[ विवेक काटजू ]: अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद सऊदी अरब ने आखिरकार 17 दिन बाद यह मान लिया कि पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या इस्तांबुल स्थित उसके वाणिज्य दूतावास में 2 अक्टूबर को हुई थी। इसके बाद खशोगी के शरीर के अवशेष सऊदी राजदूत के घर के परिसर में मिलने की भी खबर आ गई। खशोगी अनुभवी और ख्याति प्राप्त पत्रकार थे। सऊदी शाही खानदान के कुछ सदस्यों के साथ उनके बढ़िया संबंध थे। वह ब्रिटेन में सऊदी अरब के राजदूत रहे प्रिंस तुर्की बिन फैसल के मीडिया सलाहकार भी रह चुके थे जो लंबे समय तक सऊदी खुफिया सेवा के प्रमुख भी रहे।

खशोगी मौजूदा शहजादे प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की घरेलू और विदेश नीतियों के कड़े आलोचक थे। धमकियों के चलते वह पिछले साल सऊदी अरब छोड़कर अमेरिका चले गए थे और प्रभावशाली अखबार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ के स्तंभकार बन गए थे। पिछले एक वर्ष के दौरान वह शहजादे प्रिंस मोहम्मद की एक अड़ियल तानाशाह के रूप में आलोचना करते हुए यह लिख रहे थे कि वह असहमति रखने वालों को जेल में डाल देते हैं। तुर्की मूल की अपनी मंगेतर से शादी करने के लिए खशोगी को अपने तलाक संबंधी दस्तावेज की जरूरत थी जिसे लेने के लिए वह 28 सितंबर को इस्तांबुल स्थित सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास गए थे। तब उन्हें दोबारा आने के लिए कहा गया।

सऊदी अरब सरकार का कहना है कि जब खशोगी 2 अक्टूबर को वाणिज्य दूतावास आए तो कथित संदिग्ध तत्वों और उनके बीच झगड़ा हो गया। झगड़ा इतना बढ़ा कि उसमें उनकी मौत हो गई। यह भी कहा गया कि संदिग्ध तत्व इस्तांबुल गए ही इसलिए थे, क्योंकि खशोगी के वापस सऊदी अरब लौटने की संभावना थी। अब यह साफ है कि यह सब सच नहीं था। इस मामले से जुड़ी एक रिपोर्ट पर यकीन करें तो खशोगी को ठिकाने लगाने के लिए सऊदी अरब सरकार के 15 अधिकारी इस्तांबुल गए थे। अभी यह स्पष्ट नहीं कि आदेश उनकी हत्या का था या फिर उन्हें वापस सऊदी अरब लाने का? यह भी स्पष्ट नहीं कि यह आदेश शहजादे का था या फिर उनके किसी वरिष्ठ अधिकारी का। खैर इस सनसनीखेज प्रकरण के बाद शहजादे के दो वरिष्ठ सहयोगियों की छुट्टी कर दी गई है। हालांकि इस कार्रवाई से भी अमेरिका और यूरोप जैसे प्रभावशाली तबके संतुष्ट नहीं हैं और वे चाहते हैं कि पूरे मामले में शहजादे की भूमिका स्पष्ट की जाए।

यह कोई सामान्य हत्या का मामला नहीं है। यह अंतरराष्ट्रीय समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। अमेरिका की घरेलू राजनीति से भी इसका गहरा सरोकार है। सऊदी अरब में ट्रंप परिवार के कारोबारी हितों और राष्ट्रपति के दामाद जैरेड कुशनर और शहजादे के बीच घनिष्ठ संबंधों को देखते हुए भी इस मामले की अपनी अहमियत है। इस मामले ने ट्रंप को इतना रक्षात्मक बना दिया कि उन्हें अपने विदेश मंत्री माइक पोंपिओ को सऊदी अरब और तुर्की भेजकर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी। अमेरिका-सऊदी और सऊदी-तुर्की रिश्तों के लिहाज से इस मामले के अंतरराष्ट्रीय राजनयिक निहितार्थ भी हैं।

यह मामला अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिए भी एक बड़ा आघात है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही सऊदी अमेरिका का प्रगाढ़ साझीदार बना हुआ है। फिलहाल ट्रंप ईरान पर निशाना साध रहे हैं उसे देखते हुए अमेरिका के लिए सऊदी की महत्ता और बढ़ गई है। एक तो इस वजह से और दूसरे विपुल संपदा के कारण सऊदी अरब के संदिग्ध मानवाधिकार रिकॉर्ड की कभी गंभीरता से पड़ताल नहीं की गई। शहजादे प्रिंस मोहम्मद को बड़े सुधारक के रूप में महिमामंडित किया जाता है, लेकिन जैसा कि खशोगी कहते थे उससे यह भी स्पष्ट है कि वह अपने आलोचकों को निपटाने में भी जुटे हुए हैं। पहले भी यूरोप में रह रहे शाही खानदान के विद्रोही लोगों को तलब कर सऊदी अरब लाया जा चुका है।

खशोगी मामले में सऊदी अरब ने दूतावास परिसरों और राजनयिक छूट के सभी अंतरराष्ट्रीय प्रावधानों का घोर उल्लंघन किया। ये परिसर जिस देश में मौजूद होते हैं उन पर सामान्य रूप से उन देशों के कानून लागू नहीं होते, लेकिन उनसे यह अपेक्षा भी की जाती है कि वे स्थानीय नियम-कानूनों का सम्मान एवं पालन करें। दूतावास के मुकाबले वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों को तो पूरी राजनयिक छूट भी नहीं मिली होती है। गंभीर अपराधों में तो कोई छूट ही नहीं दी जाती। अगर तुर्की चाहता तो सऊदी अधिकारियों को अपने देश से निकलने की ही इजाजत नहीं देता। वह पुलिस को स्पष्ट आदेश देकर इस मामले की गहन पड़ताल करने के लिए कह सकता था। अगर तुर्की ने संदिग्ध सऊदी अधिकारियों को जाने दिया तो इसका अर्थ है कि कड़ी बयानबाजी के बावजूद दोनों देशों के बीच सौदेबाजी की कोई खिचड़ी भी पक रही है।

इस अंदेशे के बावजूद तुर्की के जांच अधिकारियों को सऊदी वाणिज्य दूतावास और आवासीय परिसर में प्रवेश की अनुमति सऊदी अरब को असहज करने वाली रही। तथ्य यह भी है कि खशोगी की मौत और उससे पहले उन्हें प्रताड़ित करने के जो संदेह सामने आ रहे थे उसे देखते हुए तुर्की के पास अपने अधिकारियों को सऊदी वाणिज्य दूतावास में प्रवेश की अनुमति देने के अलावा कोई और विकल्प भी नहीं था। जासूसी से जुडे़ मामलों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने एक तंत्र अवश्य विकसित किया है, लेकिन दूतावास परिसरों में सुनियोजित तरीके से हिंसा एकदम अस्वीकार्य है, क्योंकि इससे राजनयिक छूट वाले तंत्र के समक्ष गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता है।

यह जरूरी है कि सऊदी अरब खशोगी की हत्या से जुड़े सभी तथ्यों को उचित रूप से सामने रखे। अंतरराष्ट्रीय राजनय की सेहत के लिए सभी अंतरराष्ट्रीय राजनयिक समझौतों का सम्मान बेहद जरूरी है। विडंबना यह है कि कई देशों के राजनयिक इन प्रावधानों के उल्लंघन के लिए कुख्यात हैं। पाकिस्तान ऐसा ही देश है जहां कुछ खास देशों के राजनयिकों के साथ दुर्व्यहार होता है। भारतीय राजनयिकों और उनके परिवारों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां प्रताड़ित करती हैं। उनका पीछा करने से लेकर उन्हें धमकी भी दी जाती है। अतीत में राजनयिकों के खिलाफ हिंसा के मामले भी सामने आए हैं।

यह भी चिंताजनक है कि चीन के वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी मेंग होंगवेई जो अभी हाल में इंटरपोल के अध्यक्ष चुने गए थे, कुछ दिन पहले चीन में लापता हो गए। दो हफ्तों तक उनकी कोई खबर नहीं मिली। इस महीने की शुरुआत में चीन ने एलान किया कि मेंग भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी पाए गए हैं और उन्होंने ईमेल से अपना इस्तीफा भेज दिया है, लेकिन उनकी पत्नी को संदेह है कि कहीं उनकी हत्या तो नहीं हो गई। ऐसे वाकयों से अंतरराष्ट्रीय सहयोग में भरोसा कम होगा।

आतंकवाद और अपराध से लड़ने और कूटनीति को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए यह आवश्यक है कि सभी देश अंतरराष्ट्रीय समझौतों का सम्मान और पालन करें। अन्यथा खशोगी और मेंग सरीखे मामले और पाकिस्तान का मनमाना रवैया अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक तंत्र को अराजक ही बनाएगा।

[ लेखक विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव हैं ]