डॉ. अश्‍विनी महाजन। समूचा विश्व इस समय कोरोना संकट से निजात पाने हेतु वैक्सीन की प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन मानवता के लिए इस संकट की घड़ी में भी वैक्सीन उत्पादन और जनता को उसके शीघ्र वितरण करने के नाम पर लाभ उठाने के लिए कुछ कॉरपोरेट हित सक्रिय हो गए हैं। इस अभूतपूर्व संकट में भी वे अपने लाभों को अधिकतम करने को आतुर दिख रहे हैं। कंपनियों द्वारा कार्टेल बनाकर अपने लाभ को बढ़ाना कोई नई बात नहीं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस प्रकार की असाधारण परिस्थिति में भी उनके और उनकी सहयोगी संस्थाओं के तौर तरीके पहले जैसे ही हैं। यही नहीं विश्व के स्वास्थ्य की रक्षा के दायित्व वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी रवैया संदेह के घेरे में है।

इस बार इन कंपनियों और संस्थाओं के प्रयास कोवैक्स सुविधा के नाम पर हो रहे हैं। यह प्रयास कोविड के उपचार हेतु उपकरणों की पहुंच में शीघ्रता लाने यानी एक्ट एक्सीलरेटर के नाम पर चल रहा है। उन्होंने (यानी कॉरपोरेट कार्टेल जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन का समर्थन प्राप्त है) इस एक्ट एक्सीलरेटर का निर्माण किया है, जिसे वे कोविड-19 के परीक्षण, उपचार और वैक्सीन के विकास उत्पादन और न्यायसंगत पहुंच में तेजी लाने के लिए एक वैश्विक सहयोग का नाम दे रहे हैं। कोवैक्स के नाम पर चल रहे इन प्रयासों को गॉवी कॉरपोरेट गठबंधन और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सम्मिलित रूप से चलाया जा रहा है। उनका कहना है कि उनका उद्देश्य कोविड के लिए वैक्सीन विकसित करने और उसका निर्माण करते हुए उसकी पहुंच दुनिया के हर देश के लिए बराबरी के आधार पर सुनिश्चित करना है।

यह कोई छुपा हुआ तथ्य नहीं है कि गॉवी का बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन (बीएमजीएफ) के साथ गहरा रिश्ता है। वैसे तो गॉवी का घोषित लक्ष्य (गरीब बच्चों के लिए) नई और कम इस्तेमाल होने वाली वैक्सीन को बराबरी के आधार पर उपलब्ध करवाना है, लेकिन अब यह संस्था कोरोना वैक्सीन के मामले में भी कूद पड़ी है। वर्ष 2000 में बीएमजीएफ ने गॉवी के निर्माण हेतु 75 करोड़ डॉलर का अनुदान दिया था। बीएमजीएफ उसके बोर्ड का भी सदस्य है। ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ संबंध हैं, जो उसके बोर्ड के सदस्य भी हैं।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित वैक्सीन कोवीशील्ड समेत कुछ और वैक्सीनों के पक्ष में गॉवी का झुकाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है, क्योंकि उन्होंने भारत की एक वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआइआइ), जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित वैक्सीन कोवीशील्ड के साथ-साथ एस्ट्रॉजेनिशा, नोवावैक्स आदि के उत्पादन करने की योजना भी बनाई है। यदि इन वैक्सीन को पूर्व अनुमति और लाइसेंस मिलता है तो गेट्स फाउंडेशन अपने द्वारा ही विकसित संस्था गॉवी के माध्यम से सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा इन संभावित वैक्सीन के उत्पादन को अंजाम देने का काम कर चुकी है।

कहा जा सकता है कि गेट्स फाउंडेशन, गॉवी और विश्व स्वास्थ्य संगठन का कार्टेल कुछ चुनिंदा वैक्सीन को ही अपनी सहयोगी कंपनियों के माध्यम से प्रोत्साहित कर रहा है। इससे समझा जा सकता है कि इस कार्टेल का लक्ष्य वैक्सीन उपलब्धता सुनिश्चित कर लोगों के लिए राहत दिलाना नहीं, बल्कि उनका सारा प्रयास अपने सहयोगियों और भागीदारों के लिए लाभों को अधिकतम करना है।

भारत सरकार ने (और उसके साथ दक्षिण अफ्रीका ने) विश्व व्यापार संगठन से गुहार लगाई है कि वह कोविड-19 हेतु दवाओं और वैक्सीनों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों से छूट दे, ताकि दुनिया भर के लोगों के लिए ये दवाएं और वैक्सीन रॉयल्टी से मुक्त होकर आसानी से उपलब्ध हो सकें।

भारत में तीन वैक्सीन के ट्रायल अलग-अलग स्तरों पर चल रहे हैं। रूस ने भी एक वैक्सीन का पंजीकरण कर दिया है और उसका व्यावसायिक उत्पादन करने के लिए भारत की ही एक कंपनी से संपर्क साधा है। चाहे गेट्स फाउंडेशन, गॉवी और विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर ही सही, लेकिन ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित कोवीशील्ड वैक्सीन के लिए भी भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से ही उत्पादन का समझौता किया गया है।

बिल मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा समíथत कंपनियों की एक गठजोड़ भी इस कवायद में लगी है कि दुनिया के देश उनके वैक्सीन की खरीद की अग्रिम वचनबद्धता दे दें। गठबंधन उसी वैक्सीन का समर्थन करेगा जिसे वे पसंद करते हैं और सदस्य देशों की सरकारें वैक्सीन के बारे में निर्णय लेने की स्वतंत्रता खो देंगी।

इस बीच भारत ने विश्व व्यापार संगठन को कोरोना महामारी की दवाओं और वैक्सीन को बौद्धिक संपदा अधिकारों यानी अनुचित रॉयल्टी मुक्त करने की गुहार लगाकर अपनी नीति स्पष्ट कर दी है। ऐसे में भारत समेत सभी मुल्कों को वैक्सीन चुनते हुए यह देखना होगा कि वो वैक्सीन सबसे ज्यादा प्रभावी हो, जिसके दुष्प्रभाव या साइड इफैक्ट न्यूनतम हों और जो सबसे कम लागत वाली हो, ताकि उसे आसानी से पूरे देशभर में सभी नागरिकों को लगाया जा सके। यहां यह समझना जरूरी है कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की वर्ष 2001 की घोषणा के अनुसार महामारी और राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति में बौद्धिक संपदा कानून स्थगित रहेंगे और देश अपनी आवश्यकता अनुसार दवा उत्पादन हेतु अनिवार्य लाइसेंस प्रदान कर सकेंगे।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)