नई दिल्ली, [डॉ. मोनिका शर्मा]। आर्थिक विकास में महिलाओं की भूमिका बढ़ी है। मगर इस बजट में जिस तरह से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल के साथ संसद सदस्यों को तरहजीह दी गई है उस लिहाज से महिलाएं पीछे छूटती हुई दिख रही हैं। आम बजट से आधी आबादी को बड़ी उम्मीदें रहती हैं, लेकिन इस बार उनके लिए कोई खास घोषणाएं नहीं हुई हैं।

हालांकि सरकार ने आठ करोड़ ग्रामीण महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन देने का प्रावधान किया है। बजट में 4 करोड़ गरीब घरों को सौभाग्य योजना से बिजली कनेक्शन देने का भी प्रावधान है। साथ ही महिलाओं की गरिमा को ध्यान में रखते हुए 2018-19 में गांवों में स्वच्छ भारत मिशन के तहत 1. 88 करोड़ नए शौचालय बनाने की बात भी की गई है। 1वर्ष 2018-19 में ग्रामीण क्षेत्रों में 51 लाख आवास बनाने की भी योजना है जिससे महिलाएं भी लाभान्वित होंगी। भारत में महिलाएं खेती किसानी से भी बड़ी संख्या में जुड़ी हुई हैं। ऐसे में बजट में प्रावधान है कि ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए महिला स्वयं सहायता समूह भी बनाए जाएंगे। साथ ही इस साल के बजट में महिला स्वयं सहायता समूह के लिए ऋण बढ़ाने की भी बात की गई है। स्वयंसेवी समूह के लिए ऋण सहायता 2019 तक बढ़ कर 75,000 करोड़ रुपये हो जाएगी।

ध्यान देने वाली बात है कि महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए ऋण 2016-17 में बढ़कर लगभग 42,000 करोड़ रुपये हो गया था। पिछले साल की तुलना में इसमें 37 फीसद का इजाफा हुआ है। व्यापार शुरू करने के लिए मुद्रा योजना के तहत 76 फीसद कर्ज लेने वाली महिलाएं ही हैं। बजट में ग्रामीण महिलाओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों ही तरह से लाभ दिए जाने की कोशिश की गई है। आज भी गांवों में महिलाएं बड़ी तादाद में खेती के साथ-साथ पशुपालन से भी जुड़ी हुई हैं। बजट में मछली व पशुपालन पर भी खास जोर दिया गया है। इसके लिए 10 हजार करोड़ रुपये का फंड बनाए जाने का प्रावधान किया गया है। 2018-19 में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के लिए आवंटन राशि बढ़ाकर 5,750 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव भी शामिल है। इसके लाभार्थियों में भी महिलाओं की संख्या ज्यादा है।

महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनका आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना आवश्यक है। बजट 2018 में सरकार ने महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ाने और कामकाजी महिलाओं के आंकड़ों में इजाफा करने के लिए भी कदम उठाए हैं। पहली बार नौकरी शुरू करने वाली महिलाओं के लिए एक बड़ी घोषणा की गई है। संगठित क्षेत्र में कामकाजी महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए सरकार भविष्य निधि अधिनियम 1952 में बदलाव करने जा रही है। इस बदलाव से उनके हाथ में आने वाले वेतन में इजाफा होगा। बढ़ी आमदनी के चलते महिलाएं अब ज्यादा बचत कर पाएंगी। इसके लिए पीएफ में नौकरी के पहले तीन साल के लिए महिला कर्मचारियों का अंशदान वर्तमान 12 या 10 फीसद से घटाकर 8 फीसद करने की बात कही गई है। जबकि नियोक्ता के अंशदान में कोई बदलाव नहीं होगा।

महिलाओं के लिए सुखद कदम यह भी है कि अब मातृत्व अवकाश 12 हफ्तों से बढाकर 26 हफ्ते कर दिया गया है। साथ ही दफ्तर में बच्चों के लिए क्रेच सुविधा दिए जाने पर भी विचार किया जाएगा। स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करते हुए 1.5 लाख मेडिकल सेंटर खोलने का एलान किया गया है। इसका भी महिलाओं को फायदा तो जरूर मिलेगा।1आज की दरकार है कि रोजगार, उच्च शिक्षा और कौशल विकास जैसे विषयों पर कुछ इस तरह से सोचा जाए कि इनमें महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जा सके। विशेषकर युवतियों की, क्योंकि हालिया सालों में बेटियों के शिक्षित होने के आंकड़े तो बढे हैं पर असुरक्षा, असमानता और दोयम दर्जे से जूझते हुए वे करियर की दौड़ में कहीं पीछे छूट जाती हैं। हर विसंगति से लड़कर शिक्षा पाने वाली आज की स्त्रियां खुद के लिए पर्याप्त रोजगार के मौके भी चाहती हैं।

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