लल्लन प्रसाद। कृषि केंद्रित केंद्रीय बजट नौजवान बेरोजगारों, छोटे उद्यमियों, कारोबारियों और सामान्य आयकरदाताओं के लिए बहुत अच्छी खबरें नहीं लाया, जिसका बेसब्री इंतजार था। वरिष्ठ नागरिकों पर सरकार कुछ मेहरबान जरूर हुई है। बजट में दो महत्वकांक्षी योजनाओं की घोषणा की गई है, जिनका सफल संचालन आबादी के बड़े हिस्से के लिए फायदेमंद हो सकता है। किसानों को फसल की लागत की डेढ़ गुना कीमत एवं आयुष्मान भारत योजना। पहली बार औद्योगिक क्लस्टर की तर्ज पर कृषि उत्पाद क्लस्टर की बात की गई है।

किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मछली और पशुपालन एवं खाद्य प्रसंस्करण, लघु उद्योगों के लिए बजट में व्यवस्था की गई है। मजेदार बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि यह किसानों, गरीबों और वंचितों का बजट है तो उन्हें याद दिलाना होगा कि उन्होंने पिछले बजट को ‘सबके सपनों का बजट’ बताया था। उनकी यह टिप्पणी इस अर्थ में उनके वित्तमंत्री की कड़ी आलोचना है कि वे इस बार सबके सपनों वाला बजट नहीं ला पाए। तभी तो प्रधानमंत्री के अपनों में शुमार पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा उनकी सरकार पर किसानों को भीख मांगने की हालत में भी न छोड़ने का आरोप लगा रहे हैं।

बहरहाल हवाई यात्रा हवाई चप्पल पहनने वालों को सुलभ कराने की बात फिर दोहरायी गई है। स्वरोजगार को बढ़ावा देने की खातिर मुद्रा बैंक के लिए अधिक धनराशि आवंटित की गई है। हर जिले में कौशल विकास केंद्र खोला जाएगा। किन्तु रिक्त सरकारी पदों को कई राज्यों में समाप्त कर देने की आशंका से निराशा हुई है। सत्तर लाख लोगों को रोजगार का वादा पूरा होता नहीं दिखता।

आयकर की दरों में कमी न करने की घोषणा से कर्मचारियों एवं छोटे कारोबारियों को निराशा हुई है। स्टैंडर्ड डिडक्शन फिर वापस ला दिया गया है, लेकिन कई कर मुक्त सुविधाओं के समाप्त होने से इससे अपेक्षित लाभ कम हो जाएगा। ब्याज की आमदनी की कर मुक्त सीमा दस हजार से बढ़ाकर पचास हजार रुपये कर दी गई है, जो स्वागत योग्य है। सीमा शुल्क बढ़ने से मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स सामान महंगे हो जाएंगे।

वित्तीय घाटा कम करने का लक्ष्य कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और आयात बिल बढ़ने की आशंका से प्रभावित हो सकता है। लघु और छोटे उद्योग नोटबंदी एवं जीएसटी से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। उनके लिए बजट में कुछ खास नहीं है। मझोली कंपनियों को आयकर में पांच प्रतिशत की छूट मिली है। उद्योग जगत में बजट से निराशा हुई है, जो शेयर बाजार में गिरावट मे परिलक्षित होती है।

सवाल है कि क्यों वित्त मंत्री अरुण जेटली अनेक पापड़ बेलकर भी नोटबंदी और जीएसटी जैसे प्रधानमंत्री के महत्वाकांक्षी कदमों के लाभों की सूची भी कर दायरे में बढ़ोतरी से आगे नहीं ले जा पा रहे? फिर इस बजट का उन ग्रामीणों और गरीबों के लिए क्या संदेश है, जो कर निर्धारण योग्य आय तक पहुंचने के लिए हड्डियां तोड़-तोड़कर विफल हुए जा रहे हैं? क्यों सरकार उनकी संख्या तक को विवादास्पद बना दे रही और मनरेगा तक को लेकर अन्यमनस्क है?

क्यों वित्त मंत्री अपना एक भी ऐसा बजट प्रावधान नहीं बता सकते, जो उस कालेधन के स्रोत पर प्रहार करता हो, चार साल पहले उनकी सरकार जिसके उन्मूलन की रट लगाती हुई सत्तासीन हुई थी। कालाधन जिस अर्थव्यवस्था का उत्पाद है, उसे बनाए रखते हुए वे डिजिटल लेनदेन जैसे टोटकों से उसका बाल भी बांका कैसे कर सकेंगे? नहीं कर पाएंगे तो यह वायदा खिलाफी होगी और उससे फैली निराशा का अंजाम वही होगा, जिसका संकेत राजस्थान और पश्चिम बंगाल के उपचुनावों में देखने को मिला है।

(लेखक डीयू में डिपार्टमेंट ऑफ बिजनेस इकॉनोमिक्स के पूर्व प्रमुख हैं)