नई दिल्ली [जेएनएन]। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह द्वारा एक राष्ट्र-एक चुनाव के प्रस्ताव के बाद झारखंड में समय से पहले विधानसभा चुनाव को लेकर अटकलें तेज हो गई है। कयास लगाया जा रहा है कि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव के साथ राज्य विधानसभा के चुनाव भी हो सकते हैं। ऐसा हुआ तो समय से लगभग छह माह पूर्व राज्य विधानसभा को भंग करने की नौबत आ सकती है। परिस्थिति को भांपते हुए क्षेत्रीय दलों ने जहां जमीनी तैयारी तेज कर दी है वहीं कांग्रेस ने भी किलेबंदी मजबूत करने की कवायद शुरू की है। हालांकि भाजपा के सीधे मुकाबले में कांग्रेस कमजोर दिख रही है।

राज्य में मुख्य विपक्षी दल के रूप में क्षेत्रीय पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा का प्रभाव है। मोर्चा ने विधानसभा सम्मेलनों का एक चरण खत्म कर लिया है। पार्टी ने खुद को हरदम इलेक्शन के लिए तैयार रहने का भी दावा किया है। उधर, गुटबाजी से त्रस्त कांग्रेस फिलहाल संगठनात्मक मजबूती पर सबसे ज्यादा ध्यान दे रही है। कांग्रेस ने झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व भी स्वीकार कर लिया है। रणनीति यही है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर संयुक्त विपक्ष चुनावी मैदान में उतरे।

हालांकि इसमें एक बड़ा पेच झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी हो सकते हैं। मरांडी अपने व्यक्तित्व के बूते राजनीति में प्रभावी हैं और हेमंत सोरेन के नेतृत्व पर उनके राजी होने की संभावना कम है। ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, राजद समेत वामदलों का संयुक्त विपक्षी मोर्चा भाजपानीत गठबंधन के मुकाबले खड़ा हो सकता है। भाजपा की सहयोगी आजसू पार्टी का कई नीतिगत मसलों पर विरोध जगजाहिर है लेकिन वह फिलहाल अलग होने के मूड में नहीं दिखती। आजसू पार्टी के प्रमुख सुदेश महतो लगातार दो बार चुनाव हार चुके हैं और उनके समक्ष सबसे बड़ा संकट अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाये रखने की है।

बढ़ता टकराव

झारखंड में वन क्षेत्र का बड़ा दायरा है। इसमें विभिन्न प्रजातियों की वनस्पतियों के साथ-साथ जंगली जानवर बड़ी तादाद में हैं। झारखंड के वन क्षेत्र हाथियों की पसंदीदा जगह है। यहां बड़े पैमाने पर इनकी मौजूदगी और जंगलों में आबादी का बढ़ता हस्तक्षेप मानवहाथी टकराव की वजह बन रहा है। यह द्वंद्व भयावह स्थिति तक पहुंच गया है। इस टकराव में पिछले दस सालों में 582 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। लगभग दो दर्जन जंगली हाथियों के मौत की भी पुष्टि हुई है। हाथी इको सिस्टम का अभिन्न अंग है। आइयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) ने भारतीय हाथियों को लुप्तप्राय वन्य प्राणियों की सूची में शामिल किया है। इन्हें भारतीय वन अधिनियम के शेड्यूल-1 में भी रखा गया है।

जंगली हाथी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। हाथियों का अस्तित्व इसलिए खतरे में है क्योंकि वनों की सघनता में भी कमी आ रही है। हाथियों के पारंपरिक आवागमन मार्ग में कई ऐसी विकास योजनाएं एवं संरचनाएं निर्मित की गई हैं, जिसके कारण उनका पारंपरिक रास्ता बाधित हुआ है। मानव हाथी द्वंद्व का मुख्य कारण जंगलों पर बढ़ता मानवीय दबाव है। भोजन, भूमि और शरण के लिए पर्याप्त स्थान की कमी के कारण मानव एवं हाथी आपस में प्रतियोगी हो गए हैं। टकराव को रोकने और इनसे होने वाली क्षति के तत्काल भुगतान के लिए वन विभाग ने मुआवजा प्रबंधन सिस्टम विकसित किया है। इससे क्षतिपूर्ति का तत्काल भुगतान होता है। हाथियों की निगरानी भी इसके दायरे में आती है। वन विभाग की योजना है कि मानव-हाथी टकराव को रोकने के लिए वनक्षेत्र में आबादी की मौजूदगी कम की जाए। गजराजों के लिए यह आवश्यक भी है ताकि वे अपने इलाके में बेखौफ होकर घूम सकें।

प्रबंधन के काम से मुक्ति

झारखंड सरकार ने अपने अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सा व्यवस्था सुदृढ़ करने तथा चिकित्सकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए चिकित्सकों को प्रबंधन कार्य से मुक्त करने का निर्णय लिया है। सरकारी अस्पतालों में प्रबंधन कार्य के लिए अलग से पदाधिकारी नियुक्त होंगे। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इसे सुनिश्चित करने को लेकर स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारियों को निर्देश दिया है। मुख्यमंत्री की सोच है कि चिकित्सक अपना मूल काम ही करें और उन्हें अन्य कार्यों का बोझ न पड़े। इससे चिकित्सकों की कमी की भी समस्या दूर होगी। उन्होंने हाल ही में राज्य के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल सह मेडिकल कॉलेज राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) में इसे लागू किया था।

वहां प्रबंधन का कार्य अलग करते हुए भारतीय प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी हर्ष मंगला को अपर निदेशक (प्रशासन) पद की जिम्मेदारी दी थी। इसका परिणाम भी दिखने लगा। हालांकि आइएएस पदाधिकारी द्वारा चिकित्सकों पर कड़ाई करने से चिकित्सकों में रोष भी दिखा, लेकिन रिम्स में ही आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री द्वारा चिकित्सकों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने के बाद सबकुछ ठीक हो गया। मुख्यमंत्री ने अब इसे राज्य के अन्य मेडिकल कॉलेजों व सदर अस्पतालों में लागू करने को कहा है।

कहा कि इससे अस्पतालों में न केवल चिकित्सा सुविधाएं बेहतर होंगी बल्कि चिकित्सकों के सिर से काम का बोझ भी कम होगा। बता दें कि अभी तक सदर अस्पतालों में मैनेजमेंट का कार्य सिविल सर्जन, एसीएमओ और उपाधीक्षक देखते हैं जो चिकित्सक ही होते हैं।