किसी ने सही कहा है कि हिमालय से ऊंची और सागर से गहरी होती है मां की ममता। मां जैसे पवित्र शब्द में समस्त ब्रह्मांड समाया है। मां जीवन की कड़ी धूप में भी संतान का साथ नहीं छोड़ती। वह कितनी भी कोमल और कमजोर क्यों न हो, परंतु जब अपने बच्चे को संकट में घिरा देखती है तो घायल शेरनी बन जाती है। मां के पल्लू में एक बच्चा खुद को अत्यंत सुरक्षित महसूस करता है। संतान को सुख व सुविधा प्रदान करने के लिए वह सब कुछ सहने को तैयार रही है। मनुष्य के जीवन में प्रथम गुरु उसकी मां ही होती है। मां ही उसे शिक्षा और संस्कार प्रदान करती है। कहते हैं कि वीर शिवाजी की प्रसिद्धि के पीछे मां जीजाबाई का बहुत बड़ा हाथ था। एक कथा के अनुसार बालक ध्रुव को आकाश में सर्वश्रेष्ठ तारे का पद माता सुनीति की प्रेरणा से ही प्राप्त हुआ था। संतान चाहे कितने भी ऊंचे स्थान पर प्रतिष्ठित हो, मां का पद उससे भी ऊंचा होता है। सांसारिक मोह माया से विरत महर्षि और ऋषियों द्वारा भी माता को अत्यंत सम्मान प्रदान किया गया है। मां के अंतिम संस्कार के लिए आदि शंकराचार्य का आना इसी सत्यता को प्रमाणित करता है।

दया, करुणा, क्षमा और त्याग आदि गुणों की साक्षात प्रतिमूर्ति मां की महानता को चंद शब्दों में व्यक्त करना दुर्लभ है। एक बार ईश्वर ने मां से कहा, ‘यदि मैं तुम्हारे स्वर्ग को तुमसे छीन लूं तो बदले में क्या मांगोगी?’ मां बोली, ‘मैं अपने हाथों में ऐसी ताकत मांगूंगी, जो अपने संतान की तकदीर लिख सकूं।’ एक निष्ठुर व्यक्ति अपनी मां की हत्या करके उसका दिल लेकर जा रहा था, राह में पत्थर की ठोकर खाकर, गिरने ही वाला था कि मां के हृदय से आवाज आई ‘बेटा संभल कर, कहीं तुम्हें चोट तो नहीं लगी?’ ऐसी होती है मां और उसकी ममता। आधुनिक युग में हम मदर्स डे मनाकर अपनी-अपनी मांओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं, परंतु मात्र एक विशेष दिन के स्थान पर हमारी भारतीय संस्कृति में प्रतिदिन माता-पिता से आशीर्वाद लेकर दिनचर्या प्रारंभ करने का विधान बताया गया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि माता-पिता और गुरु को ईश्वर के समान माना गया है। भाग्यवान हैं वे, जिन्हें मां का आशीर्वाद प्राप्त है। मां की भावनाओं को यदि आप ठेस पहुंचाएंगे तो कभी भी सुखी जीवन नहीं बिता सकेंगे।

[ वर्षा दीपक ‘संतोष’ ]