नई दिल्ली, [अभिषेक कुमार]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में स्विट्जरलैंड के दावोस में आयोजित वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम के उद्घघाटन भाषण में एक अहम बात कही। उन्होंने कहा कि आज डाटा बहुत बड़ी संपदा है। कहा जा रहा है कि जो डाटा पर अपना काबू रखेगा, वही दुनिया में अपनी ताकत कायम रखेगा। सवाल है कि आखिर इस पर नियंत्रण पाना क्यों जरूरी हो गया है।

असल में, जो बात कंप्यूटर-इंटरनेट की दुनिया में पिछले कुछ दशकों से कही-सुनी जा रही थी, अब वह एक वास्तवकिता के रूप में सामने है। पूरी दुनिया में आज डाटा के पहाड़ बनते जा रहे हैं। उस पर नियंत्रण की होड़ लगी है। भारत में ही व्यक्तिगत पहचान सुनिश्चित करने वाले कार्ड यूआइडीएआइ यानी आधार के जरिये सरकार और कई निजी कंपनियां लोगों की सूचनाएं जमा कर रही हैं। वैश्विक स्तर पर भी गूगल, एप्पल, फेसबुक और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दर्जनों कंपनियां कई तरह से संभावित ग्राहकों का डाटा जुटा रही हैं। इन कंपनियों को ये सारी सूचनाएं यानी डाटा तब मिलता है, जब कोई व्यक्ति इनकी सेवाओं के लिए खुद को इनके पास पंजीकृत करता है। पंजीकृत करने के लिए उपभोक्ता को यूजर आइडी बनानी होती है जिसमें नाम, पता, उम्र और मोबाइल नंबर सहित तमाम जानकारियां देनी होती है।

मसलन, फेसबुक या जीमेल में अपना अकाउंट खोलते वक्त ही ऐसी कई सूचनाएं लोगों को इनके पास जमा करानी होती हैं। असल में, आज की जो हमारी दिनचर्या और जो कामकाज की स्थितियां हैं, उनमें इस किस्म का बहुत सा डाटा तो इंटरनेट और स्मार्टफोन के दिनोंदिन बढ़ते इस्तेमाल की वजह से अपने आप पैदा हो रहा है। हम चलते-फिरते वाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं, गूगल पर कोई चीज सर्च करते हैं, स्मार्ट टीवी देखते हैं या किसी वेबसाइट पर ट्रैफिक अपडेट करते, ऑनलाइन शॉपिंग, वेबसाइट से अपनी पसंद का सामान खोजते हैं तो इन सभी ऑनलाइन गतिविधियों से ढेर सा डाटा खुद ही पैदा हो जाता है।

यह भी सच है कि दुनिया में कई कंपनियां और ज्यादा डाटा (असल में सूचनाएं) पाने के लिए धन खर्च कर रही हैं और ऐसी कंपनियों का अधिग्रहण भी कर रही हैं, ताकि उन्हें एकदम सटीक आंकड़े व जानकारियां मिल सकें। जैसे चार साल पहले 2014 में जब फेसबुक ने 22 अरब डॉलर में वाट्सएप को खरीदा था तब सवाल उठा था कि आखिर इस महंगे सौदे की वजह क्या है? महज 60 कर्मचारियों वाली कंपनी के इस अधिग्रहण की असली वजह डाटा जुटाने की जंग में संभावित प्रतिद्वंद्वी के वजूद को खत्म करना था।

सवाल है कि क्या यह डाटा किसी काम का है और क्या इसके संबंध में यह दावा सही है कि जिसके पास जितना डेटा होगा, वह उतना ताकतवर होगा। इसका जवाब यह है कि आज बहुत से काम, सिर्फ इस एकत्रित डाटा के आधार पर संपन्न हो रहे हैं। इन सूचनाओं पर बैंकों को नए ग्राहक मिल रहे हैं, ऑनलाइन शॉपिंग की वेबसाइटें अपना व्यवसाय चला पा रही हैं। सरकारी योजनाएं सही लाभार्थियों तक पहुंचे और उनमें किसी तरह की दलाली और भ्रष्टाचार की आशंका खत्म हो सके तो यह भी संग्रहीत डाटा की वजह से मुमकिन हो पा रहा है। फेसबुक, गूगल का इस्तेमाल करने से लेकर ऑनलाइन खरीदारी करने और जीपीएस का इस्तेमाल करते हुए कहीं घूमने-फिरने की हमारी जरूरतों में यह सारा डाटा काम आता है।

सच्चाई यह है कि आज की तारीख में वस्तुओं, सेवाओं, जगहों से जुड़ा जितना ज्यादा डाटा इंटरनेट और इससे जुड़ी कंपनियों या खुद सरकार के पास मौजूद होगा, उनकी सूचनाएं ज्यादा सटीक व तेजी से जरूरत पड़ने पर मिल सकती हैं। इस डाटा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल आज आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और एल्गोरिद्म पर आधारित तकनीक में हो रहा है। एल्गोरिद्म से यह अंदाजा काफी सटीकता से लगाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट देखते वक्त महज विंडो शॉपिंग कर रहा है या वास्तव में कुछ खरीदना चाहता है। इसी तरह एल्गोरिद्म से वक्त रहते पता चल जाता है कि घरों में लगे वॉटर प्यूरिफायर के कैंडल बार या मेंब्रेन बदलवाने की जरूरत है।

मतलब किसी कंपनी के पास जितना अधिक और सटीक डाटा होगा, वह उसके आधार पर अपनी सेवाओं और उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार कर सकती है और इस तरह नए ग्राहक खींच सकती है। हालांकि डाटा पर नियंत्रण पाने यानी आधिपत्य हासिल करने की बड़ी कंपनियों की कोशिशों के चलते इस आशंका को भी बल मिल रहा है कि कहीं इससे वे एकाधिकार न हासिल कर लें और अपनी मनमानी न चलाने लगें। असल में, डाटा पर मालिकाना हक हासिल करने की इस जंग से कई इंटरनेट कंपनियों को बेशुमार ताकत मिल गई है, जिससे डाटा इकोनॉमी जैसी नई अवधारणा का जन्म हो रहा है।

एक खतरा इस डाटा के दुरुपयोग का भी है। जिस तरह पिछले दिनों आधार से जुड़ी सूचनाओं के लीक होने की खबरें मिलीं, उससे इस आशंका को बल मिला था कि सरकार के पास जमा कराई जाने वाली आम लोगों की जानकारियां गलत हाथों में पड़ सकती हैं और उससे बैंक जालसाजी से लेकर फर्जी पासपोर्ट तक बनाए जा सकते हैं। यह आशंका गलत नहीं है, इसीलिए सरकार ने आनन-फानन में आधार से जुड़ी सूचनाओं की लीकेज थामने वाली कई व्यवस्थाओं का एलान किया था। बहरहाल सवाल है कि सबसे ज्यादा डाटा के साथ यदि कोई कंपनी या सरकार ही ताकतवर बन गई तो क्या होगा।

हम यह उम्मीद ज्यादा तो नहीं कर सकते कि गूगल, फेसबुक, एप्पल या अमेजन जैसी कंपनी इस कसौटी पर खरी उतर पाएंगी, लेकिन सरकारों से और इस बारे में विश्व स्तर पर बनाई जाने वाली व्यवस्था से यह अपेक्षा कर सकते हैं कि वे डाटा के गलत इस्तेमाल को रोकने को लेकर कदम उठाएं। बात चाहे सरकार की हो या किसी निजी कंपनी की, यदि डाटा की ताकत हासिल करने के साथ वह जिम्मेदारी दिखाती है और अपनी इस ताकत का इस्तेमाल समाज की भलाई में करती है तो हम एक बेहतर दुनिया की उम्मीद कर सकते हैं।

(लेखक एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध हैं)

यह भी पढ़ें: बदल गई हैं सोशल मीडिया पर ये चीजें, फेसबुक से लेकर गूगल तक ने किए हैं बदलाव