जम्मू-कश्मीर, अभिमन्यु शर्मा। जम्मू-कश्मीर सरकार ने विवादास्पद राज्य नियामक आदेश (एसआरओ)-202 को लागू नहीं करने का फैसला कर सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने वाले हजारों युवाओं को तोहफा दिया है। सरकार के आदेश से इस एसआरओ के तहत काम कर रहे करीब साढ़े बारह हजार कर्मचारी भी लाभान्वित होंगे। वर्ष 2015 में तत्कालीन पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार ने यह एसआरओ लागू किया था। इसके तहत सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए कुछ शर्ते रखी गई थीं। भर्ती के बाद कर्मचारियों को पांच साल तक आधा वेतन मिलता और इस दौरान कर्मचारी नियमित भी नहीं होते थे। इन पांच वर्ष में न तो कर्मचारी उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते थे और न ही उनका स्थानांतरण होता था। इसके तहत स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए पांच वर्ष तक प्रदेश के दूरदराज के क्षेत्रों में नौकरी करना अनिवार्य था।

जब तत्कालीन गठबंधन सरकार ने इस एसआरओ को लागू किया था तो उसी समय इसके खिलाफ विरोध के स्वर उठने शुरू हो गए थे। एसआरओ को वापस लेने की मांग को लेकर कई दिनों तक धरने-प्रदर्शन भी हुए, लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई। ऐसे कई युवा थे जिन्होंने नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर अपना आक्रोश प्रकट किया। इस मामले ने अक्टूबर 2018 में उस समय तूल पकड़ा जब लोक सेवा आयोग ने एसआरओ-202 के तहत स्वास्थ्य अधिकारियों के तकरीबन एक हजार पदों के लिए आवेदन मांगे। यह शायद ऐसा पहला अवसर था, जब बिना किसी साक्षात्कार के केवल लिखित परीक्षा के आधार पर ही तीन महीने में चयन सूची जारी कर दी गई, लेकिन एसआरओ की शर्तो के विरोध में चुने गए दो तिहाई अधिकारियों ने त्यागपत्र दे दिए। बड़ी संख्या में त्यागपत्र दिए जाने की घटना को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि सरकार पर दबाव बनेगा और वह विवादास्पद एसआरओ को वापस ले लेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गत वर्ष पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद इसे खत्म करने की एक बार फिर सुगबुगाहट शुरू हुई, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी।

कुछ समय पहले मौजूदा प्रशासन ने भी जब इसी एसआरओ के तहत भíतयां करने के लिए आवेदन मांगे तो इसका जोरदार विरोध हुआ। कोरोना संक्रमण के बावजूद राजनीतिक दलों और विद्यार्थी संगठनों ने सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी। सोशल मीडिया पर भी सरकार को भारी विरोध ङोलना पड़ा। एसआरओ को वापस लेने के लिए सरकार पर दबाव बढ़ता गया। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह, जो उधमपुर-डोडा से सांसद हैं, उन्होंने भी यह मुद्दा केंद्र सरकार के समक्ष उठाया। चारों ओर से बढ़ते दबाव के बाद गत सोमवार को जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक परिषद ने बैठक कर एसआरओ-202 को सरकारी नौकरियों में लागू नहीं करने का एक महत्वपूर्ण फैसला लिया। इस फैसले के तहत जो कर्मचारी पहले से इस एसआरओ के तहत नौकरी कर रहे हैं, उनका प्रोबेशन पांच साल से कम कर दो साल कर दिया गया और दो साल बाद उनकी सेवाएं नियमित हो जाएंगी। कर्मचारी संगठनों और युवाओं ने हालांकि सरकार के इस फैसले को सराहा जरूर है, लेकिन यह मुद्दा अभी तक पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। इसका संकेत विपक्षी दलों ने प्रशासनिक परिषद का फैसला आने के बाद ही दे दिया।

फैसले के स्वागत के साथ ही विपक्ष ने कर्मचारियों को पूरा वेतन जारी किए जाने की भी मांग कर दी। विपक्ष के तेवर का अंदाजा इसी बात से लग गया कि उसने अधूरा इंसाफ मिलने की बात कहकर चेतावनी दे डाली कि जब तक कर्मचारियों को पूरा वेतन नहीं दिया जाता, तब तक आंदोलन पहले की तरह ही जारी रहेगा। इस समय जम्मू-कश्मीर में करीब छह लाख से अधिक युवा बेरोजगार हैं। तकरीबन एक लाख से अधिक युवाओं ने रोजगार के लिए अपने नामों का रोजगार केंद्रों में पंजीकरण करवाया हुआ है। युवाओं का विश्वास हासिल करने की होड़ सभी राजनीतिक दलों में लगी हुई है। एसआरओ-202 को खत्म करने का श्रेय लेकर भारतीय जनता पार्टी जहां यह संदेश दे रही है कि वह युवाओं एवं कर्मचारियों की हितैषी है, वहीं विपक्ष के तेवर को देखकर लग रहा है कि वह फिलहाल अभी इस मुद्दे को छोड़ने के मूड में नहीं। उसे लगता है कि अगर वह सरकार पर दबाव बनाकर कर्मचारियों का बकाया वेतन दिलवा देती है तो युवाओं और कर्मचारियों के दिल में उनके लिए जगह बन जाएगी। फिलहाल सभी अपने-अपने तरीके से उपराज्यपाल प्रशासन के फैसले की सराहना कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।

[संपादक, जम्मू-कश्मीर]