नई दिल्ली, नीरजा माधव। अपने आपको प्रकाश की अनंत धारा से जोड़े रखने के लिए आत्मिक शक्तियों के जागरण के लिए हर सांझ मिट्टी का एक दीप हर मन की आवश्यकता है। यह बताने के लिए भी कि अनंत प्रकाश की प्रतीक्षा में हम भी जाग रहे हैं। यह लौ ही जब पूर्णता को प्राप्त होती है तो परम प्रकाश बन जाती है। तुलसी चौरे के नीचे मिट्टी के दीये में टिमटिमाती लौ किस प्रकार अनंत प्रकाश की धारा बन जाती है। इस अनंत प्रकाश को देखने वाली आंखों को नींद से जगाने के लिए भी आता है यह दीप मास। आश्विन और कार्तिक मास जागरण का विशेष काल है।

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष पर हम अपने पितरों को कुश, जल और तिल समर्पित कर उनका आह्वान करते हैं, उन्हें प्रसन्न कर सुख, समृद्धि, आरोग्यता और कृपा की कामना करते हैं। इसी आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से सिगुणात्मिका प्रकृति रूपा मां लक्ष्मी, सरस्वती और काली को प्रसन्न करने का अनुष्ठान प्रारंभ करते हैं। शक्ति जागृत होती है और पूरी धरती शस्य श्यामला हो उठती है। धान की सोंधी बालियों में श्री और रिद्धि-सिद्धि का सौंदर्य कृषि प्रधान देश के हर आंगन, देहरी, द्वार पर बिखर जाता है। चिड़ियों का झुंड चहचहाने लगता है। बच्चों की किलकारियां और मेले-ठेले का आनंद सबकी रगों को पुलक से भर देता है। शरद पूर्णिमा पर कोजागरी उत्सव के बहाने स्वयं लक्ष्मी निकल पड़ती है अपने भक्तों के आनंद में शामिल होने।

एक मां जो यह देखने पृथ्वी पर आती है कि कौन जाग रहा है? को जाग री! अर्थात जो जागेगा, सचेत रहेगा, वही वास्तविक आनंद का उपभोग कर पाएगा। यह जागना केवल आंखों का खुला रखना नहीं है, अपितु अंतर्मन के निकुंज को इस योग्य बनाना है कि सोलह कलाधारी लीला पुरुष श्रीकृष्ण के महारास की निशा का अनहद निनाद सुनाई पड़ सके। उनकी मुरली की टेर में परब्रह्म का वह प्रथम नाद हमारे भी कान सुन सकें। कोजागरी के साथ ही प्रारंभ हो जाता है दीपदान का सिलसिला। श्री, सरस्वती और महाकाली से ऊर्जा प्राप्त करने का क्रम और इस प्रकार पूरा कार्तिक मास दीपोत्सव का मास बन जाता है, अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का आह्वान बन जाता है। इसीलिए कार्तिक को सबसे पुण्यदायी मास कहा जाता है।

राम की विजय के साथ उनके आगमन और राज्याभिषेक पर हजारों दीपों को प्रज्जवलित करने का सिलसिला, गोवर्धन पूजा से लेकर अन्नकूट और अक्षय नवमी को आंवले के वृक्ष के नीचे खीर के साथ अमृतपान करने और देवों की दीपावली से पूर्व ब्रह्मांड के पालनकर्ता श्री विष्णु के योगनिद्रा से उठने की महिमामंडित एकादशी के साथ ही तुलसी विवाह की परंपरा को फिर से जीने का क्रम। शक्ति के जागरण का ही काल नहीं है यह अपितु शक्ति की अधिष्ठान हरिहर रूपी परब्रह्म के भी योगनिद्रा से जागरण का काल है यह। इस पूरे क्रम में गंगा और अन्य पवित्र नदियों की धारा हमारी संगिनी बनी रहती है, जीवन-धारा बनी रहती है। नदियों की धारा में हर सांझ एक दीप चलाने का क्रम भंग नहीं होता, तुलसी चौरे पर कच्ची मिट्टी के दीये में झिलमिलाती लौ का प्रवाह नहीं थमता।

दीप से आलोकित प्रत्येक सांवली सांझ अपने आगे आने वाली सांझ की हथेली पर एक नन्हा दीप रखती है और आह्वान करती है अंधेरे को चुनौती देने, आक्रामक कीट-पतंगों जैसी दुष्प्रवृत्तियों के नाश का और इस प्रकार पूरे वर्ष के लिए सुख-शांति का मधु एकत्र करने का। निश्चय ही इस जुड़ाव में अनेक बाधक शक्तियां भी आती हैं। कार्तिक के अमावस की रात में महाकाल का आह्वान इसीलिए किया जाता है कि वे हमारे मार्ग में आने वाली इन राक्षसी प्रवृत्तियों का दमन कर प्रकाश से जुड़ने का मार्ग प्रशस्त करें। कभी रावण राक्षस था, महिषासुर जैसे दैत्यकुल थे जिनका संहार करने के लिए श्री विष्णु को रामावतार, कृष्णावतार या दुर्गारूप धारण करना पड़ा

महाकाली, चण्डिका, मुंडमाला, आदि शक्तियों के रूप में आद्यशक्ति को इस राक्षसों के वध के लिए स्वयं अस्त्र-शस्त्र उठाने पड़े। आज उनकी शक्लें बस बदल गई हैं। आतंकी, भ्रष्टाचारी और दुराचारी वेश में हम उन्हें देख रहे हैं। कोई अदृश्य शक्ति मानव वेशधर अपनी भुजाओं में महाकाली का तेज भर उन आतंकी तत्वों का नाश करने में लगी है। रक्तबीज की तरह पनप रहे इन आतंकी राक्षसों का समूल नाश होना समय के गर्भ में है पर हमें सजग हो शक्ति का आह्वान करना है, सीमा पर डटे सैनिक भाइयों का मनोबल ऊंचा करना है। उनके लिए हमें शक्ति की आराधना करनी है, देवी जागरण करना है और दैत्य विनाशिनी महाकाली को प्रसन्न करना है। भारतीय संस्कृति का एक अजस्र प्रवाह, उससे फूटतीं अनंत परंपराएं। हम इस दीप श्रृंखला की एक नन्हीं लौ भी बन सकें तो धन्य हो जीवन।