अभिमन्यु शर्मा। पहाड़ों पर बर्फ पिघल रही है जो कश्मीर में मौसम में बदलाव का संकेत है। बदलाव सिर्फ मौसम तक ही सीमित नहीं। केंद्र शासित प्रदेश जम्मूकश्मीर की सियासत और माहौल में भी बदलाव आ रहा है, जिसकी पुष्टि बीते दस दिनों के घटनाक्रम से हो जाती है। पांच अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के साथ ही जो सियासी गतिविधियां लगभग ठप हो चुकी थीं, वह अब जोर पकड़ने लगी हैं।

नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जैसे दो प्रमुख क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व को जम्मू-कश्मीर में चुनौती देते हुए ‘जेके अपनी पार्टी’ गठित हो चुकी है। इसका गठन पीडीपी से निष्कासित पूर्व वित्त मंत्री सईद अल्ताफ बुखारी ने किया है। इसमें कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस के कई पूर्व नेता एवं पूर्व विधायक शामिल हैं। अल्ताफ बुखारी और उनके साथियों ने कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर उन्हें बदली संवैधानिक-प्रशासनिक एवं राजनीतिक व्यवस्था में जम्मू-कश्मीर के लोगों के दिलों में उठ रहे सवालों से अवगत कराया। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया कि जम्मू-कश्मीर में किसी तरह के जनसांख्यिकी बदलाव का कोई इरादा नहीं है। इसके अलावा उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि परिसीमन में पूरी निष्पक्षता और पारदर्शिता बरती

जाएगी।

प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का यह आश्वासन जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। इससे हालात को पूरी तरह सामान्य बनाने की प्रक्रिया को गति मिलेगी। ‘जेके अपनी पार्टी’ ने प्रधानमंत्री के साथ उपरोक्त मुद्दों को उठाकर अपने सियासी एजेंडे की पुष्टि करने के साथ ही अन्य दलों को भी अपने परंपरागत मुद्दों से हटने का एक रास्ता दिया है। अगर ‘अपनी पार्टी’ द्वारा उठाए गए मुद्दों को अन्य दल नजरअंदाज करते हैं तो फायदा ‘अपनी पार्टी’ को ही होगा। ‘अपनी पार्टी’ ने इन मुद्दों को विभिन्न सामाजिक, मजहबी, व्यापारिक और बुद्धिजीवी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के आधार पर ही आगे बढ़ाया है। अपनी पार्टी ने 370 का मुद्दा नहीं उठाया, बल्कि संकेत दिया है कि वह उन्हीं मुद्दों पर सियासत करेगी जो व्यावहारिक होंगे और जिन्हें हासिल किया जा सकता है।

खैर जेके अपनी पार्टी जब जम्मूकश्मीर में नए सियासी एजेंडे की नींव रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर रही थी, उसी दौरान श्रीनगर में सबको हैरान करते हुए प्रशासन ने नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष डॉ फारूक अब्दुल्ला को रिहा कर दिया। सवा सात माह बाद रिहा हुए डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने उम्मीद के विपरीत कोई सियासी जल्दबाजी नहीं दिखाई। एक मंझे हुए सियासतदां होने का सुबूत देते हुए कहा कि वह कश्मीर के अन्य नेताओं की रिहाई के बाद ही किसी सियासी मसले और जम्मू-कशमीर के हालात पर बात करेंगे।

फिलहाल सभी की रिहाई जरूरी है। उन्होंने दिल्ली से मिलने आए पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद से भी मुलाकात की, लेकिन उन्हें कोई आश्वासन नहीं दिया। हालांकि आजाद और फारूक के बीच हुई बातचीत का सार्वजनिक ब्यौरा नहीं मिला, लेकिन जिस तरह से फारूक अब्दुल्ला ने इस पर चुप्पी साधी और गुलाम नबी आजाद ने मीडिया को संबोधित करते हुए जम्मू-कश्मीर में बेकारी, आर्थिक सुस्ती जैसे मुद्दों का जिक्र किया, उससे साफ है कि फारूक अब्दुल्ला ने कांग्रेस को जम्मू-कश्मीर में किसी सियासी मोर्चे के गठन पर कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने दिल्ली में जारी संसद के सत्र में हिस्सा लेने के बजाय कश्मीर में रहकर ही जम्मूकश्मीर के विभिन्न हिस्सों में स्थित अपने कैडर एवं नेताओं से मुलाकात करने को प्राथमिकता दी।

उन्होंने अपने कैडर के साथ जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम और अनुच्छेद 370 से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा बातचीत नहीं की, बल्कि उन्हें जम्मू-कश्मीर में एकता और सांप्रदायिक सौहार्द को मजबूत बनाने के लिए काम करने को कहा। उन्होंने अपने समर्थकों को भी अन्य नेताओं की रिहाई तक इंतजार करने और जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य बनाए जाने के लिए काम करते रहने को कहा। उनके इस रवैये से साफ है कि वह अब जम्मू-कश्मीर में सभी को साथ लेकर आगे बढ़ने के मूड में हैं। उनके इस रवैये से यह भी कयास लगाया जा रहा है कि वह कोई भी नया सियासी नारा देने से पहले आम जनता के मूड को भांपना चाहते हैं। उन्हें ऐसा करने का पूरा हक है और उम्मीद करनी चाहिए कि वह जनता के मूड को सही तरीके से भांप कर अलगाववाद को पोषित करने वाली स्वायत्तता के परंपरागत सियासी एजेंडे को हमेशा के लिए अलविदा कह देंगे।

[लेखक जम्मू-कश्मीर के संपादक हैं]

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