सद्गुरु शरण। भोपाल का सरकारी हमीदिया अस्पताल। वहां के सेंट्रल स्टोर से करीब 850 रेमडेसिविर इंजेक्शन चोरी हो गए। कर्मचारियों ने बताया कि रात में चोर खिड़की काटकर अंदर घुसे और सिर्फ रेमडेसिविर चुराकर ले गए। पुलिस ने छानबीन की तो पता चला कि चोरी की पूरी कहानी फर्जी है। कहानीकार ही चोर हैं जिन्होंने ये कीमती इंजेक्शन स्टोर से पार करके आपस में मिल-बांट लिए। कुछ इंजेक्शन किसी मंत्री की सिफारिश पर किसी को दिए गए थे, इसलिए कर्मचारी दबाव बनाने लगे कि उन पर आंच आई तो वे मंत्रीजी की भी पोल खोल देंगे। पुलिस के सामने समस्या है कि इतने चíचत मामले को रफा-दफा कैसे करे, सो अस्पताल अधीक्षक को बलि का बकरा मान पद से हटा दिया गया है, पर पुलिस ने किसी पर अब तक हाथ नहीं डाला।

बहरहाल, यह इबारत आसमान में लिखी दिख रही है कि अस्पताल के कर्मचारियों ने ही ये कीमती इंजेक्शन स्टोर से पार करके कई गुना ऊंची कीमत पर निजी अस्पतालों को बेच दिए। कोरोना संक्रमण से पूरा मध्य प्रदेश त्रहि-त्रहि कर रहा है तो सरकारी अस्पतालों से लेकर बाजार में दैनिक घरेलू उपयोग का सामान बेचने वाले दुकानदार और फल-सब्जी विक्रेता तक शीघ्र धनवान बनने का सपना पूरा करने का यह अवसर गंवाना नहीं चाहते। पता नहीं, कोरोना की तीसरी लहर आए, न आए। इसलिए जितना संभव हो, पैसा इसी लहर में कमा लेना है। आम आदमी लाचार है। मरता क्या न करता। ज्ञानीजन बता रहे हैं कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए फल और हरी सब्जियों का खूब सेवन करिए। बेचने वाले महाज्ञानी निकले। तुरंत हर वस्तु को अधिक मूल्यवान बना दिया। कीमत सुनकर ग्राहक ने अपना मुंह जरा सा भी टेढ़ा किया तो उसे आगे बढ़ने का संकेत मिल जाता है। ग्राहकों की कमी तो है नहीं। यह नहीं तो अगला सही।

रेमडेसिविर इंजेक्शन की कुछ ज्यादा ही मांग है। निजी अस्पतालों ने ऐसा माहौल बना दिया, मानो रेमडेसिविर के बिना इलाज हो ही नहीं सकता। जैसे ही कोई मरीज भर्ती होता है, उसके तीमारदार को छह वायल रेमडेसिविर, ऑक्सीजन सिलिंडर और अनाप-शनाप दवाओं का पर्चा थमा दिया जाता है। तीमारदार इधर-उधर भटककर खाली हाथ लौटते हैं तो अस्पताल के ही डॉक्टर और कर्मचारी मुंहमांगी रकम लेकर तुरंत सब कुछ वहीं मुहैया करवा देते हैं। कड़ियां जोड़ना कतई आसान है। हमीदिया जैसे सरकारी अस्पतालों से चोरी हुए इंजेक्शन निजी अस्पतालों में कई गुना कीमत पर मरीज को मिल जाते हैं। यहां तक फिर भी गनीमत है कि सरकारी अस्पताल से चोरी करके इंजेक्शन निजी अस्पताल को बेच दिए। इस तरह धनवान बनने की भरपूर संभावना रहती है, पर गति थोड़ी धीमी होती है।

यदि रातों-रात करोड़पति बनना है तो ज्यादा स्मार्टनेस जरूरी है, जैसी इंदौर के एक सज्जन ने धारण कर रखी थी। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में नकली दवाएं बनाने की फैक्ट्री लगा रखी थी। अवसर भांपकर अपनी फैक्ट्री में नकली रेमडेसिविर का बड़े पैमाने पर उत्पादन और आपूíत शुरू कर दी। अपने उद्यम को गंभीरता देने के लिए उन्होंने सिर्फ पानी के बजाय इसमें कुछ ऐसे तत्व घोले जिनके खून में पहुंचते ही रोगी की मौत हो जाती थी। पता नहीं, इनके रेमडेसिविर से कितने रोगियों की जान गई होगी। स्वजन समझते रहे कि रोगी कोरोना के शिकार हो रहे, जबकि मौत का जिम्मेदार यह ‘धनलोलुप कोरोना’ था। इंदौर पुलिस द्वारा दबोचे जाने के बाद यह श्रीमानजी फिलहाल जेल में हैं, पर इससे उन्हें क्या फर्क पड़ता है? कभी न कभी जमानत पर रिहा हो जाएंगे। फिर मुकदमे से भी बरी हो जाएंगे। फिर कोई नकली इंजेक्शन बनाएंगे और रोगियों की जान लेंगे। कोई मरे या जिये, उनकी बला से। उन्हें तो कम समय में ज्यादा पैसा कमाना है जो असली दवाओं के कारोबार से संभव नहीं।

ऐसा नहीं कि सिर्फ रेमडेसिविर से ही कमाई का अवसर है। निजी अस्पताल तो इस तरह लूट मचाए हुए हैं, मानो कोरोना उनके लिए वरदान बनकर आया है। उनके बिल की न्यूनतम इकाई लाख है। इसके बदले इन अस्पतालों में मरीजों को कौन सा स्वर्णभस्म दिया जाता है, किसी को नहीं पता। सरकारी अस्पतालों में कोरोना संक्रमित रोगियों के इलाज में जो दवाएं दी जाती हैं, उनमें किसी की भी कीमत लाख में नहीं है। अधिकतर निजी अस्पताल सरकार से नगण्य मूल्य पर भूमि और तमाम अन्य सुविधाएं हासिल करके स्थापित किए जाते हैं। सामान्य परिस्थितियों में भी रोगियों को लूटने के लिए गैर-जरूरी जांचें और अन्य धोखाधड़ी करना इन अस्पतालों की फितरत होती है, पर कोरोना संकट को भी अवसर मानकर धनोपार्जन में जुट जाना इनके ही वश की बात है। पूरे प्रदेश में हर तरफ अजीब आलम है। चौतरफा लूट मची हुई है। जो जितना लूट सके, लूट ले। पता नहीं, फिर कब ऐसा मौका मिले। कोरोना ने हर वस्तु को कीमती बना दिया है। इस वक्त सस्ती है, तो बस आम आदमी की जिंदगी।

[संपादक, नई दुनिया, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़]