प्रशांत मिश्र। अरसे बाद इसकी आस जगी है कि विकास की बयार हमेशा शहरों से ही गांवों की ओर नहीं बहेगी, बल्कि गांवों के देश भारत में ग्रामीण स्वच्छंद होकर विकास भी करेंगे और सिर उठाकर जीएंगे। आम बजट ने इसकी झलक दिखा दी है। इसमें शक नहीं है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले के इस बजट को ‘चुनावीनोमिक्स’ करार दिया जाएगा, लेकिन यह तय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली की सोच और कवायद जमीन पर उतरी तो न्यू इंडिया बहुत दूर नहीं है। वह न्यू इंडिया जिसमें गांव शहरों के मुकाबले खड़े होंगे, पलायन बीते दिनों की बात होगी और किसानों की आत्महत्या जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के अभिशाप से शायद देश मुक्त होगा।

लंबे अरसे से अटकल लगाई जा रही थी कि अपनी सरकार के आखिरी पूर्ण बजट में मोदी क्या करेंगे? बजट को राजनीति से पूरी तरह अलग नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यह बजट भी 2019 पर केंद्रित माना जाएगा, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि बारह साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए और फिर चार साल बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वही किया जो उनकी सोच में फिट बैठा। उनकी खुद की पृष्ठभूमि और सोच तथा प्रशासन की प्राथमिकता में निचला तबका सबसे ऊपर रहा है। गांव की सोच तो उनके पहले साल में दिख गई थी। आदर्श ग्राम की परिकल्पना की गई थी। अफसोस कि खुद भाजपा के सांसद भी उसे परवान चढ़ाने के लिए जरूरी संकल्प नहीं दिखा पाए। विपक्षी सांसदों से अपेक्षा करना उचित भी नहीं है। शायद यही कारण है कि इस सरकार के आखिरी बजट में उन्होंने अपने तई जिम्मेदारी उठा ली।

स्वच्छता, आवास, खेती के लिए जरूरी संसाधन और उपज की सही कीमत के साथ-साथ स्वास्थ्य का बीड़ा उठा लिया है। ये ऐतिहासिक फैसले हैं और बहुआयामी भी। दरअसल, भारत की गरीबी के पीछे सबसे बड़ा कारण ही स्वास्थ्य है। इलाज में होने वाला खर्च ही कभी बीपीएल को गरीबी रेखा से ऊपर नहीं उठने देता है। कइयों की तो जमीनें बिक जाती हैं। अब ऐसा नहीं होगा। आयुष्मान भव जैसी विशाल स्वास्थ्य योजना सिर्फ खजाने की मजबूती के दम पर नहीं शुरू की जा सकती थी। अगर अर्थव्यवस्था की सुस्ती के बावजूद सरकार ने इसका फैसला किया है तो पीठ थपथपाना लाजिमी है। उनका जीवन अब आसान होगा।

किसानों को अन्नदाता भले ही कहा जाता हो, पिछले कुछ दशकों में उनकी स्थिति सबसे नाजुक रही है। इतिहास गवाह है कि मनमोहन सिंह सरकार ने 72 हजार करोड़ की कृषि ऋण माफी की घोषणा की थी, लगभग 52 हजार करोड़ रुपये की माफी का दावा भी किया गया, लेकिन हुआ क्या..? वह न तो जरूरतमंद तक पहुंच सका और न ही आत्महत्या को रोक सका। मोदी ने यह साफ कर दिया कि ऋण माफी जैसे राजनीतिक फैसलों से खेती मजबूत नहीं हो सकती है।

सरकार ने सार्थक कदम उठाए हैं, जिससे घाटे का सौदा बनी किसानी देश निर्माण में भूमिका निभा सके। उन्हें कीमत की गारंटी मिली है। सिर पर पक्की छत हो, बिजली हो, खाने को अनाज हो, पास के शहर तक जाने के लिए सड़क मिले और इलाज के लिए पांच लाख रुपये की गारंटी हो तो सिर ऊंचा कर चलना आसान ही नहीं आदत भी हो जाती है। अभी घोषणाएं हुई हैं, अब तेज कदम भी बढ़ेंगे।