अनंत विजय। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) एक ऐसा साहित्य महोत्सव है जो पूरी दुनिया के साहित्यप्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। हर वर्ष जनवरी के महीने में जयपुर के ऐतिहासिक डिग्गी पैलेस में आयोजित होनेवाले इस लिटरेचर फेस्टिवल में देश-विदेश के तमाम मशहूर लेखकों का जमावड़ा होता है

जो साहित्य की विभिन्न विधाओं से लेकर राजनीति, खेल और सिनेमा लेखन की नई प्रवृत्तियों पर विमर्श करते हैं। जेएलएफ में नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखकों के अलावा दुनियाभर के प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित लेखकों के विचारों को सुनने का अवसर मिलता है।

आज अगर देश के अलग-अलग हिस्सों में लिटरेचर फेस्टिवल हो रहे हैं या कह सकते हैं कि पूरे देश में जो एक साहित्य महोत्सवों की संस्कृति का विकास हुआ है तो उसके पीछे जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की सफलता ही है। लगभग सभी साहित्य उत्सव जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की तर्ज पर ही आयोजित होते हैं। इस लिहाज से अगर देखा जाए तो देशभर में साहित्यिक संस्कृति को मजबूत करने में जेएलएफ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, प्रत्यक्ष रूप से भी और परोक्ष रूप से भी।

जेएलएफ का आयोजन 23 से 27 जनवरी तक हो रहा है। यह उनके आयोजन का तेरहवां साल है। तेरह वर्षों में जेएलएफ ने अपने आप को इतनी मजबूती से स्थापित कर लिया कि वह अब देश से निकलकर ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी आयोजित होने लगा है। 2008 में पहली बार जब इसका आयोजन हुआ था तो इसकी संकल्पना जयपुर विरासत फाउंडेशन के कर्ताधर्ताओं ने की थी। जयपुर विरासत फाउंडेशन ने राजस्थान की लोक संस्कृति के लिए बहुत काम किया है। उस वक्त इससे जुड़ी मीता कपूर के मुताबिक 2008 के इंटरनेशनल हेरिटेज फेस्टिवल के तहत ही उसके खंड के रूप में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की शुरुआत हुई थी।

2008 में यह आयोजन तीन दिनों का था और दिग्गी पैलेस के एक ही हॉल में इसका आयोजन हुआ था। उस वर्ष भी नमिता गोखले जेएलएफ से एडवाइजर के तौर पर जुड़ी थीं। मीता कपूर बाद में इस आयोजन से अलग हो गईं, पर एक परंपरा जो उन्होंने पहले संस्करण में शुरू की थी उसका निर्वाह आज तक कर रही हैं। वह जेएलएफ में आने वाले सभी प्रतिभागियों और अन्य महत्वपूर्ण अतिथियों को अपने घर पर शाम को दावत देती हैं। इस रात्रिभोज में परोसे जानेवाला खाना वह खुद बनाती हैं या उनकी देखरेख में राजस्थानी खाना तैयार किया जाता है।

जेएलएफ के आयोजन की संरचना इस तरह से की गई ताकि वह साहित्यप्रेमियों के अलावा अन्य लोगों को भी अपनी ओर आकृष्ट कर सके। अलग-अलग भाषा के लेखकों के साथ-साथ सिनेमा और खेल के सितारों को हर संस्करण में नियमत रूप से आमंत्रित करने से भी इसको मजबूती मिली। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में फिल्म से जुड़े लोगों और फिल्मी सितारों को बुलाने को लेकर कई बार सवाल भी खड़े होते रहे हैं। ऐसे सवाल सिर्फ जेएलएफ को लेकर ही नहीं उठे हैं, बल्कि दुनिया में जहां भी साहित्य महोत्सवों में फिल्मी सितारों को बुलाया जाता है वहां-वहां ऐसे सवाल खड़े होते रहे हैं।

बेस्टसेलर उपन्यास चॉकलेट के ब्रिटिश लेखक जॉन हैरिस ने भी साहित्य महोत्सवों में फिल्मी सितारों को लेकर एक अलग ही तरह का प्रश्न उठाया था। उन्होंने कुछ वर्ष पहले कहा था कि ‘कई लिटरेचर फेस्टिवल इन सितारों के चक्कर में लेखकों पर होनेवाले खर्चे में भारी कटौती करते हैं। आयोजकों को लगता है कि सितारों के आने से ही उनको हेडलाइन मिलेगी। उनका मानना था कि इससे आयोजकों को फायदा होता है, पर साहित्य नेपथ्य में चला जाता है। बाजार के विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के साहित्यिक आयोजन तभी सफल हो सकते हैं जब इसमें शिरकत करनेवालों में सितारे भी हों, क्योंकि विज्ञापनदाता उनके ही नाम पर स्पांसरशिप देते हैं।

विज्ञापनदाताओं की रणनीति होती है कि जितना बड़ा सितारा होगा उतनी बड़ी भीड़ जुटेगी और उनके उत्पाद का प्रचार बड़े उपभोक्ता वर्ग तक पहुंचेगा, परंतु सवाल यही है कि क्या इस तरह के आयोजनों में साहित्य या साहित्यकारों पर पैसे को तरजीह दी जानी चाहिए। अगर उद्देश्य साहित्य पर गंभीर विमर्श है, अगर उद्देश्य पाठकों को साहित्य के प्रति संस्कारित करने का है तो उसके साथ-साथ इसमें सितारों को बुलाने में कोई हर्ज नहीं है। गुलजार, जावेद अख्तर, शाबाना आजमी, प्रसून जोशी तो लगभग नियमित तौर पर ही इस आयोजन में आते रहे हैं। उनके अलावा काजोल, करन जौहर, सोमन कपूर, वहीदा रहमान जैसे कलाकार भी जेएलएफ की शान बढ़ा चुके हैं।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में विवादों की भी बड़ी भूमिका रही है। हालांकि इसकी फेस्टिवल डायरेक्टर नमिता गोखले हमेशा से कहती हैं कि उनका उद्देश्य इस आयोजन में किसी तरह के विवाद पैदा करना कभी भी नहीं रहा, पर 2012 में विवादित लेखक सलमान रश्दी के जेएलएफ में आने को लेकर भारी विवाद हुआ था। सलमान पर अपनी किताब द सैटेनिक वर्सेस में ईशनिंदा का आरोप है और उनके खिलाफ ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्ला अली खामनेई ने जान से मारने का फतवा भी जारी किया था। सलमान रश्दी के विवाद के केंद्र में रहने की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस आयोजन की तरफ लोगों का ध्यान गया था। चार दिनों तक हुए विवाद के बाद आखिरकार सलमान को जयपुर आने की इजाजत नहीं मिली। मामला इतने पर ही नहीं रुका था। उस वक्त की गहलोत सरकार ने वीडियो लिंक के जरिये भी सलमान को सत्र में भाग लेने की अनुमति नहीं दी थी, लेकिन इसके बाद भी विवाद रुका नहीं था।

सलमान रश्दी के नहीं आने और वीडियो लिंक से सत्र में जुड़ने की अनुमति नहीं मिलने के बाद लेखक जीत थाईल, रुचिर शर्मा और हरि कुंजरू ने सलमान रश्दी की विवादित किताब के अंश पढ़ दिए थे। उसके बाद जीत थाईल पर जयपुर और अजमेर में आठ केस दर्ज किए गए थे। उसके बाद के वर्षों में आशीष नंदी के एक बयान को लेकर आशुतोष की आपत्ति पर भारी विवाद हुआ था। यह विवाद भी काफी दिनों तक चला और बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और फिर वहां से निबटा। 2016 में फिल्मकार करण जौहर ने भी अपने बयान से छोटा ही सही, पर विवाद खड़ा किया था। जेएलएफ के आयोजन के पहले ही दिन करण जौहर ने लोकतंत्र को मजाक बता दिया था। उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा था कि हमारे देश में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन सबसे बड़ा जोक है और लोकतंत्र तो उससे भी बड़ा मजाक है। करण के मुताबिक अगर आप अपने मन की बात कहना चाहते हैं तो यह देश सबसे मुश्किल है। इसके अलावा तसलीमा नसरीन के वहां पहुंचने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मनमोहन वैद्य के एक बयान को लेकर भी भारी विवाद हुआ था। इन विवादों ने जेएलएफ को चर्चित करने में अवश्य मदद की।

बहरहाल यहां गंभीर साहित्यिक विमर्श भी होते हैं जो पाठकों को संस्कारित करते हैं। राजनीति से लेकर अर्थशास्त्र और औपनिवेशिक संस्कृति के सवालों से भी विद्वान वक्ता मुठभेड़ करते हैं जो पाठकों को उन विषयों को सोचने-समझने की एक नई दृष्टि देते हैं। देश-दुनिया के पाठकों के लिए ये पांच दिन ऐसे होते हैं जिनमें हर तरह की रुचि के विषयों पर विमर्श होता है और पाठकों को भी उसमें हिस्सा लेने का अवसर प्राप्त होता है। पहले संस्करण में एक हॉल से शुरू हुए इस आयोजन में अब पांच स्थानों पर समांतर सत्र होते हैं और श्रोताओं के लिए विकल्प होता है कि वे किस विषय पर किस वक्ता को सुनना चाहते हैं।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल पिछले तेरह सत्रों में अपने आयोजन के स्वरूप में भी लगातार बदलाव करता रहता है। इसमें सांगीतिक आयोजन जुड़े, जयपुर बुक मार्क के रूप में प्रकाशन जगत की हस्तियों को आपस में विचार विनिमय का एक मंच मिला, जहां पुस्तकों के प्रकाशन अधिकार से लेकर प्रकाशन जगत की समस्याओं पर विमर्श होते हैं। कुल मिलाकर अगर हम देखें तो जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल एक ऐसे आयोजन के तौर पर स्थापित हो चुका है जहां गंभीर साहित्यिक विमर्श के अलावा वहां जानेवालों के मनोरंजन से लेकर शॉपिंग तक के अवसर उपलब्ध होते हैं।