हर्षवर्धन त्रिपाठी। पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया गया। उसके करीब माह भर बाद 10 और 11 सितंबर को श्रीनगर में था। डल झील की शाम बेहद उदास दिख रही थी, लेकिन उसकी बड़ी बाहरी पर्यटकों की संख्या में कमी से ज्यादा डल झील में मुश्किल से चल पा रहे शिकारे थे। डल झील में गाद इतनी ज्यादा हो गई थी कि श्रीनगर की पहचान डल झील के खत्म होने की आशंका भी कश्मीरी जताने लगे थे।

डल झील में गाद और कश्मीर में आतंकवादी दोनों ही लगातार बढ़ रहे थे। कहने के लिए आतंकवादियों के खिलाफ भी अभियान चलता था और प्रतिवर्ष डल झील की सफाई के लिए भी खूब पैसा आता था, लेकिन अनुच्छेद 370 की आड़ में आतंकवादियों को अलगाववादियों और स्थानीय नेताओं का सुरक्षा कवच मिल जाता था तो डल झील की सफाई का कोई ऑडिट तक नहीं होता था कि कितनी रकम आई और खर्च हुई।

पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर के लोगों को स्वतंत्रता मिल गई थी और इसके साथ ही वहां होने वाले विकास कार्यो की जवाबदेही भी तय होने लगी थी। श्रीनगर के सचिवालय में पार्टी कार्यकर्ता और अलगाववादियों के खबरी के तौर पर काम करने वालों के लिए बुरी खबर थी, लेकिन आम कश्मीरी के लिए यह अच्छी खबर थी और केंद्र सरकार की आतंकवाद के खिलाफ बेहद सख्ती बरतने की नीति का अच्छा प्रभाव अनुच्छेद 370 की समाप्ति के एक वर्ष बाद स्पष्ट दिखने लगा है।

25 जुलाई को ही सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने साझा अभियान में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी इशफाक रशीद खान को मार गिराया था। इससे पहले जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अर्धसैनिक बलों और सेना के साथ मिलकर सवा सौ से ज्यादा आतंकियों को उनके किए की सजा दे दी और बार-बार इस बात पर सवाल खड़े हो रहे थे कि आखिर जब इतने आतंकवादी मारे जा रहे हैं तो अनुच्छेद 370 हटाने से क्या लाभ हुआ, लेकिन 26 जुलाई की आइजी विजय कुमार की प्रेस कांफ्रेंस स्पष्ट करती है कि अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद श्रीनगर के लोगों को पूरी तरह से आतंकवाद से मुक्ति मिल गई है।

आतंकवाद का खात्मा जम्मू-कश्मीर में शांति व बेहतरी की पहली शर्त है और निस्संदेह अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद घाटी में आतंकवादियों का नेटवर्क तबाह हो गया है। अलगाववादियों को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। यही वजह रही कि घाटी में कश्मीरियों की तीन पीढ़ियों को अलगाववाद के नाम पर बर्बाद कर चुके 90 वर्षीय सैयद अली शाह गिलानी ने 29 जून को हुर्रियत कांफ्रेंस के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया और उनका एक ऑडियो स्पष्ट करता है कि अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद वाले कश्मीर में आंदोलन को तवज्जो देने को कोई कश्मीरी तैयार नहीं है। आतंकवाद और अलगाववाद की कमर तोड़ना जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की शांति के लिए सबसे जरूरी था और खासकर कश्मीर घाटी में नौजवानों को अलगाववादियों तक पहुंचाने से रोकना, ताकि आतंकवाद की तरफ नौजवान न जा सकें, इस काम में भारत की सरकार, सेना, जम्मू कश्मीर पुलिस ने चरणबद्ध तरीके से बड़ी सफलता हासिल कर ली है।

इसके साथ ही सबसे जरूरी था कि आम कश्मीरियों के जीवन में बदलाव आए और उस बदलाव के लिए जरूरी था कि बिजली, सड़क और पानी जैसी जरूरतें पूरी करके उन्हें रोजगार दिया जाए। दक्षिण कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित शोपियां जिले के दुननाडी गांव में 73 वर्षो के बाद बिजली पहुंची है। जम्मू के कटरा से ऊपर जाते हुए आपको जम्मू-कश्मीर के हर रास्ते पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना की होìडग दिख जाएंगी, लेकिन शोपियां के दुननाडी गांव में बिजली आने की कहानी सबको जानना जरूरी है। इस गांव में बिजली पहुंची या नहीं, इसकी निगरानी खुद प्रधानमंत्री कार्यालय से की जा रही थी। बिजली विभाग के कर्मचारियों ने एक सप्ताह में इस गांव में बिजली पहुंचा दी।

अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय का जम्मू-कश्मीर पर विशेष ध्यान है और इसीलिए जब 26 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनंतनाग के नगर पालिका अध्यक्ष मोहम्मद इकबाल की तारीफ छह लाख लागत वाली सैनिटाइज करने वाली मशीन को 50 हजार रुपये में तैयार करने के लिए की तो किसी को हैरानी नहीं हुई। अनुच्छेद 370 की समाप्ति ने जम्मू कश्मीर को सही मायने में स्वतंत्रता दे दी है। केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर व लद्दाख की हर आधारभूत सुविधा दुरुस्त करने पर लगी हुई है, तो वहीं निजी क्षेत्र को यहां कारोबार की अपार संभावनाएं दिख रही हैं। 43 कंपनियों ने 15 हजार करोड़ रुपये के 62 निवेश प्रस्ताव को लागू करने की इच्छा जताई है। श्रीनगर में नया मल्टीप्लेक्स बनकर तैयार हो रहा है। यहां का फुटबॉल क्लब धूम मचा रहा है। श्रीनगर में तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने हमसे एक बात कही थी कि यहां नौजवानों के पास कुछ करने को ही नहीं है तो पत्थर उठा लेते हैं। अब मोदी सरकार उन्हें मौके दे रही है तो भला कौन पत्थर उठाएगा। सत्यपाल मलिक की कही वह बात आज सही साबित होती है।

साफ डल झील, आतंकवादी विहीन श्रीनगर, शोपियां के गांव में आई रोशनी, नए-नए अवसर और भारत के हर नागरिक के जैसे अधिकार और कर्तव्य का अहसास यह नए जम्मू-कश्मीर का खूबसूरत चित्र है, एकदम वैसा ही जिस कश्मीर के लिए कहा गया था कि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है।

[वरिष्ठ पत्रकार]