राज्यनामा [उत्तर प्रदेश]। भगवा पार्टी ने मंत्री जी को दूसरे जिले की सीट पर उनकी बिरादरी की बहुलता के चलते चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन, मंत्री जी करिश्मा नहीं कर पाए। मंत्रिमंडल के उनके बाकी साथी चुनाव जीत गये तो उन पर तोहमत अलग लगी कि उनके विभाग में भ्रष्टाचार का असर चुनाव परिणाम पर पड़ा है। यह बात और है कि जब मंत्रिमंडल के जीते हुए साथी केंद्र वाली सरकार में शपथ लेने से वंचित रह गए तो जनाब के चेहरे पर पहली बार मुस्कुराहट आयी। वह हार का गम भूल गए। इसकी वजह भी साफ है। जो यूपी सरकार के मंत्री सांसद बन गए, उनकी तो यूपी की चौधराहट दो चार दिन में जाने वाली है लेकिन, ये भले चुनाव हार गए, मगर मंत्री पद तो बचा हुआ है। अब जब तक मंत्रिमंडल में फेरबदल नहीं होता है, तब तक तो खुशी कायम है ही। आगे भी भगवान भरोसे नैया पार हो जाएगी। कहने वाले तो अब यह भी कहने लगे हैं कि मंत्री जी खुद भी लोकसभा जाने के लिए बहुत इच्छुक नहीं थे।

घर मिला न घाट : साइकिल और हाथी में जब चुनाव से पहले दोस्ती हुई थी, तब और लोग चाहे जो कह रहे हों लेकिन, लाल टोपी और हाथी वालों को यकीन था कि नतीजे अच्छे आएंगे और उनका साथ नहीं छूटेगा। चुनाव परिणाम आए तो हाथी पस्त था और साइकिल भी इस हाल में हो गई कि जैसे हाथी उस पर पैर रखकर निकल गया हो। इसकी आशंका दोनों को नहीं थी, उस पर झटका भी जोरदार लगा था तो शुरू में दोनों को ही नहीं सूझा कि अब ऐसे में कहें तो क्या। दूसरी तरफ उम्मीद भी थी कि दोनों की दोस्ती शायद आगे चुनावों में कोई गुल खिला दे। घर छोड़कर हाथी से दोस्ती करने वाली साइकिल ने इसी लिहाज में चोट सहते हुए भी जुबां बंद रखी लेकिन, हाथी ने सूंड़ में लपेट कर यह कहते हुए साइकिल दूर फेंक दी कि इस दोस्ती से कुछ फायदा नहीं हुआ। सूबे के सियासी पर्दे पर उतरे इस दृश्य से विरोधियों को तो मजा आ गया लेकिन, साइकिल की हालत ऐसी हो गई कि कुर्बानी के बदले मिली दोस्ती से भी वंचित किए जाने के बाद उसे बधाई देने के सिवाय शब्द नहीं मिले। अब लोग चुटकी ले रहे हैं कि साइकिल तो न घर की रही न घाट की।

भगवा इफेक्ट : यूपी पुलिस की एक खास विंग के मुखिया पर इन दिनों भगवा इफेक्ट की रंगत थोड़ी जुदा है। खास रंग से उनका कनेक्ट साहब की शर्ट बिना कुछ कहे बयां करती है। बीते दिनों पुलिस की यह खास विंग अपनी कार्यशैली को लेकर सुर्खियों में आई तो साहब के रंग विशेष से प्रेम को लेकर भी खूब चर्चाएं हुईं। लोकसभा चुनाव में इन अफसर ने वोट डालने के बाद अपनी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा की थी, जिसमें उनकी शर्ट का रंग भगवा था। हाल ही में पुलिस के एक बड़े आयोजन भी यह अफसर भगवा शर्ट में ही नजर आये। इस दिन इन्हें वरिष्ठ अफसरों से खास प्रयोजन के लिए खूब सराहना मिली। चर्चा यह भी है कि साहब अपने गेटअप से ही संदेश दे देते हैं। अब जो बूङो वो खिलाड़ी, जो न बूङो वो अनाड़ी।

न बोले तुम न मैंने कुछ कहा : दुनिया की सबसे बड़ी बोर्ड परीक्षा कराने वाले महकमे में चहेतों को उपकृत करने के खेल में विभाग की गर्दन फंसने लगी है। मामला सरकारी इमदाद से चलने वाले विद्यालयों में कर्मचारियों की भर्ती से जुड़ा है। फिर क्या था, विभाग के अधिकारी और कर्मचारी ‘बातों-बातों में’ फिल्म का मशहूर गाना ‘न बोले तुम न मैंने कुछ कहा’ गुनगुनाने को मजबूर हो गए, क्योंकि विभाग के सर्वे सर्वा अपने ऊपर कुछ नहीं लेना चाहते। कानूनी दांव पेंच में वह फंसना नहीं चाहते। ऐसे में विभाग में अब टोपी किसके सिर पहनाई जाए ऐसे बलि के बकरे ढूंढ़ने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। हमेशा पतली गर्दन ही नपती है। लिहाजा छोटे कर्मचारियों का फंसाने के लिए लिखा-पढ़ी शुरू हो गई है। कर्मचारी तो यहां तक कह रहे हैं कि नौकर रखे साहब ने और मलाई भी उन्होंने ही खाई। अब फर्जी आदेश पकड़ाकर जान सांसत में हमारी फंसाई।

पोस्टिंग का मोहपाश : बच्चों की गर्मी की छुट्टियां होने के बावजूद कई नौकरशाह घूमने-फिरने का प्रोग्राम नहीं बना पा रहे हैं। ब्यूरोक्रेसी में जो फेरबदल होना था, वह लोकसभा चुनाव के कारण नहीं हो सका। चुनाव से फुर्सत पाने के बाद अब तबादलों का दौर चालू होगा। पुलिस अफसरों के ट्रांसफर से इसकी शुरुआत हो चुकी है। लिहाजा मलाईदार और रसूखदार पदों पर बैठे अफसर तो अपनी कुर्सी बरकरार रखने की सेटिंग में लगे हुए हैं। वहीं हाशिये पर पड़े अफसर मुख्यधारा में आने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं। साहबान का गर्मी का मौसम जो पहाड़ों और विदेश में सुकून से बीतता था, वह अब बढ़िया पोस्टिंग हासिल करने के लिए गोटियां बिछाने में बीत रहा है। शासन के कुछ बड़े ओहदों के दावेदारों के बीच तो जबर्दस्त प्रतिद्वंद्विता है। दावेदार शासन में अपने पैरोकारों से लेकर दिल्ली दरबार तक की गणोश परिक्रमा करने में जुटे हैं। घर के मोर्चे पर उन्हें भले ताने सुनने को पड़ रहे हों लेकिन, आखिर सवाल करियर का जो है।

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