[सुशील कुमार सिंह]। विश्व इतिहास के पन्ने में 12 जून 2018 एक ऐसी तारीख है जिसे एशिया पेसिफिक ही नहीं, पूरी दुनिया में शांति के लिहाज से अहम समझा जा सकता है। इसी दिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग की सिंगापुर में एक छोटे से टापू पर स्थित होटल कैपिला में महज 50 मिनट की ऐतिहासिक वार्ता हुई थी। ऐसा माना जाता है कि यहीं से कहीं न कहीं तीसरे विश्व युद्ध के आगाज का भी अंत हुआ था।

इस वार्ता ने दोनों देशों के 68 बरस की शत्रुता का न केवल अंत किया, बल्कि मुलाकात का सिलसिला वियतनाम से गुजरते हुए उत्तर कोरिया की सीमा तक पहुंच गया। इधर बीते 30 जून को ट्रंप और किम जोंग की मुलाकात उत्तर और दक्षिण कोरिया को विभाजित करने वाले असैन्यकृत इलाका डीएमजेड यानी डीमिलिट्राइज्ड जोन में हुई है। इस मुलाकात के दौरान दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन भी उपस्थित थे। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप की किम जोंग से पहली दो मुलाकातें बहुत सार्थक नहीं रहीं, पर इस पहल को सराहनीय जरूर कहा जा सकता है। तीसरी मुलाकात के बाद किम जोंग ट्रंप की दृष्टि में कितना खरा उतरेंगे, यह कहना अभी कठिन है। दो टूक यह भी कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जनवरी 2017 में सत्तासीन होने के बाद से किम जोंग तुलनात्मक अधिक हमलावर होते दिखाई देते हैं। जुबानी हमले के साथ-साथ परमाणु परीक्षण से लेकर मिसाइल परीक्षण तक में किम जोंग लगातार सुर्खियों में बने रहे।

वर्ष 2006 से 2016 के बीच उत्तर कोरिया ने चार परमाणु परीक्षण और रॉकेट प्रक्षेपण करके दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, जबकि 2017 में बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण करके अपनी हेकड़ी दिखा दी। हालांकि यह परीक्षण असफल रहा, लेकिन जिस तर्ज पर उत्तर कोरिया ने परमाणु बम और बैलिस्टिक मिसाइल के परीक्षण के साथ जापान और दक्षिण कोरिया के ऊपर मिसाइलों को दागा, उससे युद्ध जैसी स्थिति पैदा हुई। कहा जाय तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों की मार झेलने वाले उत्तर कोरिया ने अमेरिका को युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर दिया था, पर सिंगापुर की मुलाकात ने शांति की एक राह सुझा दी।

दोनों के बीच रंजिश की लकीर
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री डेयान रस्क का यह कथन कि हमने हर हिलती हुई चीज पर बमबारी की, एक दौर में विवादों में रहा। दरअसल तत्कालीन विदेश मंत्री डयान रस्क यह बात कोरियाई युद्ध (1950-53) के दौरान उत्तर कोरिया पर अमेरिकी बमबारी के इरादे से कर रहे थे। अमेरिकी रक्षा मंत्री के दफ्तर पेंटागन ने इस अभियान का नाम ऑपरेशन स्ट्रैगल रखा था। माना जाता है कि इन तीन सालों तक उत्तर कोरिया पर बिना रुके हवाई हमले किए जाते रहे। वामपंथी विचारधारा के लोगों का यह कहना है कि तब उत्तर कोरिया के कई गांव, शहर और लाखों लोग तबाह हो गए थे। तभी से उत्तर कोरिया अमेरिका को एक खतरे के तौर पर देखता है। माना यह भी जाता है कि कोरिया युद्ध शीत युद्ध का सबसे बड़ा और पहला संघर्ष था।

उत्तर कोरिया और चीन की दोस्ती
चीन और उत्तर कोरिया ने वर्ष 1961 में पारस्परिक सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए थे जिसमें स्पष्ट था कि अगर दोनों में से किसी पर भी हमला होता है तो वे एक-दूसरे की तत्काल मदद करेंगे। इसमें सैन्य सहयोग भी शामिल है। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि दोनों देश शांति और सुरक्षा को लेकर सतर्क रहेंगे। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने 2017 में कहा था कि उत्तर कोरिया पर काबू पाने के लिए सारे विकल्प खुले हैं। इसमें सैन्य कार्रवाई के साथ चीन पर दबाव की रणनीति भी शामिल है। उत्तर कोरिया के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र ने कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इस मामले में चीन ने भी समर्थन किया, पर किम जोंग को लेकर चीन से ट्रंप की शिकायत खत्म नहीं हुई।

गौरतलब है कि चीन और उत्तर कोरिया के बीच आयात-निर्यात भारी पैमाने पर आज भी जारी है। सिंगापुर में डोनाल्ड ट्रंप से पहली मुलाकात से पहले ट्रेन की यात्रा कर किम जोंग चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग से मिलने चीन गए थे, और उसके बाद भी वे वहां गए। हालांकि ट्रंप को यह भी लगता है कि उत्तर कोरिया की समस्या का निदान चीन के सहयोग से आसानी से किया जा सकता है।

शांति और अंतरराष्ट्रीय सरोकार
उत्तर कोरिया ने परमाणु परीक्षण और मिसाइल की क्षमता में निरंतर वृद्धि की है। अमेरिका ने इसे चुनौती माना और किम जोंग के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। इधर चीन ने पश्चिमी देशों को साधने के लिए उत्तर कोरिया से संबंध कायम रखा। कई परमाणु परीक्षणों के बावजूद चीन उत्तर कोरिया को संरक्षण देता रहा। कुछ दोनों देशों के समझौते की मजबूरियां हैं तो कुछ दुनिया को संतुलित करने के साथ चीन की एकाधिकार वाली चाहत है।

बर्लिन की जी-20 शिखर सम्मेलन 2017 में दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया के परमाणु मिसाइल कार्यक्रमों के परित्याग और सैन्य अभ्यासों में छूट के साथ संयुक्त राष्ट्र आर्थिक प्रतिबंधों के बीच विनिमय की आवश्यकता की घोषणा की। जापान पर मिसाइल छोड़ने वाला उत्तर कोरिया भले ही शांत दूत की तरह अवतरित हुआ है, पर जापान संतुष्ट नहीं है। हालांकि संतुष्ट तो दक्षिण कोरिया भी नहीं है और शायद डोनाल्ड ट्रंप भी असंतुष्ट ही होंगे।

किम जोंग और डोनाल्ड ट्रंप के बीच अब तक तीन मुलाकात हुई, लेकिन पूरे विश्वास के साथ वाशिंगटन यह नहीं कह सकता कि दुनिया किम जोंग को लेकर बेचैन न हो। रूस और अमेरिका के बीच की तनातनी में उत्तर कोरियाई शांति वार्ता में एक सबल पक्ष है। प्रत्यक्ष तो नहीं पर परोक्ष रूप से रूस उत्तर कोरिया के विरुद्ध नहीं है। हालांकि अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से बातचीत के बाद कहा था कि उत्तर कोरिया को लेकर अमेरिका और रूस का लक्ष्य समान है। एशिया पेसिफिक में माहौल बदल रहा है और शायद उत्तर कोरिया में भी, किंतु चीन की फितरत पर भी सभी की नजर रहेगी।

दक्षिण और उत्तर कोरिया में अलगाव
दूसरे विश्व युद्ध के बाद दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया दोनों अलग देश बने थे। इस विभाजन के चलते दोनों ने अगल राह चुनी। दरअसल वर्ष 1910 से कोरिया पर जापान का शासन था। वर्ष 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के दौर में जापान द्वारा हथियार डालने के बाद सोवियत संघ की सेना ने कोरिया के उत्तरी भाग को अपने कब्जे में ले लिया और दक्षिणी भाग अमेरिका के कब्जे में चला गया। चूंकि चीन और रूस में वैचारिक समानता थी, लिहाजा चीन भी उत्तर कोरिया के साथ हो गया। कोरियाई प्रायद्वीप दो विचारों में बंट गया। उत्तरी कोरिया साम्यवाद का शिकार हुआ, जबकि दक्षिणी कोरिया में लोकतंत्र का प्रादुर्भाव देखा जा सकता है। मौजूदा समय में दक्षिण कोरिया दुनिया के संपन्न देशों में गिना जाता है, जबकि दक्षिण कोरिया राजवंश के शासन में घिरकर दुनिया से अलग-थलग हो गया। बीसवीं सदी के मध्य का यह विभाजन 21वीं सदी के दूसरे दशक में भी विवाद को कायम किए हुए है। पिछले साल यहां भी एक चमत्कारिक घटना हुई, जब आजादी के 65 वर्षों के बाद उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जे इन की आपसी मुलाकात डीमिलिट्राइज्ड जोन में हुई। हालांकि दोनों के बीच शांति और सद्भाव का अभी भी अभाव है, बावजूद इसके दक्षिण कोरिया अपेक्षा करता है कि अमेरिका की पहल से किम जोंग में बड़ा बदलाव आ सकता है।

कोरिया का असैन्यकृत इलाका
डीमिलिट्राइज्ड जोन उत्तर और दक्षिण कोरिया को विभाजित करने वाला एक असैन्यकृत इलाका है। इसके दोनों ओर दोनों देशों की सेनाओं की भारी मौजूदगी रहती है। दोनों देशों के बीच बफर जोन के रूप में काम करने हेतु कोरियाई आर्मिस्टिस समझौते के निहित प्रावधानों द्वारा इसे स्थापित किया गया है। इसे धरती पर मौजूद सबसे खतरनाक जगह के रूप में जाना जाता है। यहां एक संयुक्त सुरक्षा क्षेत्र है जिसे पनमुनजोंम कहा जाता है। यही एक ऐसा क्षेत्र है जहां कुछ ही फिट की दूरी पर दोनों देशों की सेना आमने-सामने रहती है। यहां पर्यटकों की आवाजाही भी रहती है। आंकड़ों के अनुसार 2017 में एक लाख से अधिक पर्यटक यहां आए। यह स्थान दक्षिण कोरिया की राजधानी से 60 किमी तो उत्तर कोरिया की राजधानी से 210 किमी दूर है।

खास यह भी कि पहले डीएमजेड से दोनों देश लाउडस्पीकर द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार करते थे। संदर्भ यह भी मिलता है कि एक पेड़ काट रहे अमेरिकी सैनिकों की 1976 में उत्तर कोरियाई सैनिकों ने गोली मार दी थी। अमेरिका के एक पूर्व राष्ट्रपति ने दक्षिण कोरिया के दौरे पर कहा था कि यह स्थान दुनिया की सबसे खतरनाक जगह है। फिलहाल जगह चाहे जैसी हो, ट्रंप के लिए तो शांति का पैगाम दे रही है। ट्रंप से मिलने की खुशी किम जोंग के हाव-भाव में भी दिखाई देती है। किम जोंग ने ट्रंप से कहा, ‘आपको फिर से देख कर खुशी हो रही है। मैंने कभी इस जगह पर आपसे मुलाकात की उम्मीद नहीं की थी।’ अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी इसे महत्वपूर्ण क्षण बताया।

कुछ बड़े और गंभीर सवाल
तकरीबन ढाई करोड़ की जनसंख्या वाले देश उत्तर कोरिया ने परमाणु शक्ति संपन्न बनने की फिराक में अपने देश की आंतरिक और आर्थिक दोनों परिस्थितियों को स्वाभाविक तौर पर कमजोर कर दिया है। दक्षिण कोरिया के केंद्रीय बैंक के अनुसार उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था 2016 में बीते 17 सालों में सबसे तेज रफ्तार से बढ़ी। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में जकड़े रहने के बावजूद इसने तेजी से विकास किया। खनन और ऊर्जा के क्षेत्र में भी विकास तेज हुआ। सबसे तेज विकास दर वर्ष 1999 में दर्ज की गई थी, जो 6.1 फीसद थी। उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा साझेदार चीन है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में यह दक्षिण कोरिया की तुलना में महज पांच फीसद ही है।

गौरतलब है कि उत्तर कोरिया अपने आर्थिक आंकड़े जारी नहीं करता। बैंक ऑफ कोरिया प्रत्येक वर्ष सरकारी एजेंसियों से मिली जानकारी के आधार पर जीडीपी के आंकड़े जारी करता है और यह सिलसिला 1991 से चल रहा है। वर्ष 2006 में उत्तर कोरिया पर पहली बार संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंध लगाए थे। बैलिस्टिक मिसाइल और पांच परमाणु परीक्षण को क्रमिक रूप से आगे बढ़ाने के कारण यह देश परमाणु कार्यक्रम में तो आगे बढ़ गया, पर आर्थिक मामलों में पिछड़ गया। अमेरिका, चीन और रूस को उत्तर कोरिया के खिलाफ नए प्रतिबंधों को लेकर पहल चाहता रहा है। चीन ने उत्तर कोरिया से कोयले के आयात पर रोक भी लगाई और तेल की सप्लाई पर विचार भी किया, परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्तर कोरिया के कुल व्यापार का 90 फीसद से अधिक व्यापार चीन के साथ हो रहा है। यहां भी चीन की कुछ चाल ही है। फिलहाल उत्तर कोरिया सबसे भयानक सूखे की चपेट में भी पहले आ चुका है और बेरोजगारी, भुखमरी का यहां मकड़जाल है। फिलहाल उम्मीद की जा सकती है कि वक्त के साथ यह देश स्वयं में बदलाव ला सकता है।

अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच वर्षों से जारी गतिरोध कुछ हद तक दूर होता दिखाई दे रहा है। अमेरिका दुनिया को एक नई परिभाषा देने की फिराक में हमेशा रहा है, जबकि उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग परमाणु ताकत बढ़ाकर उसी दुनिया में अपनी कहानी लिखना चाहते हैं। किम जोंग हमेशा इस डर को व्यक्त करते रहे हैं कि यदि उत्तर कोरिया शक्ति संपन्न नहीं होगा तो उसके हालात भी इराक और लीबिया की तरह होंगे। लेकिन अब वह ट्रंप के साथ शांति की राह खोज रहे हैं जो दुनिया में एक बड़े बदलाव का संकेत है।
[निदेशक, वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन]