नई दिल्ली, [सुशील कुमार सिंह]। भारत समय के साथ-साथ दुनिया के तमाम देशों से अपने रिश्तों को मजबूत करता रहा है। इसी क्रम में भारत-इजराइल संबंध भी इन दिनों गाढ़े होते देखे जा सकते हैं। 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत की 6 दिवसीय यात्र शुरू की जो कई उम्मीदों की भरपाई करने से युक्त दिखाई देती है। जिस तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इजरायल यात्र के दौरान नेतन्याहू ने उनका स्वागत किया था उसी अंदाज को अपनाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें गले लगाया। भारत और इजरायल जैसे करीब आए हैं उससे न केवल हमारी सैन्य ताकत और कूटनीतिक शक्ति में इजाफा होगा बल्कि भारत की पश्चिम की ओर देखो नीति भी तुलनात्मक रूप से और पुख्ता होगी।

इजरायल के साथ बढ़े रिश्ते पाकिस्तान पर न केवल अंकुश लगाने बल्कि चीन के साथ कूटनीतिक संतुलन हासिल करने में मदद कर सकते हैं। साइबर सुरक्षा, रक्षा और निवेश व स्टार्टअप समेत पेट्रोलियम, मेडिकल और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को लेकर जो समझौते हुए हैं उससे भी भारत की फिलहाल ताकत का बढ़ना लाजमी है। इजरायल क्षेत्रफल और जनसंख्या दोनों लिहाज से निहायत छोटा है। मात्र 84 लाख की जनसंख्या रखने वाला इजरायल तकनीकी दृष्टि से कहीं आगे है जिसकी दरकार भारत को है। कृषि क्षेत्र हो या उद्योग या फिर सौर ऊर्जा ही क्यों न हो काफी कुछ तकनीक इजरायल से प्राप्त किया जा सकता है।

नेतन्याहू का यह कहना कि मजबूत राष्ट्र के लिए सैन्य ताकत जरूरी है। साफ है कि मात्र संपदा से काम नहीं चलता बल्कि उसको ताकत बना लेने से दुनिया आपको स्वीकार करती है। भारत युवाओं का देश है पर यहां बेरोजगारी बेलगाम है। तकनीक और बेहतर विकास के चलते इससे निपटने में मदद मिल सकती है। युवा देश की संपदा हैं, लेकिन इनका सही उपयोग व खपत उचित तकनीक व कौशल से ही संभव है। देश में किसानों के हालात अच्छे नहीं हैं।

इजरायल बीज से लेकर अधिक पैदावार के मामले में फायदेमंद हो सकता है। भारत और इजरायल दोनों देश उपनिवेशवाद के परवर्ती युग की उपज हैं। भारत 1947 में जबकि इजराइल 1949 में अपना स्वतंत्र अस्तित्व प्राप्त कर सका। खास यह भी है कि अनेक समस्याओं के बावजूद भी दोनों जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति समर्पित रहे। मोदी का इजराइल दौरा चीन और पाकिस्तान दोनों को बहुत खटका था।

हालांकि डोकलाम समस्या समय के साथ कूटनीतिक तरीके से हल प्राप्त कर लिया पर पश्चिम के देशों में इजरायल से प्रगाढ़ होती दोस्ती और पूरब में नैसर्गिक मित्र बनते जापान को लेकर चीन की छटपटा अभी भी कम नहीं हुई होगी। दो टूक यह भी है कि इजरायल और अमेरिका का संबंध कहीं अधिक सकारात्मक है। ऐसे में इजरायल से भारत की मित्रता कइयों को खटकना संभव है बावजूद इसके भारत की मूल चिंताओं में एक यह भी है कि रूस जैसे नैसर्गिक मित्र से फासले न बढ़ने पाए क्योंकि जब-जब हम अमेरिका के अधिक करीब आए हैं तब-तब इसकी गुंजाइश बनी है क्योंकि अमेरिका और रूस एक-दूसरे के अक्सर खिलाफ रहे हैं।

देखा जाए तो इजरायल भी भारत से दोस्ती करके कहीं न कहीं कूटनीतिक संतुलन साध कर दुनिया में अलग-थलग नहीं है, को लेकर अपनी साख बनाने में फिलहाल कामयाब हुआ है। भारत और इजरायल की दोस्ती विश्व राजनीति को काफी प्रभावित कर सकती है। इजरायल का चीन के साथ भी बेहतर रिश्ता है। दोनों के बीच द्विपक्षीय कारोबार भी होता है, लेकिन चीन का दखल जिस तरीके से बेवजह इन दिनों बढ़ा हुआ है उसे देखते हुए शायद भविष्य में वैसी बात दोनों के बीच न रहे।

(लेखक वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक हैं)

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