अनुपमा झा। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में भारत 80वें स्थान पर आया है। भारत इस स्थिति को चीन, घाना, मोरक्को और बेनिन के साथ साझा करता है। इस रिपोर्ट के साथ सरकार ने अपने प्रयासों और उपायों के माध्यम से भ्रष्टाचार को कम करने के दावों को हवा दी है। इसका स्कोर और रैंक 13 विभिन्न डाटा स्नोतों के आधार पर तैयार किया गया है जो सार्वजनिक क्षेत्र में कई भ्रष्ट व्यवहारों का आकलन करता है। इसमें निजी लाभ के लिए सार्वजनिक कार्यालय में दिए जाने वाले रिश्वत और सार्वजनिक धन तक का आकलन किया गया है।

अपारदर्शी राजनीतिक फंडिंग और राजनीतिक हितों की पैरवी व कम हाथों में धन तथा शक्ति का केंद्रित होना आमतौर पर उच्च भ्रष्टाचार वाले देशों की कुछ विशेषताएं हैं। भारत इससे अलग नहीं है। महज कुछ वर्ष पहले जब भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन हुआ था, तब यह महसूस किया गया था कि यह सही दिशा में एक कदम है। तब यह महसूस किया गया कि देश में भ्रष्टाचार में कमी आएगी और सरकार अधिक पारदर्शी व जवाबदेह होगी। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। भ्रष्टाचार कायम है। थानों में रिश्वत के बिना एफआइआर अभी भी दर्ज नहीं हो पाती है। आरटीओ में भी ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने के लिए कमोबेश यही दशा कायम है। इसके अलावा भी रोजमर्रा की जिंदगी में आम लोगों को अब भी भ्रष्टाचार से दोचार होना पड़ रहा है।

भ्रष्टाचार और रिश्वत भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बन गए हैं। जब तक कोई बड़ा घोटाला सामने नहीं आता है, वे सुर्खियां नहीं बनते हैं। नीरव मोदी के फर्मो और मेहुल चोकसी के कारोबार से जुड़े 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक के वित्तीय घोटाले का असर इस कदर होता है कि भ्रष्टाचार पर सार्वजनिक विमर्श शुरू हो जाता है। यह भी कुछ दिनों तक ही रहता है, क्योंकि लोग अपने रोजाना के अस्तित्व और बुनियादी सामाजिक आर्थिक जरूरतों के साथ जुड़ जाते हैं।

एक राष्ट्र के रूप में हम इतने भ्रष्ट क्यों हैं? पिछले 20-30 वर्षो पर ही नजर डालें तो घोटालों की सूची अंतहीन है। आम नागरिक अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में सरकारी अधिकारियों के साथ काम करते हुए भ्रष्टाचार की समस्या का सामना करता है, लेकिन अपने जीवन को संवारता है। बेशक सरकार द्वारा कुछ बेबी स्टेप्स उठाए गए हैं जो रिश्वतखोरी की जांच करेंगे, जैसाकि भारतीय रेलवे द्वारा हाल ही में शुरू किया गया है जिसमें आरक्षित टिकटों को ऑनलाइन प्रदर्शित करता है ताकि यात्री अपनी टिकट बुक करते समय सीटों की स्थिति देख सकें। परिणामस्वरूप ट्रेन में खाली सीट पर पहुंचने के लिए यात्रियों को अब टीटीई के पीछे नहीं भागना पड़ेगा।

हालांकि देश में भ्रष्टाचार की समस्या इतनी विकट है कि इससे निपटने के लिए एक बहुस्तरीय प्रयास की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में उच्च और निम्न रैंक वाले देशों में क्या अंतर है? कम भ्रष्टाचार वाले देशों में लोग अधिक शिक्षित और जागरूक हैं। उन देशों में राजनीतिक फं¨डग अपेक्षाकृत पारदर्शी है, जबकि कॉरपोरेट हित समूह राजनीतिक दलों को हर जगह प्रभावित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह भ्रष्ट देशों की तुलना में कम है। उन देशों में जो कानून पारदर्शिता को बढ़ाते हैं और भ्रष्टाचार के अवसरों को कम करते हैं, उन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। भ्रष्ट देशों में कानून इस तरह से बनाए जाते हैं कि भ्रष्टाचार के लिए या कानून तोड़ने वालों के लिए कानून को एक तरह से मोड़ने के लिए पर्याप्त जगह हो।

कानून प्रवर्तन एजेंसियां ‘क्लीनर’ देशों में स्वतंत्र हैं और लोकपाल की भूमिका भ्रष्टाचार से परे है, जो अक्षमता, पूर्वाग्रह या उदासीनता के कारण प्रथाओं को कवर करती है। यह भ्रष्टाचार का पता लगाने और इस तरह के मामले को भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी या अभियोजक को आगे की कार्रवाई के लिए संदर्भित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्या इसकी तुलना भारत की स्थिति से की जा सकती है? लोकपाल अधिनियम 2013 में पारित किया गया था। अधिनियम पारित होने के छह वर्ष बाद पिछले साल लोकपाल नियुक्त किया गया था, और वह भी तब जब एक गैर सरकारी संगठन ने देरी के खिलाफ याचिका दायर की थी। ज्यादातर राज्यों में अभी भी लोकायुक्तों की नियुक्ति नहीं की गई है। उन देशों में आम नागरिक कानून का सम्मान करते हैं।

एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या हम भ्रष्टाचार के डीएनए को बदल सकते हैं जो लंबे समय तक और एक भ्रष्ट समाज के लगातार संपर्क में रहने के कारण हमारे अंदर समा गया है? आण्विक जीवविज्ञान में हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि जीन को हमारी विश्वास प्रणाली में परिवर्तन द्वारा सक्रिय और निष्क्रिय किया जा सकता है।

इसी तरह अगर भ्रष्टाचार की बीमारी को कम करना है, तो हमें पैसा बनाने और समृद्धि हासिल करने के छोटे-छोटे तरीकों का मूल्य कम रखकर अपनी सोच बदलनी होगी। यदि समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपनी सोच बदलता है और यह मानता है कि रिश्वत देना और लेना दोनों ही गलत है, तो भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है।

एक ही समय में विभिन्न संस्थानों, राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों और न्यायपालिका को निजी क्षेत्र, मीडिया और नागरिक समाज संगठनों के साथ मिलकर काम करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि भ्रष्टाचार से निबटने के लिए अधिक से अधिक पारदर्शिता लाई जाए और जवाबदेही तय की जाए।

(लेखक ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के पूर्व कार्यकारी निदेशक हैं)

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