मनुष्य का जीवन अनमोल है और प्रत्येक मनुष्य का जन्म किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ है। हर मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने उद्देश्य को जाने और फिर उसकी प्राप्ति के लिए निष्ठा और लगन से जुट जाए। प्रत्येक कर्म और उद्देश्य समर्पण की मांग करते हैं। यदि हम कुछ चाहकर भी उसे प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं तो इसका कारण हमारी अकर्मण्यता व आलस्य है। किसी भी परिणाम की प्राप्ति के लिए हमें निरंतर कर्मशील, लगन और धैर्य की आवश्यकता होती है। सच्ची निष्ठा व लगन सच्ची सफलता के पर्यायवाची है। जब व्यक्ति पूर्ण निष्ठा और लगन से कर्म करता है तो उसे किसी न किसी रूप में उसका फल भी जरूर मिलता है। संसार के जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, उनकी सफलता का रहस्य यही है कि उन्होंने अपने प्रत्येक कार्य को पूरी निष्ठा और लगन से किया और कार्य की सिद्धि तक वे अपने संपूर्ण मनोयोग से कार्यरत रहे। निष्ठा और लगन से किए गए कर्म के बाद भी अगर मनुष्य को इच्छित सफलता नहीं मिलती है तो भी उन्हें सफल ही माना जाएगा। गीता में कर्म का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि मनुष्य को पूर्ण मनोयोग से कर्म करना चाहिए। फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए।
पूर्ण मनोयोग से कर्म करना ही मनुष्य का कर्तव्य है, लेकिन इससे मिलने वाले फल पर उसका कोई अधिकार नहीं। निष्ठा और लगन से कर्म करने के उपरांत मनुष्य को उसका जो भी फल मिले उसे संतोषपूर्वक ग्रहण करके संतुष्ट हो जाना चाहिए। हर बात के लिए मनुष्य को परमात्मा का कृतज्ञ होना चाहिए। अगर उसकी कोई इच्छा पूरी न भी हो तो भी उसे यही मानना चाहिए कि इसमें भी परमात्मा की मर्जी है। सच यही है कि जो व्यक्ति पूर्ण निष्ठा और लगन से कर्म करता है उसे फल की चिंता रहती भी नहीं, क्योंकि उसे अपने कर्म से ही आनंद प्राप्त हो जाता है। फिर उसे कर्म का जो भी फल मिलता है, वह उसे अतिरिक्त ही मानता है। निष्ठा और लगन के साथ जो व्यक्ति सतत कर्म करता रहता है, वही अपनी प्रतिभा को विकसित भी कर पाता है। किसी ने ठीक ही कहा है कि हम सभी के पास समान प्रतिभा नहीं है, लेकिन अपनी प्रतिभा को विकसित करने के लिए समान अवसर जरूर हैं और प्रतिभा का विकास निष्ठा, लगन और कार्यरत रहने से ही होता है। सतत अभ्यास से महाअज्ञानी व्यक्ति भी महाज्ञानी हो सकता है।
[ महर्षि ओम ]