[ केसी त्यागी ]: सरदार वल्लभ भाई पटेल की 144वीं जयंती इसलिए विशेष है, क्योंकि उनके स्मरण में 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर को आधिकारिक रूप से दो भागों में विभाजित करने के काम को अंजाम दिया जा रहा है। इसके पहले गृह मंत्रालय की ओर से यह घोषणा की गई थी कि पुलिस एवं सभी अर्धसैनिक बलों के कार्यालयों में उनका चित्र अवश्य इस्तेमाल किया जाए। इससे यही स्पष्ट होता है कि वर्तमान सरकार के लिए महात्मा गांधी के बाद लौह पुरुष सरदार पटेल सर्वाधिक सम्मानित शख्सियत हैं। कांग्रेस सरकार ने तो उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने में लगभग 40 वर्ष लगा दिए थे।

विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’

यह सर्वविदित है कि कैसे सरदार पटेल अपनी अनुशासनात्मक क्षमता और मजबूत नेतृत्व के बल पर 565 प्रांतों को भारत के साथ जोड़ने में कामयाब हुए थे। सरदार पटेल के इस योगदान के लिए पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी 182 मीटर लंबी विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण किया था। यह मूर्ति स्थल आज पर्यटन का बड़ा केंद्र बन गया है। यह सच है कि सरदार पटेल न होते तो आज भारत का भौगोलिक नक्शा शायद भिन्न होता। जूनागढ़, जोधपुर और खासतौर पर हैदराबाद तथा जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ जोड़े रखने में उनकी साम, दाम, दंड एवं भेद की नीतियां आज भी उन्हें इतिहास के पन्नों पर सजीव और प्रासंगिक बनाए हुए हैैं।

1946 के कैबिनेट मिशन की योजना का पटेल ने किया था विरोध

जब पाकिस्तान का बनना तय हो गया था तब देश के सामने कई गंभीर चुनौतियां थीं। 1946 के कैबिनेट मिशन की प्रस्तावित योजना के अनुसार बंगाल, पंजाब और असम पाकिस्तान का हिस्सा बनने जा रहे थे। तब दूरदर्शी सरदार पटेल द्वारा इस योजना का कड़े शब्दों में विरोध किया गया। उन्होंने कहा, ‘यह प्रस्ताव तो पाकिस्तान बनाने के प्रस्ताव से भी ज्यादा खराब है।’ बाद में सरदार पटेल ने पंजाब और बंगाल के विभाजन का प्रस्ताव पेश कर दिया और पूरा का पूरा असम भारत का हिस्सा बना लिया गया। यह ध्यान रहे कि तब असम एक तरह से पूरा पूर्वोत्तर था। देश के एकीकरण के अपने प्रयासों के दौरान सरदार पटेल ने समय की मांग को बखूबी समझने और उसके अनुरूप चलने का काम किया। हैदराबाद और जूनागढ़ के नबाव के खिलाफ उन्होंने बल और विवेक, दोनों का इस्तेमाल किया।

सरदार पटेल दबे-कुचले, मजदूरों, गरीबों एवं किसानों की आवाज थे

सरदार पटेल दबे-कुचले, मजदूरों, गरीबों एवं किसानों की भी मजबूत आवाज थे। आजादी के आंदोलनों में मुख्य भूमिका निभाने के साथ ही वे उन सभी सामाजिक वर्गों का भी नेतृत्व कर रहे थे जो आर्थिक एवं सामाजिक रूप से शोषित हो रहे थे। जनवरी 1928 में में अंग्रेजी हुकूमत ने एक तालुका के समूचे किसानों का भूमि कर लगभग 22 प्रतिशत बढ़ा दिया, जो लगभग दोगुने के करीब था। उसी तालुका के अंतर्गत बारदोली भी आता था। जहां के आश्रमों के संघ अध्यक्ष के पद पर पटेल आसीन थे। इस मुद्दे को पटेल ने चुनौती के रूप में लिया। किसानों को एकजुट कर उन्होंने बारदोली आंदोलन किया। पटेल ने किसानों से अंग्रेजों के आदेश के खिलाफ जाकर भू-कर नहीं देने का आह्वान किया। उन्हें बारदोली की महिलाओं, पुरुषों एवं युवाओं का भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ।

महात्मा गांधी के साथ खेड़ा किसान आंदोलन

महात्मा गांधी के साथ खेड़ा किसान आंदोलन का अनुभव भी सरदार पटेल के इस आंदोलन के मार्गदर्शन में सहायक रहा। उनके सफल नेतृत्व और किसानों की एकता के फलस्वरूप अंग्रेजों को घुटने टेकने पड़े। भू-कर में संशोधन किया गया, किसानों को रियायत दी गई, जबरन हड़पी गई जमीनें तथा पालतू जानवर वापस किए गए। इससे किसानों में विश्वास, संतोष और साहस का संचार हुआ। अंग्रेजी नीतियों के खिलाफ जन समर्थन जुटाने के अलावा उन्होंने समाज को सशक्त करने का काम भी किया। उनके अनुयायियों ने गांव के सभी समुदायों के लोगों को चरखा चलाना तथा सूत कातना सिखाया।

महात्मा गांधी ने पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि से नवाजा

किसानों के बीच पटेल की सकारात्मक पैठ को देखते हुए स्वयं महात्मा गांधी ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि से नवाजा। यह पटेल की पहली सफलता नहीं थी। खेड़ा के प्रसिद्ध किसान आंदोलन में भी महात्मा गांधी के साथ उनकी भूमिका अहम रही थी। उस आंदोलन की भी शुरुआत भूमि कर के लिए ही हुई थी। 1918 में गुजरात का यह क्षेत्र भीषण अकाल की मार झेल रहा था। किसान भूमि कर देने में लाचार एवं असहाय हो चुके थे। किसानों की समस्याओं की अनदेखी करते हुए अग्रेजों ने कर में बढ़ोतरी कर दी थी। इसके विरोध में महात्मा गांधी ने खेड़ा आंदोलन का मोर्चा संभाला जिसमें सरदार पटेल उनके मुख्य सिपहसालार की भूमिका में थे। आंदोलन इतना सशक्त हो चुका था कि अंतत: ब्रिटिश शासन को द्विपक्षीय समझौते के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसके तहत कर माफी पर विचार, बढ़ाए गए कर में कटौती और जबरन हड़पी गई जमीनें एवं वस्तुओं की वापसी पर सहमति बनी।

सरदार पटेल के निर्णय दूरगामी एवं अनुशासित प्रवृत्ति के होते थे

सरदार पटेल के निर्णय दूरगामी एवं अनुशासित प्रवृत्ति के होते थे। उन पर गांधी जी का बड़ा प्रभाव था। धर्मनिरपेक्षता उन्हें गांधी जी से दीक्षा में प्राप्त हुई थी। गांधी जी के कारण ही उन्होंने खादी के प्रति अपनी आस्था जागृत की थी। गांधी जी के संपर्क में आने से पहले वह पश्चिमी वेशभूषा से प्रभावित थे। उन्होंने गांधी जी के कदमों पर चलकर ‘विदेशी सामग्री जलाओ’ नामक कई विरोध प्रदर्शनों को भी अंजाम देने का कार्य किया।

गांधीजी ने कहा था कि खेड़ा सत्याग्रह में मुझे सरदार पटेल की वजह से सफलता मिली

दांडी मार्च के दौरान स्वयं महात्मा गांधी ने यह बात कही थी कि खेड़ा सत्याग्रह में मुझे सरदार पटेल की वजह से ही सफलता मिली और आज इन्हीं की वजह से मैं यहां दांडी में भी हूं। सरदार पटेल जिन्हें गांधी जी अपनी सफलता का कारण मानते थे, आज भी प्रासंगिक हैं। चाहे वह किसानों का सवाल हो या फिर जवानों का। धर्मनिरपेक्षता उनकी दूसरी मजबूत कड़ी थी। इसके जरिये ही वे मजबूत और अखंड भारत का सपना देखते थे। आज यह कहीं आवश्यक है कि हम सरदार पटेल के आदर्शों और मार्गों का अनुसरण कर उनके सपनों के भारत के निर्माण में अपना योगदान दें। यही उनकी जयंती पर सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।

( लेखक जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं )