रघोत्तम शुक्ल। चीन के उकसावे में अकड़ दिखाने वाले नेपाल के कम्युनिस्ट शासक ने पहले नक्शों में हेराफेरी करके कुछ भारतीय भूभाग को अपने अधिकार क्षेत्र में दर्शाया और अब वह राम व अयोध्या की स्थिति अपने देश में बताकर इतिहास और भूगोल को मुंह चिढ़ा रहा है। भारत से सदियों पुराने राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और व्यापारिक संबंधों को कृतघ्नतापूर्वक नजरअंदाज करने वाले नेपाल के शासक को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह हमारे अधीन रहा है और उसे महाभारत काल में हमारे अंग देश यानी वर्तमान भागलपुर के राजा कर्ण ने दिग्विजय के क्रम में पराजित किया था। महाभारत के वन पर्व के तहत अध्याय 254 में इसका उल्लेख इस प्रकार है :

प्रययौ च दिशः सर्वान् नृपतीन् वशमानयत्।

स हैमवतिकाञजित्वा करं सर्वानदापयत्।।

नेपाल विषये ये च राजानस्तानवाजयत्।

अवतीर्य ततः शैलात् पूर्वां दिशमभिद्रुतः।।

अर्थात वहां से सब दिशाओं में जाकर उसने समस्त राजाओं को अपने अधीन किया और हिमालय के सभी भूपालों को जीतकर उनसे कर यानी टैक्स लिया। उसके पश्चात नेपाल देश के जो राजा थे, उन पर विजय प्राप्त करने के बाद पर्वत से नीचे उतर कर पूर्व दिशा की ओर कूच किया। यह तो जगजाहिर है कि कुंतिपुत्र कर्ण से उसकी घनिष्टता थी और दुर्योधन ने ही उसे अंग देश का राजा बनाया था। उसने दुर्योधन के समर्थन पर विजय यात्रा का उद्घोष किया, जिसे –घोषयात्रा- का नाम दिया गया।

श्रीराम का इराक तक व्यापक साम्राज्य : जहां तक मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की बात है तो उनका व्यक्तित्व इतना विराट है कि हर कोई उन्हें अपना कहते हैं। इसलिए यदि हिंदू राष्ट्र नेपाल कहे कि वह उनके थे, तो इसमें कोई बुराई नहीं है। ईराक में –हुफरात- के तट पर सूर्य मंदिर में एक राज वंशावली मिली थी, जिसमें श्रीरामचंद्र नामक एक राजा का उल्लेख है। ऐतिहासिक साहित्य लेखक अमृतलाल नागर ने लिखा है कि रघु ने ईरान और राम ने इराक जीता था। राम इतने प्रतापी थे कि उन्होंने दूर-दूर तक देश जीत कर सुशासन स्थापित किया और अपने साम्राज्य को व्यापक बनाया, किंतु उनकी जन्मभूमि तो आज के उत्तर प्रदेश की सरयू तट पर स्थित अयोध्या ही है।

लिहाजा आज भगवान श्रीराम से संबंधित किसी तथ्य को तोड़ना मरोड़ना उचित नहीं है। यह राजनीति प्रेरित है। तमाम प्राचीन गंथों में इसका उल्लेख है, जो राजनीतिक न होकर धार्मिक और साहित्यिक हैं। वाल्मीकि रामायण में भी यह विस्तार से वर्णन किया गया है कि –कोसल- नामका एक प्रसिद्ध जनपद है, जो सरयू किनारे बसा है। यह प्रचुर धनधान्य पूर्ण है और समृद्धशाली है। इसमें अयोध्या नामक नगरी है जो तीनों लोकों में विख्यात है। इसे मनु ने बसाया था। यह बारह योजन लंबी और तीन योजन चौड़ी है। महाभारत काल में यहां दीर्घयज्ञ नामक राजा राज्य करते थे।

अयोध्या कई बार उजड़ी और बसी। कालिदास ने –रघुवंश- के 16वें सर्ग में एक रोचक वृत्तांत लिखा है। भगवान राम के पुत्र कुश एक रात अपनी राजधानी कुशावती नगरी में अपने शयन कक्ष में सोए थे। चारों ओर से बंद कक्ष में एक विषादग्रस्त, विवर्ण मुख स्त्री प्रकट होती है और कहती है, -महाराज! मैं अवधपुरी हूं। जब से आपके पिता समस्त प्रजा सहित सरयू में समाहित होकर संतानिक लोक सिधार गए, तब से मैं सूनी पड़ी हूं। महाराज कुश ने सेना सहित तत्काल अयोध्या प्रस्थान किया और उसे बसाया। कुश के बाद उनके 20 वंशजों का उल्लेख रघुवंश में है। कुशावती की स्थिति विंध्य गिरिमाला की ढलान पर थी।

मार्कंडेय पुराण के अनुसार राजा हरिश्चंद्र ने अयोध्या में राज किया और उनके साथ सारी प्रजा बैकुंठ चली गई। हिस्ट्री ऑफ कन्नौज में डॉ आरएस त्रिपाठी लिखते हैं कि यहां कश्मीर के राजाओं का भी शासन रहा जिन्हें महाराज विक्रमादित्य ने पराजित किया और पुनरुद्धार किया। सोलहवीं शताब्दी में यहां जैन धर्म के राजाओं का राज्य था। तो भाई, केपी शर्मा ओली, इसे नेपाल में कहां ले जा रहे हो, चीन के हाथों में इतना खेलना ठीक नहीं।

[पूर्व प्रशासनिक अधिकारी]