साल 1986 के बोफोर्स घोटाले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की संलिप्तता से देश अभी निपट नहीं पाया था कि उनकी पत्नी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले में इटली की अदालत में नाम आने से देश में भूचाल-सा आ गया। अप्रैल 2016 के अंतिम सप्ताह में इटली के उच्च न्यायालय ने स्वीकार किया कि 3546 करोड़ रुपये के अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीद में 125 करोड़ रुपये भारतीय राजनीतिज्ञों, सैन्य अधिकारियों और नौकरशाहों को दिए गए और उस सौदे को मुकाम तक पहुंचाने में सोनिया गांधी की कथित रूप से प्रमुख भूमिका रही। न्यायालय ने पूर्व वायुसेना अध्यक्ष एसपी त्यागी के साथ-साथ सोनिया के सचिव अहमद पटेल और उनके करीबी ऑस्कर फर्नांडीस के भी इसमें शामिल होने का संकेत दिया है। इसी आधार पर भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और अहमद पटेल आदि की अगस्ता घोटाले में संलिप्तता जांचने के लिए सुनवाई का निर्णय लिया।

बोफोर्स और अगस्ता अंतरराष्ट्रीय सौदे थे इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी गूंज रही। जहां अगस्ता हेलीकॉप्टर ने रूस के एमआई-8 को विस्थापित किया वहीं उसने अमेरिकन हेलीकॉप्टर ईसी-225 को प्रतिस्पर्धा से बाहर करवा दिया। इसके लिए अतिविशिष्टजनों के लिए प्रयोग किए जाने वाले हेलीकॉप्टर के मानकों में परिवर्तन किए गए और ये परिवर्तन तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यालय के निर्देश पर किए गए। इसीलिए भारत के रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने शंका व्यक्त की कि अगस्ता हेलीकॉप्टर की खरीद में किसी अदृश्य शक्ति का हाथ था। चूंकि डॉ. मनमोहन सिंह के सरकार में रक्षामंत्री रहे एके एंटनी ने भी अगस्ता सौदे में भ्रष्टाचार स्वीकार किया है इसलिए अब यह निर्विवाद है कि हेलीकॉप्टर की खरीद में गलत लेनदेन हुआ है। प्रश्न केवल इतना है कि वह पैसा गया कहां और किसके पास कितना गया? देश में भ्रष्टाचार इतने गहरे पैठ गया है कि जनता को नए घोटालों पर कोई आश्चर्य नहीं होता। दुख जरूर होता है कि उसकी मेहनत की कमाई नेता, नौकरशाह, उच्च पदाधिकारी और बिचौलिए हड़प लेते हैं। यह सिलसिला पिछले साठ-सत्तर वर्षों से अनवरत चल रहा है। मोदी सरकार के आने से कुछ उम्मीद जगी है। सरकार ने पिछले दो वर्षों में कोई भ्रष्टाचार नहीं किया है और कुछ ऐसा व्यवस्थामूलक परिवर्तन करने में जुटी है कि भ्रष्टाचार पर नियंत्रण लग सके। प्रधानमंत्री मोदी का संकल्प कि न खाएंगे, न खाने देंगे एक कठिन संकल्प है और खतरनाक भी, क्योंकि जो लोग भ्रष्टाचार से लाभान्वित होते रहे हैं वे मोदी के संकल्प से काफी संकट में होंगे। हालांकि जनता इस संकल्प के साथ है, क्योंकि भ्रष्टाचार से समाज का हर तबका त्रस्त है।

प्रधानमंत्री मोदी ने जब कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया तब हमें अच्छा नहीं लगा। कारण कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक राष्ट्रीय विकल्प जरूरी है, लेकिन संभवत: हम उस नारे का निहितार्थ समझ नहीं पाए। शायद मोदी ने कांग्रेस को भ्रष्टाचार के प्रतीक के रूप में देखा और उनका अभिप्राय भ्रष्टाचार मुक्त भारत से था। बोफोर्स कांड 1986 में हुआ था। उसके पूर्व 1985 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला था, लेकिन बोफोर्स के कलंक से कांग्रेस पार्टी 1989 में सत्ता से बाहर हो गई, पर किसी अन्य पार्टी के राष्ट्रीय पटल पर न होने से कांग्रेस 1991 में पुन: सत्तासीन हो गई। आज भाजपा राष्ट्रीय पटल पर सशक्त विकल्प के रूप में मौजूद है और कांग्रेस की लोकप्रियता ढलान पर है। धीरे-धीरे कांग्रेसी नेता राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां बनाकर कांग्रेस को कमजोर कर रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में हेलीकॉप्टर घोटाले से कांग्रेस के प्रति लोगों में और भी आक्रोश भर सकता है, जो न केवल उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनावों, बल्कि लोकसभा चुनाव 2019 में भी कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर के प्रयासों को धक्का पहुंचा सकता है।

सही अर्थों में देश में कांग्रेस और भाजपा का ही अखिल भारतीय चरित्र है। अभी तक भाजपा को सभी पार्टियों ने मिलकर सांप्रदायिकता के मुद्दे पर घेर रखा था, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने उस मिथक को तोड़ दिया। उसने अपने को विकास के मुद्दे से जोड़ लिया। आज मोदी सरकार के दो वर्षों के शासन के बाद उस पर सांप्रदायिकता का आरोप नहीं है, यद्यपि पार्टी के इक्का-दुक्का अतिवादी कभी-कभी गैर जिम्मेदार बयान देते हैं। धीरे-धीरे मुस्लिम समाज के लोग भी मोदी के प्रति अपने रुख में बदलाव ला रहे हैं। जाहिर है, यह उन तमाम नेताओं और पार्टियों के लिए चिंता का विषय है जो स्वयं को धर्मनिरपेक्ष और भाजपा को सांप्रदायिक होने का प्रमाणपत्र देते रहते हैं। इस संबंध में जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाना, पाकिस्तान और पश्चिमी एशिया से मधुर संबंध स्थापित करना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वयं एवं देश के लिए सम्मान अर्जित कर मोदी ने ऐसी पार्टियों और नेताओं को मुंहतोड़ जवाब दिया है।

जिस तरह से अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले से कांग्रेस बैकफुट पर आ गई है उससे यह तो तय है कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भाजपा इसे जरूर भुनाना चाहेगी। साल 2014 का लोकसभा चुनाव भाजपा ने विकास के मुद्दे पर लड़ा था। साल 2019 का चुनाव वह संभवत: भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लडऩा चाहेगी। कांग्रेस ने उसे यह मुद्दा एक थाली में परोस कर दे दिया है। लोगों में अभी से यह चर्चा है कि मोदी सरकार एक साफ-सुथरी सरकार है, लेकिन लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि वे मोदी सरकार के अच्छे दिन के वायदे को कैसे परखें। अच्छे दिन की सबकी अपनी-अपनी परिकल्पना है। अमेरिकी विचारक जॉन रॉल्स के अनुसार इसका सीधा मतलब यह होता है कि समाज में हर व्यक्ति को यह महसूस हो कि कल की तुलना में उसका वर्तमान आर्थिक पक्ष कुछ बेहतर हुआ है। मोदी सरकार की जनधन योजना और सब्सिडी को सीधे उपभोक्ताओं के खाते में डालने आदि जैसी योजनाओं से समाज का निचला तबका जरूर लाभान्वित हुआ है। भले ही मध्य वर्ग और उच्च वर्ग को उसका महत्व उतना समझ में न आ रहा हो, पर चुनाव के दृष्टिकोण से वही निचला तबका बहुत महत्वपूर्ण है। विकास की अवधारणा जितनी बड़ी होगी, भ्रष्टाचार की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी। मोदी के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है। बोफोर्स से अगस्ता तक अनेक घोटाले इसके ज्वलंत उदाहरण हैं, लेकिन यदि मोदी भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में सफल हो सकें तो न केवल युग पुरुष के रूप में जाने जाएंगे, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के एक नए अध्याय के रचयिता भी कहलाएंगे।

[ लेखक डॉ. एके वर्मा, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स के डायरेक्टर हैं ]