झारखंड, प्रदीप शुक्ल। हेमंत की केंद्र को धमकी और लाचारी शायद अब तक प्रदेश की जनता यह भलीभांति समझ चुकी होगी कि राज्य की वित्तीय खस्ताहाल है। जिस तरह नवनिर्वाचित हेमंत सोरेन सरकार ने पूर्व की सभी बड़ी परियोजनाओं के टेंडर रद किए हैं और स्पष्ट किया है कि तमाम गैर जरूरी योजनाएं बंद की जाएंगी, उससे यह स्पष्ट हो चुका है कि आने वाला समय चुनौतीपूर्ण होगा। खजाने की स्थिति यह है कि कर्मचारियों को वेतन देने में भी सरकार को पसीना छूट रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा, गठबंधन सरकार अपनी चुनावी घोषणाओं को अमल में कैसे लाएगी? क्योंकि झामुमो, कांग्रेस और राजद ने गरीबों, बेरोजगार युवाओं-युवतियों, मजदूरों और किसानों के लिए भारी-भरकम घोषणाएं कर रखी हैं।

जल्द ही वित्तीय स्थिति को दुरुस्त कर लेंगे : स्वाभाविक है कि नई सरकार अपने एजेंडे पर आगे बढ़ेगी और उसे इसका पूर्ण अधिकार भी है, क्योंकि जनता ने उसे इसके लिए जनादेश दिया है, लेकिन राज्य की वित्तीय स्थिति को मजबूत करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है। हेमंत सोरेन कह रहे हैं कि वह जल्द ही वित्तीय स्थिति को दुरुस्त कर लेंगे, लेकिन अभी तक कोई रोडमैप सामने नहीं आया है।

पूर्ववर्ती रघुवर सरकार के समय में कई बड़ी परियोजनाओं को गैर जरूरी बताकर उनके टेंडर रद कर दिए गए हैं। तमाम कांट्रेक्टर असमंजस में हैं, आगे क्या होगा? काम ठप होेने से रोजगार छिन रहे हैं। सरकार कह रही है कि जल्द ही हालात सुधरेंगे। नई योजनाएं आएंगी जो राज्य की जनता के जीवन स्तर को सुधारने के लिए ज्यादा कारगर होंगी। रोजगार भी पैदा होंगे। मुख्यमंत्री लगातार कह रहे हैं कि वह राज्य के लोगों को राज्य में ही रोजगार मुहैया कराएंगे। इसके लिए उनके पास तमाम नवोन्मेषी विचार हैं। जनता उम्मीद लगाए है।

कोयला उत्पादन नहीं होने देंगे : इस बीच हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार को धमकी दी है कि अगर खनन के लिए एक डिसमिल भी जमीन अधिग्रहित की जाती है तो किसान को नौकरी और मुआवजा हर हाल में देना होगा अन्यथा वह कोयला उत्पादन नहीं होने देंगे। वैसे यह नियम पहले से है और कोयला कंपनियां ऐसा दावा करती हैं कि वह मुआवजा व नौकरी देते हैं, लेकिन बाद में तमाम लोग फिर खनन क्षेत्र में बस जाते हैं। इससे विवाद पैदा होते हैं। सरकार इनसे कैसे निपटती है यह भी पता चलेगा। बेहतर होता, सरकार के पास अगर ऐसा कोई आंकड़ा है तो वह कोयला कंपनियों को देती और उन पर दबाव बनाती कि वे इन मामलों का निपटारा करें।

बहुत मिला, थोड़े और की जरूरत : मंत्रियों ने कार्यभार संभाल लिया है और अपनी-अपनी प्राथमिकताएं भी जता दी हैं। कुछ की नाराजगी की बात भी सामने आ रही है, पर अभी कोई खुलकर कुछ नहीं कह रहा है। ज्यादातर की नाराजगी कक्षों के आवंटन और कुछ की जरूरी विभागों का न मिलना है। खैर, काम शुरू हो गया है और जल्द ही दूसरी कैबिनेट होने जा रही है। उम्मीद की जा रही है कि सरकार इसमें कुछ बड़े फैसले लेगी। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में दावा किया था कि यदि गठबंधन की सरकार बनती है तो पहली कैबिनेट में ही किसानों के कर्ज माफ किए जाएंगे। पहली कैबिनेट 29 दिसंबर को हो चुकी है।

कांग्रेस कह सकती है कि उस समय तक मंत्रिमंडल का पूर्ण गठन नहीं हुआ था, लेकिन अगली कैबिनेट में इसकी घोषणा करवाने का उस पर दबाव होगा। वैसे कोई भी सरकार किसानों की नाराजगी मोल लेने की स्थिति में नहीं है। हेमंत सोरेन लगातार कह ही रहे हैं कि किसान, आदिवासी, मूलवासी उनकी प्राथमिकता हैं। देखना होगा, क्या पूर्ववर्ती रघुवर सरकार की मुख्यमंत्री आशीर्वाद योजना बरकरार रहती है जिसमें किसानों को प्रति एकड़ पांच हजार (अधिकतम पच्चीस हजार) हर वर्ष देने का प्रावधान है। वैसे कहा जा रहा है कि किसानों को यह धनराशि मिलती रहेगी, हो सकता है कि योजना का नाम और कुछ नियम-कायदे बदल जाएं।

टैब को लेकर बवाल : शिक्षा विभाग द्वारा सभी स्कूलों को दिए गए टैब में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के वीडियो का मामला भी पेंचीदा होता जा रहा है। राज्य में सत्ता बदलने के साथ ही शिक्षा विभाग इस कवायद में जुटा है कि टैब से यह वीडियो डिलीट कर दिए जाएं, लेकिन कंपनी ने इससे हाथ खड़े कर दिए हैं। अब शिक्षा मंत्री ने इस बाबत आदेश कर दिए हैं कि टैब से किसी भी सूरत में पूर्व मुख्यमंत्री का वीडियो डिलीट करवाकर ही उन्हें स्कूलों को दिया जाए।

अनुमान है कि इससे राज्य के खजाने को काफी नुकसान होगा। शिक्षा मंत्री ने यह जांच करने का भी निर्देश दिया है कि किस अधिकारी के आदेश पर ऐसा किया गया, ताकि उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सके। यह अच्छी पहल है। आधिकारी चापलूसी में ऐसी योजनाएं बना देते हैं जो बाद में धन की बर्बादी का बड़ा कारण बनती है। बड़ी परियोजनाओं की परिकल्पना, टेंडरिंग सहित तमाम प्रक्रियाओं में भी बड़ी धनराशि खर्च होती है। यदि सरकार को लगता है कि यह गैर जरूरी हैं तो उन विभागों के अफसरों पर भी मजबूती से शिकंजा कसा जाना चाहिए, जिन्होंने इन्हें डिजाइन किया।

[स्थानीय संपादक, झारखंड]