[ राजीव शुक्ला ]: आज लता मंगेश्कर जी अपने जीवन के 90वें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं। कोकिला कंठ, स्वर साम्राज्ञी, भारत रत्न लता जी आज भी उतनी ही सक्रिय हैैं और अपनी दिनचर्या उसी तरह पूरी करती हैं जैसे वह पिछले कई दशकों से करती चली आ रही हैं। पिछले दिनों उन्होंने हमेशा की तरह गणेशोत्सव के अवसर पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की थी और मुझे दर्शन के लिए बुलाया। वह अपने पूरे परिवार, नाते-रिश्तेदारोंके साथ इस उत्सव में मगन थीं। पूजा-पाठ उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है, लेकिन वह बेहद सादगी से रहती हैैं। इतनी बड़ी गायिका होने के बावजूद वह एक छोटे से फ्लैट में रहती हैं। छोटा सा ड्राईंग रूम, उसी में छोटा सा मंदिर। कुल दो कमरे हैं, लेकिन परिवार से उन्हें इतना लगाव है कि सबको अगल-बगल के फ्लैट में ही रखती हैं।

गणेश उत्सव पर मुझे उनके यहांं आशा भोसले, मीना मंगेशकर, ऊषा मंगेश्कर, हृदयनाथ मंगेश्कर यानी सारे बहन-भाई मिले। जहां लता जी 90वें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं वहीं मीना जी 88वें वर्ष में, आशा जी 86वें वर्ष में, ऊषा जी 84वें में और हृदयनाथ जी 82वे में। सभी इतने ऊर्जावान हैैं कि देखते ही बनता है। यह एक संयोग है कि इन सभी का जन्म सितंबर माह में हुआ और सबमें आपस में बहुत प्रगाढ़ता है। हालांकि सई परांजपे की ‘सुर’ नामक फिल्म में एक तरह से यह दिखाया गया था कि लता जी और आशा जी के बीच झगड़ा था और लता जी कैसे आशा जी को गाना नहीं गाने देना चाहती थीं। असलियत इससे अलग है। आशा जी ने बताया, ‘‘अभी पिछले हफ्ते मेरा जन्मदिन था, लेकिन मैंने अपनी बेटी की मौत के गम में उसे नहीं मनाया। सिर्फ एक ही काम किया और वह था दीदी से आर्शीवाद लेने का। पूरे दिन मैं उनके पास रही और शाम को हम सब बाहर खाना खाने गए।’’

लता जी और आशा जी हमेशा से एक ही साथ एक ही घर में रहीं और आप बिना लता जी के फ्लैट में गए आशा जी के फ्लैट में नहीं जा सकते। लता जी का कहना था, ‘हम इतने करीब हैं कि एक-दूसरे से मतभेद का प्रश्न ही नहीं उठता, लेकिन इन अफवाहों ने हमेशा हमारे परिवार को सताया है।’ किसी को भी यह जानकर ताज्जुब होगा कि इस उम्र में भी लता जी रोज गाने का अभ्यास करती हैैं और आशा जी तो बाहर जाकर प्रोग्राम भी करती हैं।

लता जी का कहना है कि उन्हें बाहर जाकर स्टेज पर गाना अच्छा नहीं लगता। उनके अनुसार वह आज भी अपने आपको स्टूडियो का सिंगर मानती हैैं। उनके पास इस उम्र में भी स्टेज पर गाना गाने के प्रस्ताव आते हैैं और टीवी चैनल एक-एक कार्यक्रम के लिए करोड़ों रूपये देने को तैयार रहते हैं, लेकिन पैसे का लालच उन्हें छू तक नहीं गया। साधारण सोफा, साधारण से बेडरूम में उनका पूरा दिन गुजरता है। वह जान-पहचान के लोगों से फोन पर बात करती हैं और हर रोज किसी न किसी मसले पर ट्वीट करती हैैं। वह अक्सर ही किसी न किसी को जन्मदिन की बधाई देती हैैं या फिर फिल्मी दुनिया के दिग्गजों और अपने साथ काम करने वालों का स्मरण करती हैैं। शायद ही कोई ऐसा क्रिकेट मैच हो जिसे वह टीवी पर न देखती हों। कभी कुछ अच्छा नहीं लगता तो वह फोन करके मुझे अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराती हैैं।

लता जी के जीवन के अतीत में जाया जाए तो उनकी जिंदगी हमेशा संघर्षों से भरी रही। 13 वर्ष की उम्र में पिता की मृत्यु हो गई। लता जी ने नौ लोगों का परिवार 14 वर्ष की उम्र से ही पाला। जब वह कोल्हापुर में रहती थीं तो एक बार उनके यहां पैसों की तंगी के कारण खाना नहीं बना। सारे भाई-बहन भूखे थे, पास में ही उडुपी रेस्टोरेंट था। उनकी पुरानी नौकरानी परेशान होकर वहां से खाना मांग लाई, जिसे देखते ही सारे भाई-बहन उसे खाने दौड़े। इसी दौरान अंदर से उनकी मां आ गईं और उन्होंने पूछा कि यह खाना कहां से आया। जब उन्हें बताया गया कि रेस्तरां से मांग कर लाया गया है तो उन्होंने उसे लेने से इन्कार कर दिया और कहा कि हम सब भूखे मर जाएंगे, लेकिन भीख का खाना नहीं खाएंगे।

लता जी ने यह सब याद करते हुए कहा कि वह बात उन्हेें ऐसी लगी कि उन्होंने नौकरी करने का फैसला किया। उन्होंने कोल्हापुर के एक स्टूडियों में 30 रुपये महीने की बाल कलाकार की नौकरी कर ली और उसी से पैसा बचाकर जैसे-तैसे गुजारा किया। बाद में जब वह मुंबई आईं तो स्टूडियों में काम की तलाश में पैदल ही धूप में जाना पड़ता था, क्योंकि कई बार उनके पास बस के लिए पैसे नहीं होते थे। तब गायकों को बहुत कम पैसा मिलता था। उन्होंने किसी तरह कई सालों में एक लाख रुपये इकट्ठे किए थे। ज्यादा ब्याज मिलने की आस मेंं वह अपना पैसा एक प्राईवेट बैंक में जमा कराती थीं। एक दिन पता चला कि बैंक वाले सारा पैसा हड़प कर भाग गए। पूरा परिवार फिर संकट से घिर गया, लेकिन वह संघर्ष करती रहीं और धीरे-धीरे नाम भी कमाने लगीं। उनका पहला सबसे मशहूर गाना 1948 में ‘आयेगा आने वाला था..’ जिसका उन्हें 400 रुपये मेहनताना आज तक नहीं मिला।

उन्होंने बताया कि उनके सैकड़ों गानों का पैसा उन्हें नहीं मिला, लेकिन म्यूजिक कम्पनियों ने उनसे लाखों-करोड़ों रुपये कमा लिए। वह दो गायकों नूरजहां और मेहंदी हसन को बहुत मानती थीं। नूरजहां से उनकी इतनी दोस्ती थी कि वह वाघा बार्डर पर अक्सर जाती थीं। तब उधर लाहौर से नूरजहां आती थीं। दोनों एक-दूसरे के लिए खाना बनाकर लातीं और घंटों बातें करतीं। दोनों तरफ के अफसर उनकी इस मुलाकात में मदद करते थे।

एक बार वह कनाडा में चुपचाप मेहंदी हसन के शो में पीछे जाकर बैठ गईं। मेहंदी हसन ने उन्हें देख लिया और उनके पास जाकर उन्हें आगे ले आए। उन्होंने श्रोताओं से कहा कि इतनी बड़ी गायिका के सामने मुझे गाने की हिम्मत ही नहीं है। लता जी के बहुत आग्रह के बाद उन्होंने अपना गायन शुरू किया। लता दीदी को गाते हुए 77 वर्ष पूरे हो चुके हैैं। यही कामना है कि वह दीर्घायु हों और अपने सुरों को आगे भी इसी तरह बिखेरती रहें।

[ लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं ]