शासनकाल की उपलब्धियों पर ही भरोसा करेंगे। वह किसानों, महिलाओं और युवाओं से वृहद समर्थन की अभिलाषा लेकर चुनाव मैदान में उतरेंगे। दरअसल, 2018 के नतीजे ने शिवराज सिंह को यह सबक जरूर दिया है कि आत्मविश्वास भरपूर रखिए, पर अति-आत्मविश्वास कतई नहीं। शायद इसीलिए चुनाव से करीब पौने तीन साल पहले वह इस तरह सक्रिय एवं आक्रामक दिख रहे हैं, मानो चुनाव में दो-चार महीने ही शेष हैं। उन्हें यह सबक भी मिल गया है कि मध्य प्रदेश की चुनावी परिस्थिति अधिकतर अन्य राज्यों से भिन्न है। यहां यूपी, बिहार या झारखंड की तरह क्षेत्रीय पार्टयिां नहीं हैं, इसलिए कांग्रेस कितनी भी कमजोर हो जाए, चुनाव में सीधा मुकाबला उससे ही होना है।

आधार हिंदुत्व और राष्ट्रवाद ही : शिवराज सिंह हमेशा आरएसएस और भाजपा के राष्ट्रवादी दर्शन के मुखर-प्रखर प्रवक्ता रहे हैं। उनकी सरकार पर कभी किसी वर्ग के तुष्टीकरण या उपेक्षा का आरोप तो नहीं लगा, पर वह हिंदुत्व के सवाल पर पारदर्शी दिखते हैं। उन्होंने सनातन धर्म की परंपराओं के प्रति आस्था दर्शाते हुए सरकारी समारोहों की शुरुआत कन्या पूजन से किए जाने की अनिवार्य व्यवस्था लागू की। जिन समारोहों में मुख्यमंत्री रहते हैं, वह खुद कन्या पूजन करते हैं। अपने सरकारी दौरों में वह पूज्य नदियों और धर्मस्थलों पर जाना नहीं भूलते, जहां वह आरती-पूजन के अलावा भावमग्न होकर कीर्तन भी करते हैं। उनके शासकीय फैसलों में भी यह भाव व्यक्त होता है। बहुसंख्यक समाज की लड़कियों के खिलाफ लव जिहाद साजिश की कमर तोड़ने के लिए सर्वाधिक कठोर कानून मध्य प्रदेश में ही लागू है। इसी तरह प्रदेश में कुछ स्थानों पर बहुसंख्यक समाज की धाíमक रैलियों पर अल्पसंख्यक समुदाय के घरों से पथराव किया गया तो प्रशासन ने कानूनी कार्रवाई के अलावा 24 घंटे के भीतर उन घरों पर बुलडोजर चलवा दिया। ऐसे अन्य प्रसंग भी हैं जिनमें राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और सनातन रीति-नीति के प्रति मुख्यमंत्री का लगाव प्रदर्शित होता है।

किसानों, महिलाओं और युवाओं पर भरोसा शिवराज सिंह जातियों का वोटबैंक बनाने के बजाय किसानों, महिलाओं और युवाओं को प्रभावित करने की चेष्टा कर रहे हैं। महिलाओं-बालिकाओं में वह हमेशा लोकप्रिय रहे जिसके चलते उन्हें मामा की लोक-उपाधि हासिल है। राज्य पुलिस को उनका निर्देश है कि महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों में त्वरित, पारदर्शी और कठोरतम कार्रवाई की जानी चाहिए। महिलाओं के कल्याण के लिए मध्य प्रदेश सरकार की योजनाएं नजीर मानी जाती हैं। इसी तरह किसानों के लिए भी मध्य प्रदेश उत्तम राज्य माना जाता है। यहां सरकार ने सभी प्रमुख जिंसों की उच्च एमएसपी निर्धारित कर रखी है जिसके चलते पड़ोसी राज्यों के सीमावर्ती जिलों के भी किसान मध्य प्रदेश के क्रय केंद्रों पर अपनी उपज बेचना पसंद करते हैं। परंपरागत उपज के अलावा फल-फूलों की बिक्री के लिए भी यहां अच्छे साधन उपलब्ध हैं। शायद यही वजह है कि यहां के किसानों ने महीनों से चल रहे किसान आंदोलन की ओर रुख नहीं किया।

माफिया के खिलाफ हल्लाबोल : शिवराज सिंह की खासियत उनका कूल-कूल स्वभाव है, यद्यपि चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पिछले एक वर्ष से प्रदेश में हर क्षेत्र के माफिया के खिलाफ जैसा आक्रामक अभियान चल रहा है, उससे उनकी लोकप्रियता में बढ़ोतरी स्वाभाविक है। अपराधियों के खिलाफ उन्होंने घोषणा की थी कि वे प्रदेश छोड़कर भाग जाएं, नहीं तो जमीन में गड़वा दूंगा। इसमें दोराय नहीं कि राजनेताओं की हर बात में राजनीति घुली रहती है। इसके बावजूद शिवराज सिंह की मौजूदा राजनीति मध्य प्रदेश के लिए अच्छी है।

[संपादक, नई दुनिया, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़]