नई दिल्ली, [अनंत मित्तल]। पौने चार साल पहले केंद्र में सत्तारूढ़ हुई मोदी सरकार अपने अंतिम पूर्ण बजट में वोटरों के अरमानों का कितना मान रख पाएगी? , तेल की बढ़ती कीमतों से महंगाई तेज होने और राजकोषीय घाटा बढ़ने तथा उससे भुगतान संतुलन डगमगाने के बावजूद अगले साल अर्थव्यवस्था में तेजी की उम्मीद बंधा रहा है। सोमवार को संसद में वित्त मंत्री द्वारा पेश की मानें तो मोदी सरकार खेतीबाड़ी, नौजवान और महिला किसान के लिए कुछ ठोस उपाय कर सकती है। इसके अलावा निर्यात तथा निवेश बढ़ाने और सुधारों के जरिए अर्थव्यवस्था को स्थिर करने पर भी जोर दिख सकता है।

गौरतलब है कि अगला सवा साल चुनावों से लबरेज रहने वाला है। ताबड़तोड़ सात राज्यों सहित लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। इसके बावजूद गुरुवार को पेश होने वाले आम बजट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संतुलित बताने से साफ है कि कुछ साहसिक घोषणा भी हो सकती हैं। भले ही उनका मकसद फिलहाल बहस शुरू करना हो ताकि आम चुनाव आते-आते उन पर लोगों का रुझान जाना जा सके।

सर्वेक्षण में चालू माली साल में जीडीपी सात फीसद से भी कम यानी 6.5 से 6.75 फीसद तक ही बढ़ पाने के भारतीय रिजर्व बैंक के अंदेशे की पुष्टि हो रही है। अलबत्ता साल 2018-19 में वृद्धि दर 7.5 से 7.75 फीसद तक बढ़ सकती है। चार साल में सबसे कम वृद्धि दर की वजह सर्वेक्षण नोटबंदी और जीएसटी की अर्थव्यवस्था पर पड़ी साल भर लंबी परछाईं बता रहा है। गनीमत यह है कि साल के आखिरी चार महीनों में निर्यात, विनिर्माण और कुछ अन्य बुनियादी क्षेत्रों में तेजी की हरियाली लौटती दिख रही है। अगले साल 2018-19 में तेल की दर और 12 फीसद बढ़ने और चुनावी साल की रिवायती दरियादिली के अंदेशे के बावजूद सर्वेक्षण तेजी का अनुमान जता रहा है। सर्वेक्षण इसका आधार निजी निवेश और निर्यात तथा कृषि में तेजी लाने के उपायों को बना रहा है। इससे साफ है कि निर्यात क्षेत्र पर बजट और मेहरबान हो सकता है।

सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने में अनेक नई मदों को शामिल किया है। ऐसा जीएसटी, विज्ञान-प्रौद्योगिकी विभाग और अन्य स्नोतों से मिले आंकड़ों की बदौलत संभव हो पाया है। इनमें अर्थव्यवस्था में खेतिहर महिलाओं और विज्ञान व प्रौद्योगिकी की बढ़ती अहमियत भी शामिल है। सर्वेक्षण में खेतीबाड़ी को फिर से मुनाफे का धंधा बनाने और नए रोजगार पैदा करने की चुनौती का भी जिक्र है।

सर्वेक्षण रोजगार सृजन पर सरकार की पैनी नजर का इशारा भी कर रहा है। राजकोषीय घाटा 3.5 फीसद से भी अधिक रहने के अंदेशे के बावजूद सर्वेक्षण चुनावी साल में सामाजिक योजनाओं के लिए पैसे की कमी नहीं होने देने को आश्वस्त कर रहा है। सर्वेक्षण दस्तावेज के गुलाबी रंग से महिलाओं पर चुनावी बजट में खास ध्यान देने की उम्मीद जगी है। किसानों को पारंपरिक खेती से उबार कर उनकी वास्तवकि आय बढ़ाने के दूरगामी उपाय भी बजट जता सकता है। इसके जरिए 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की नींव डाली जा सकती है। निर्यात में कुटीर, लघु और मझोले उद्यमों की अहम भूमिका पर सर्वेक्षण में जोर से बजट में इन्हें ओर शिक्षा के क्षेत्र को बढ़ावा देने की राय बनी है।

यह पहली बार सामने आया कि निर्यात में भारत की शीर्ष एक फीसद कंपनियों की भागीदारी महज 38 फीसद है जबकि कई विकसित और मझोली अर्थव्यवस्थाओं में 90 फीसद तक बड़ी कंपनियां ही निर्यात करती हैं। इसलिए बजट में निर्यात बढ़ाने के लिए वस्त्र, रेडीमेड कपड़ों, चमड़े, हीरे-जवाहरात और गहनों के उद्यमों को बढ़ावा मिलना लाजिमी लगता है। सरकार ने पिछले साल भी इनको प्रोत्साहित करने के ठोस उपाय किए थे।1बजट में इनके उद्धार के उपायों से कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी आना तय है जिससे मांग बढ़ेगी और माल का उत्पादन फिर से तेज होगा। कृषि में मंदी का मारा किसान उबरेगा। कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर महज 2.1 फीसद रहने के अनुमान से किसानों की दुर्गति साफ है। उन्होंने प्रधानमंत्री की बात मानकर अरहर, गन्ना, सोयाबीन, मूंगफली जैसी नकदी फसलों और आलू-प्याज तक की पैदावार कर्ज लेकर बढ़ाई, मगर मुनाफा तो दूर जब उसकी लागत भी नहीं मिली तो उसने अपना हाथ खींच लिया। विकास के बावजूद रोजगार नहीं मिलने की धारणा से निपटने के उपाय भी बजट में करने होंगे।

इस बार के सर्वेक्षण में महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना की कुल निर्यात में 70 फीसद हिस्सेदारी का भी उल्लेख है। सर्वेक्षण के अनुसार अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अगुआ यह पांच राज्य अन्य राज्यों के मुकाबले इसीलिए अधिक समृद्ध भी हैं।

सर्वेक्षण में तापमान बढ़ने पर बारिश घटने से खेतीबाड़ी पर प्रतिकूल असर के बारे में कहा गया कि असिंचित क्षेत्र की फसल पर सिंचित क्षेत्र के मुकाबले दुगुना असर पड़ता है। इससे बजट में नई सिंचाई परियोजनाओं के लिए बड़ी राशि के आवंटन की उम्मीद जगी है। खेतीबाड़ी में मशीनों बढ़ते प्रयोग के सर्वेक्षण में जिक्र ने ट्रैक्टर आदि कृषि उपकरण सस्ते करने के उपाय बजट में नमूदार होने का कयास लगा है।

कृषि क्षेत्र में देश की आधी से अधिक आबादी को रोजगार मिलने की धारणा पर में आंकड़ों की मदद से सवाल किया गया है। सर्वेक्षण के अनुसार गैर कृषि संगठित क्षेत्र में रोजगाररत लोगों की संख्या पिछले अनुमान से कहीं ज्यादा है। जीएसटी और ईपीएफ तथा एनपीएस के आंकड़ों के अनुसार कुल रोजगाररत लोगों में से करीब 31 फीसद संगठित क्षेत्र में हैं। संगठित क्षेत्र में 7.5 करोड़ लोगों को रोजगार मिलने सहित यह अनुमान कुल 53 फीसद पर पहुंच रहा है। इससे संगठित क्षेत्र में कुल 12.7 करोड़ कामगारों का अनुमान लगता है। अभी तक कृषि क्षेत्र में कुल 58.2 फीसद लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान था, लेकिन अब यह आंकड़ा विश्व बैंक द्वारा साल 2050 तक कृषि क्षेत्र में रोजगाररत लोगों की संख्या घटकर 25.7 फीसद रह जाने के अनुमान से पहले ही बदलता लग रहा है।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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