[ प्रो. हरिकेश सिंह ]: यदि आबादी और संसाधन के दृष्टिकोण से देखा जाए तो भारत कोरोना कहर से अपेक्षाकृत कम हानि वाला देश बनकर उभरा है। इसमें हमारी देशज जीवन पद्धति, राष्ट्र मन की शक्ति, सरकार का संकल्प और लोक कल्याण के प्रति सामूहिक प्रतिबद्धता का सर्वाधिक योगदान है। कोराना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए दुनिया में जो प्रथम प्रयास किया गया वह लॉकडाउन ही रहा। मोदी सरकार ने भी इसी रणनीति को अपनाया, लेकिन कांग्रेस सहित कई दल इस लॉकडाउन को बिना सोचे समझे हड़बड़ी में उठाया गया कदम बताते रहे और वह भी तब जब दुनिया में भारत की रणनीति और सफलता की चतुर्दिक प्रशंसा हो रही थी। ऐसा लगता है कि विपक्षी दल लॉकडाउन की सफलता को पचा नहीं पाए और इसीलिए वे उलटे-सीधे बयान देते रहे। इस मामले में कांग्रेस की अतार्किक और आत्मघाती बयानबाजी उसे और गर्त में ले जा रही है। यही स्थिति कुछ क्षेत्रीय दलों की भी है।

लॉकडाउन से देश में लाखों लोगों की जीवन रक्षा हुई 

लॉकडाउन से देश में लाखों लोगों की जीवन रक्षा हुई है। जीवन सर्वोपरि है और जीवन रक्षा यदि बिना किसी लागत के हो सके तो यह सबसे बड़ी मानवीय उपलब्धि है। इसकी प्रशंसा करने के विपरीत उपहास और आलोचना करने वाले राजनेता इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि आमजन में उनके आचरण की कितनी निंदा हो रही है? लगता है कि उनके लिए राष्ट्र हित और मानव हित से ऊपर राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता ही है। शायद वे यह भूल चुके हैं कि मानव जाति रहेगी तभी समाज रहेगा और जब समाज रहेगा तभी राष्ट्रबोध और राजनीति रहेगी, परंतु उनकी सोच दल की विरासत और सियासत तक ही सीमित है। इनकी यह अ-राष्ट्रीय मानसिकता और आचरण आज कोरोना के कहर से भी अधिक पीड़ा दे रही है।

प्रत्येक व्यक्ति कोरोना से अपनी जीवन रक्षा के लिए स्वच्छता के नियमों का पालन कर रहा

लॉकडाउन की कुछ उपलब्धियां ऐसी हैं जो राष्ट्रीय जन जीवन के लिए सदैव आवश्यक थीं, परंतु जब तक आम जनजीवन सामान्य था तब उनकी ओर अपेक्षित गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा था। जैसे कि स्वच्छता के लिए पिछले पांच वर्षों से लगातार आग्रह किया जा रहा था, परंतु तब उस पर उतना ध्यान नहीं दिया गया। इस समय प्रत्येक व्यक्ति कोरोना से अपनी जीवन रक्षा के लिए विशेष रूप से व्यक्तिगत और सामूहिक, दोनों प्रकार की स्वच्छता के नियमों का पालन कर रहा है। साथ ही मितव्ययिता के नियमों का पालन कर रहा है। आध्यात्मिक अनुष्ठान एवं अध्ययन कर रहा है। संकल्पवान बन रहा है। अपनी देशज जीवन पद्धति का अनुपालन कर रहा है। परिवार को अधिक समय दे रहा है।

लॉकडाउन के चलते लोगों में देश भक्ति की भावना जाग रही

एक तरह से देखा जाए तो लोगों में देश भक्ति की भावना जाग रही है। उनमें स्थानीय समुदाय के प्रति अभिरुचि भी जागृत हो रही है। सामाजिक अनुशासन, कर्तव्य परायणता, सरकारी कर्मचारियों के अंदर कर्तव्य बोध पैदा हो रहा है। चिकित्सकों, पुलिसर्किमयों और अन्य संगठनों के अंदर भी समाज सेवा की ललक देखी जा सकती है। ऑनलाइन शिक्षा का तेजी से प्रसार भी देखा जा सकता है। वित्तीय संसाधनों के प्रबंधन में सुधार नजर आ रहा है। स्थानीय प्रशासन, प्रांतीय सरकार तथा केंद्र की सरकार के आदेशों-निर्देशों का लोग पालन कर रहे हैं।

खानपान में संयम और भविष्य के लिए सकारात्मक नजरिया

खानपान में संयम बरत रहे हैं और भविष्य के लिए सकारात्मक नजरिया अख्तियार कर रहे हैं। ये उपलब्धियां सामान्य नहीं हैं। लोगों में देश और समाज के प्रति जो भाव पैदा हुआ है उसे बनाए रखने की आवश्यकता है। जब लोगों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल रहा है तब कुछ दलों के सोचने-समझने का नजरिया पहले जैसा ही संकीर्ण बना हुआ है। वे अनावश्यक आलोचना और निंदा में मशगूल हैं।

लॉकडाउन के दौरान जनता को कठिनाइयों और कठोरता का अनुभव हो रहा

नि:संदेह लॉकडाउन के दौरान जनता को कठिनाइयों और कठोरता का अनुभव हो रहा है, परंतु जीवन, समाज एवं राष्ट्र के प्रति जिस नवचेतना का सृजन हुआ है उसका दूरगामी लाभ भी होगा। यह कष्टपूर्ण, परंतु अविस्मरणीय राष्ट्रीय अनुशासन का पर्व सिद्ध होगा।

भारत में 1975 तक पक्षी दल राष्ट्रीय मुद्दों पर संसद में स्वस्थ बहस करते थे

भारत के स्वतंत्र होने के बाद से 1975 तक विपक्षी दल एवं प्रमुख विपक्षी नेतागण राष्ट्रीय मुद्दों पर संसद में स्वस्थ बहस करते थे और स्वयं आगे बढ़कर सरकार को सकारात्मक सुझाव भी देते थे। इतना ही नहीं विपक्ष के नेता होते हुए भी अपने दल और अपनी ओर से सरकार की उपलब्धियों की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते थे। इससे लोकतंत्र की मर्यादा भी बनी रहती थी और विपक्षी दलों एवं उनके राष्ट्रीय नेताओं का सम्मान भी सर्वदलीय होता था। चाहे चीन का युद्ध रहा हो, तिब्बतियों को शरण देना रहा हो, नेपाल में लोकतंत्र की बहाली रही हो, बांग्लादेश की लड़ाई रही हो अथवा अन्य विभीषिकाएं रही हों सभी विपक्षी दल सरकार के साथ खड़े दिखाई देते थे।

आज का विपक्ष राष्ट्रीय उपलब्धियों की निंदा कर रहा, जनमानस में अविश्वास फैला रहे हैं

लेकिन आज का विपक्ष वर्तमान सत्ता दल एवं इसके नेतृत्व के विपरीत विषवमन कर रहा है और राष्ट्रीय उपलब्धियों की उपहासात्मक निंदा कर रहा है। यह अति चिंता का विषय है। इससे उनका ही जनाधार क्षीण हो रहा है। वे राष्ट्रीय मानस को भी निर्बल बना रहे हैं तथा जनमानस में अविश्वास फैला रहे हैं। यह वही निंदक वर्ग है जिसे र्सिजकल स्ट्राइक को भी सही मानने में कठिनाई हो रही थी। वे र्सिजकल स्ट्राइक का प्रमाण पत्र मांगते रहे।

लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए आवश्यक है कि सभी स्वर आपात स्थितियों में सरकार का करें सहयोग

एक श्रेष्ठ लोकतांत्रिक और उसकी राज्य व्यवस्था के लिए यह आवश्यक है कि आपातकालीन परिस्थितियों के समय सभी एक स्वर से सरकार के निर्णयों के क्रियान्वयन में सहयोग करें। सर्वदलीय निर्णय, सर्वदलीय उपलब्धि एवं सर्वदलीय स्वीकार्यता के सूत्रों की सभी वर्गों, दलों, कार्मिकों एवं आम नागरिकों द्वारा प्रशंसा करनी चाहिए, ताकि राष्ट्रबोध सु-संगठित हो सके। अब भी समय है। विपक्ष राष्ट्र हित में पुनरावलोकन करते हुए राष्ट्रीय उपलब्धियों को अपरिहार्य रूप से स्वीकार करे। इसी में देश और उसका भला है।

( लेखक जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के पूर्व कुलपति हैं )