नई दिल्ली, [रवि शंकर]। सरकार का 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य है। संसद में पेश 2017-18 में कहा गया है कि किसानों की आय दोगुना करने के लिए बीज से लेकर बाजार तक कई कदम उठाए गए हैं। मगर सरकार ने कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2.1 फीसद रहने का अनुमान जताया है। यह वर्ष 2016-17 की वृद्धि से 2.8 फीसद कम है। जबकि पिछली बार कृषि क्षेत्र की विकास दर 4.9 फीसद थी। में यह चिंता व्यक्त की गई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों की आय में 20-25 फीसद तक की कमी आ सकती है। इससे बचने के लिए सिंचाई बंदोबस्त दुरुस्त करने, नई तकनीकों के इस्तेमाल और बिजली, खाद सब्सिडी का समुचित इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है।

मजेदार है कि के अनुसार गांवों से पुरुषों के पलायन के कारण महिलाओं की कृषि क्षेत्र में हिस्सेदारी बढ़ रही है। मगर हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि कृषि एक ऐसा क्षेत्र है, जहां अलाभकारी मूल्यों और खेती पर आने वाली उच्च लागत तथा व्यापक फसल बीमा के अभाव ने न सिर्फ किसानों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने की ओर धकेला है, बल्कि यह बड़े पैमाने पर किसानों के शहरों की ओर पलायन का भी कारण बना है। इसमें कोई अचरज नहीं कि हाल में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 40 से ज्यादा अर्थशास्त्रियों के साथ चर्चा की तो उसमें ग्रामीण तथा कृषि क्षेत्र में जान डालने पर विशेष बल दिया गया। एक सुझाव यह है कि कृषि उत्पादकता को बढ़ाने की कोशिश करने के बजाय ग्रामीण आय बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए, जिसमें अपेक्षा के अनुरूप वृद्धि नहीं हुई है।

माना जा रहा है वित्त मंत्री अरुण जेटली एक फरवरी को पेश किए जाने वाले बजट को तैयार करते समय इनमें से कई सुझावों को शामिल कर सकते हैं। उम्मीद है कि ग्रामीण क्षेत्रों में साल भर रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित करने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम (मनरेगा) के परिव्यय में महत्वपूर्ण वृद्धि हो सकती है। दूसरा, सड़क निर्माण कार्य में तेजी लाने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत किए जाने वाले खर्च में भी बढ़ोतरी की जा सकती है। किसानों को बेहतर ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम और उज्‍जवला एलपीजी योजना का दायरा बढ़ाया जा सकता है।

साथ ही, अगले वित्त वर्ष में कृषि ऋण में पर्याप्त वृद्धि होना निश्चित है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसानों को फसल नहीं होने या कर्ज चुकाने में असक्षम होने के कारण दुश्वारियों का सामना नहीं करना पड़े। बैंकिंग प्रणाली में ऋण चुकता करने में लचीलेपन को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए। इसके अलावा फसल बीमा को ज्यादा व्यापक और आसानी से उपलब्ध होने वाला बनाना होगा। फसल बीमा योजना, जिसे इस साल 40 प्रतिशत फसल क्षेत्र को कवर करना था, वह वर्ष 2018-19 में बढ़कर 50 प्रतिशत तक होने की संभावना है, लेकिन इसके अंतर्गत कवरेज को कहीं ज्यादा तेजी से व्यापक बनाना होगा। वर्ष 2016-17 में कृषि के लिए परिव्यव 1,87,223 करोड़ रुपये था।

दरअसल, भारत में अधिकतर किसानों के पास एकमात्र संपत्ति जमीन है, उनके पास बस खेती करने का कौशल है और अगर वे इसे नहीं करेंगे तो उनमें से बहुतों के सामने भुखमरी की नौबत आ जाएगी। भारतीय अर्थव्यवस्था की तेज होती विकास दर के उलट कृषि क्षेत्र विकास के मोर्चे पर पिछड़ता गया। सरकार इस बात को बखूबी जानती है कि किसान की आय नहीं बढ़ी है। उत्पादन लागत बढ़ी है और नतीजा किसान आत्महत्याओं के रूप में सामने आया है। पिछले कुछ वर्षो से कृषि संबंधी वृद्धि दर में असमानता देखी गई है। यह 1.5 प्रतिशत से लेकर 4.9 प्रतिशत तक रही है। इस पर विचार होना चाहिए।

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