मध्य प्रदेश, सद्गुरु शरण। MP Politcs कांग्रेस के कई बड़े नेता पिछले कुछ दिनों से अचानक ज्योतिरादित्य सिंधिया की चिंता में तेजी से दुबले होने लगे हैं। पहले राहुल गांधी ने चिंता जताई कि भाजपा ज्योतिरादित्य को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री क्यों नहीं बना रही? इससे पहले कि कोई और कुछ कहता, ज्योतिरादित्य ने खुद इसका जवाब दे दिया कि राहुल गांधी ने यह चिंता तब क्यों नहीं की, जब वह कांग्रेस में थे? बात तो सही है। राहुल इसका क्या जवाब देते, इसलिए चुप हो गए।

अब एक और चिंता दिग्विजय सिंह ने जताई है कि भाजपा में जाने के बाद ज्योतिरादित्य महाराज से भाईसाहब हो गए। अजीब चिंता है। दिग्विजय सिंह उम्र के हिसाब से तो मध्य प्रदेश के वरिष्ठतम नेता हैं ही, उनका सारा जीवन लोकतांत्रिक प्रणाली में उच्च भूमिकाएं निभाते गुजरा। इसके बावजूद शायद अपनी राजसी पृष्ठभूमि के कारण उनके मन में अब तक राजा-महाराजा वाली ग्रंथियां जिंदा हैं, यह जानकर उनके तमाम समर्थकों को भी धक्का लगा होगा। देश को राजा-महाराजाओं के चंगुल से मुक्त हुए करीब सात दशक बीत गए, पर दिग्विजय सिंह जैसे लोग अब तक अतीतजीवी बने हुए हैं। उन्होंने इस बात पर कभी आपत्ति नहीं व्यक्त की कि कई लोग उन्हें दिग्गी राजा क्यों पुकारते हैं। दरअसल, कई भूतपूर्व राजाओं के दिल में अब भी कोई राजा जिंदा है जो लोकतंत्र का सच स्वीकार करने को तैयार नहीं। कुछ लोग अब भी अपने घर को महल कहते हैं और ड्रॉइंगरूम की दीवारों पर अप्रासंगिक तलवारें-बंदूकें सजाकर राजा होने का भ्रम जिंदा रखते हैं। महाराज-भाईसाहब वाली ग्रंथि को ऐसे ही भ्रम से हवा-पानी मिलता है।

अब देश का संविधान असली महाराजा है। उसके प्रतिनिधि के तौर पर राष्ट्रपति, संसद, न्यायपालिका और राष्ट्रध्वज जैसे प्रतीक महाराजा हैं, कोई दिग्गी या सिंधिया नहीं। वैसे संविधान की छत्रछाया में मतदाता ही सबसे बड़ा महाराजा है जिसकी इच्छा से देश का प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री तय होते हैं। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी स्वच्छताकíमयों के पैर पखारकर तो कभी किसी किसान की बुजुर्ग मां के चरणों में झुककर बार-बार संदेश देते हैं कि अब आम आदमी ही लोकतंत्र का महाराजा है। जहां तक सिंधिया परिवार के इतिहास का सवाल है, स्वतंत्र भारत की यात्र में यह परिवार न सिर्फ वैचारिक स्वतंत्रता के लिए जाना जाता रहा, बल्कि देश की विकास यात्र में भी इसका उल्लेखनीय योगदान रहा।

ज्योतिरादित्य या उनकी पिछली पीढ़ी ने कभी राजा-महाराजा होने का ढोंग किया भी नहीं। इसके बावजूद दिग्विजय सिंह चिंतित हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अब महाराज नहीं रहे, भाईसाहब हो गए। बात सीधे ज्योतिरादित्य से संबंधित थी, इसलिए उन्हें जवाब देना चाहिए था, पर शायद उन्होंने दिग्विजय सिंह की बात को जवाब देने लायक नहीं समझा। यदि कांग्रेस नेता अब भी ज्योतिरादित्य को नहीं भूल पा रहे तो बेहतर होगा कि वे उनकी महाराज की पदवी जाने की आत्म-प्रेरित कल्पना पर आंसू बहाने के बजाय इस पर चिंतन करें कि वह कांग्रेस छोड़ने पर बाध्य क्यों हुए?

राहुल गांधी बेशक चुप्पी साध गए, परंतु ज्योतिरादित्य का सवाल अब भी मौजूं है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की फिक्र तब क्यों नहीं हुई, जब वह कांग्रेस में थे? क्या कांग्रेस को इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहिए? यदि कांग्रेस के पास दूसरों के सवालों के जवाब नहीं हैं तो उसे दूसरों से सवाल करने का अधिकार कैसे मिल गया? राहुल गांधी जैसे भी हों, आज वही कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं। क्या उनसे ऐसी टिप्पणी की अपेक्षा की जाती है, जो उन्होंने ज्योतिरादित्य के बारे में की? राहुल गांधी कभी मध्य प्रदेश आएं तो उन्हें सवालों के आंधी-तूफान का सामना करना पड़ेगा। किसान जानना चाहते हैं कि उनके कर्जमाफी के वादे का क्या हुआ, जिस पर भरोसा करके किसानों ने भारी मन से शिवराज सिंह से मुंह मोड़ लिया था और कांग्रेस की सरकार बनवा दी थी। सरकार तो अपने कर्मो से जाती रही, पर 15 महीने क्या यह वादा पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थे?

किसानों के अलावा युवा, महिलाएं, उद्योगपति-कारोबारी, खिलाड़ी, विद्यार्थी और बुजुर्ग भी सवाल सहेजे राहुल का मध्य प्रदेश में इंतजार कर रहे हैं। इधर कब आना होगा? कांग्रेस में ज्योतिरादित्य के साथ कैसा व्यवहार हुआ, यह उनके पार्टी छोड़ने से स्पष्ट है। कांग्रेस को अब समझ में आ रहा है कि ज्योतिरादित्य तमाम उपेक्षा सहकर भी किस तरह पार्टी को संभालते थे। अब नहीं हैं तो नेता तरह-तरह की विचित्र टिप्पणियां करके अपनी खिसियाहट व्यक्त कर रहे हैं।

भाजपा खुलकर स्वीकार कर रही है कि ज्योतिरादित्य के आने से मध्य प्रदेश में पार्टी को बहुत मजबूती मिली है, जबकि कांग्रेस यह स्वीकार करने में संकोच कर रही कि उसका सब कुछ लुट गया। ज्योतिरादित्य से पहले उनके पिता भी कांग्रेस में रहते हुए असंदिग्ध राष्ट्रभक्त रहे। देश की एकता, अखंडता और सामाजिक सद्भाव के प्रति सिंधिया परिवार का नजरिया सदैव पारदर्शी रहा। इस परिवार ने देश के बहुसंख्यकों को अपमानित करने या अल्पसंख्यकों का बेवजह तुष्टीकरण करने की नीति नहीं अपनाई। इसीलिए यह परिवार लोगों के दिलों पर राज करता है। इसीलिए यह परिवार लोकतंत्र का राजपरिवार है। ज्योतिरादित्य भाजपा में रहें या कहीं और, वह महाराज ही रहेंगे। वह दिल के राजा हैं, जबर्दस्ती वाले राजा नहीं।

[संपादक, नई दुनिया, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़]