झारखंड, प्रदीप शुक्ला। Jharkhand Assembly Election 2019: विभिन्न मुद्दों को लेकर देश की संसद गरम है। जाहिर है उसकी आंच अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी पहुंच रही है, लेकिन यहां उसकी तपिश कुछ ज्यादा ही महसूस की जा रही है। कारण भी स्पष्ट है राज्य में चल रहे विधानसभा चुनाव। सत्ता पक्ष की तरफ से मोर्चा पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संभाल रखा है तो पहले चरण तक प्रचार अभियान से दूर रहे राहुल गांधी भी अब विपक्षी गठबंधन की धुरी बन गए हैं। प्रधानमंत्री अपनी हर रैली में कांग्रेस को निशाने पर रखे हुए हैं, वहीं राहुल गांधी प्रधानमंत्री पर लगातार हमलावर हैं।

कैबिनेट के तेज-तर्रार नेता सरयू राय का ‘ड्रामा’ जारी

प्रधानमंत्री झारखंड को भरोसा दे रहे हैं, ‘भाजपा जो कहती है वह करती है। और मोदी है तो उन्हें किसी और के बारे में क्या सोचना।’ ठीक इसके उलट, राहुल गांधी उनकी विश्वसनीयता पर लगातार सवाल उठा रहे हैं। इन सबके बीच मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ ताल ठोककर सुर्खियां बटोरने वाले उन्हीं की कैबिनेट के तेज-तर्रार नेता सरयू राय का ‘ड्रामा’ जारी है। गुरुवार को तीसरे चरण की 17 सीटों पर मतदान के साथ अब तक 50 सीटों पर प्रत्याशियों का भाग्य इवीएम में कैद हो चुका है। 16 और 20 दिसंबर को चौथे तथा पांचवें चरण में कुल 31 और सीटों पर अभी वोट पड़ना है।

नागरिकता संशोधन विधेयक पर कांग्रेस का रवैया शुतुरमुर्गी

प्रधानमंत्री अब तक चार दौरों में सात चुनावी रैलियां संबोधित कर चुके हैं तो राहुल गांधी भी तीन दौरे कर पांच जनसभाओं के जरिये मतदाताओं को साध गए हैं। बेशक, यहां झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व में विपक्षी महागठबंधन चुनाव लड़ रहा है जिसका कांग्रेस हिस्सा है, लेकिन प्रधानमंत्री के निशाने पर लगातार

कांग्रेस ही है। कांग्रेस को लटकाने, अटकाने और वोट के लिए विभाजित करने वाला करार देते हुए वह मतदाताओं को सचेत कर रहे हैं। उदाहरण सहित बता रहे हैं कैसे अयोध्या में राम मंदिर, कश्मीर में अनुच्छेद 370, तीन तलाक, पिछड़ों के लिए आयोग का गठन, नागरिकता संशोधन विधेयक पर कांग्रेस का रवैया शुतुरमुर्गी रहा है और इन सबके चलते देश ने कितना कुछ भुगता है।

झारखंड का विकास डबल इंजन की सरकार से ही संभव

भगवान राम का यहां के आदिवासियों- वनवासियों से नाता जोड़ने में भी नहीं चूकते। डबल इंजन का फायदा गिनाते हैं और रैलियों में उमड़ रही भीड़ से मुहर लगवा रहे हैं मोदी है तो किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है। भाजपा जो कहती है वह करती है। मतदाताओं को उन पर पूरा भरोसा करना चाहिए। झारखंड का विकास डबल इंजन की सरकार से ही हो सकता है। रघुवर दास की स्थाई और सशक्त सरकार ने पांच साल में झारखंड को सही रास्ते पर डाल दिया है, बस अब इसे अगले पांच साल में समृद्ध राज्य बना देना है।

विपक्षी गठबंधन की नैया पार लगाने की कोशिश में जुटे राहुल

इधर, राहुल गांधी प्रधानमंत्री की विश्वसनीयता पर ही लगातार सवाल उठा रहे हैं। उन्हें इसकी कोई चिंता नहीं है कि छह महीने पहले ही हुए लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने नोटबंदी, जीएसटी, दस-पंद्रह उद्योगपतियों को लाखों करोड़ रुपये दे देने जैसे प्रधानमंत्री पर उनके आरोप झारखंड ही नहीं देश की जनता नकार चुकी है, लेकिन वह इन्हीं के सहारे विपक्षी गठबंधन की नैया पार लगाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। उनके मुद्दों की तरह अंदाज भी नहीं बदला है। हां, अपनी रैलियों में बीच-बीच में प्याज, महंगाई का तड़का जरूर लगा रहे हैं जिसे जनता पसंद भी कर रही है। जल, जंगल और जमीन के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही एक-दूसरे पर हमलावर हैं।

पहले भाजपा इस मुद्दे पर रक्षात्मक थी, लेकिन दूसरे चरण में प्रधानमंत्री ने कांग्रेस और झामुमो को सीधा निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि दोनों दलों की नजर झारखंड की प्राकृतिक संपदा पर है और वह किसी भी सूरत में इनके इरादों को कामयाब नहीं होने देंगे। मुख्यमंत्री रघुवर दास लोकसभा चुनाव से ही झामुमो नेता हेमंत सोरेन पर आदिवासियों की जमीन छीनने के गंभीर आरोप लगाते आ रहे हैं। झामुमो नेता हेमंत सोरेन इस मुद्दे पर ज्यादा न बोलकर रघुवर की डबल इंजन सरकार को फेल करार दे रहे हैं।

सरयू के इस्तीफे पर विवाद

मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय ताल ठोक रहे कैबिनेट मंत्री सरयू राय का ‘ड्रामा’ भी जारी है। दूसरे चरण में यहां मतदान हो चुका है, लेकिन अभी तक उनके इस्तीफे का मसला हल नहीं हुआ है। वह दावा कर रहे हैं कि 17 नवंबर को ही उन्होंने अपना इस्तीफा राजभवन को भेज दिया था, लेकिन अब राजभवन ने स्पष्ट कर दिया है कि सरयू का इस्तीफा मिला ही नहीं है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है वह ‘पूरे ड्रामे’ का फायदा ले चुके हैं। उनका इस्तीफा भले ही स्वीकार न हुआ हो, भाजपा ने जरूर छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है। पार्टी विरोधी गतिविधियों में कई और नेताओं पर भी गाज गिरी है, इसमें कुछ केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के भी करीबी हैं। इस गुटबाजी में अभी कई और के निपटने की उम्मीद है। तय होगा 23 दिसंबर के बाद, यह देखकर कि आखिरी परिणाम क्या रहा?

[स्थानीय संपादक, झारखंड]