[ प्रमोद तिवारी ]: भारत की आजादी का इतिहास हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के अप्रतिम योगदान और बलिदान के साथ निडर पत्रकारिता की गौरवशाली गाथा से भरा पड़ा है। आजादी के आंदोलन के दौरान दैनिक जागरण ऐसे ही एक प्रखर समाचार पत्र के रूप में अपनी शानदार भूमिका में रहा। आजादी के बाद भी जब भारत अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहा था तो दैनिक जागरण ने पत्रकारिता के अपने सकारात्मक दृष्टिकोण के जरिये इसमें प्रशंसनीय भूमिका निभाई। खासतौर पर जाति-धर्म में बंटे भारत को अपने लेखों और संपादकीय के सहारे एकता के सूत्र में बांधने का भरपूर प्रयास किया। मसला चाहे पिछली सदी के छठे-सातवें दशक में गरीबी और सामाजिक चुनौतियों से उबारने का हो या राष्ट्रीय एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने का सवाल, जागरण ने जागरूकता की अलख जगाने के प्रयासों में कसर नहीं छोड़ी। देश को जब भी ऐसी जरूरत पड़ी, अखबार ने सशक्त जन जागरण से मुंह नहीं मोड़ा।

स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त ही नहीं, आजादी के बाद भी गांधीवादी विचार और आदर्श ही देश के स्वर और सुर थे। उस दौर में दैनिक जागरण भी गांधी, नेहरू और शास्त्री के विचारों और आदर्शों को अपनी लेखनी से मजबूती देता रहा। समाचार-पत्र के रूप में राष्ट्र निर्माण के प्रति इसकी भूमिका और प्रतिबद्धता की यह मुखरता ही थी कि उस समय इसे गांधीवादी विचारों से ओत-प्रोत अखबार माना जाता था। इस अखबार की गांधीवादी सोच को और दृढ़ता कानपुर से इसके प्रकाशन ने दी। खुद लाल बहादुर शास्त्री जी का कानपुर आकर दैनिक जागरण के प्रकाशन की शुरुआत करना इसका प्रमाण रहा। यह वह दौर था जब देश में महात्मा गांधी के साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री की विचारधारा और उच्च नैतिक आदर्श भारत की करोड़ों जनता को भविष्य की राह दिखा रहे थे। कांग्रेस की गांधीवादी विचाराधारा पूरे देश में जन-जन की आवाज थी और दैनिक जागरण देश के इस वैचारिक सुर का एक प्रखर संवाहक।

दैनिक जागरण के संस्थापक पूर्ण चंद्र गुप्त जी से वैसे तो च्याादा संपर्क नहीं रहा मगर उनकी गांधीवादी विचारों के प्रति निष्ठा की झलक अखबार में हमेशा दिखाई देती रहती थी। वे आर्य समाजी होने के साथ-साथ प्रखर गांधीवादी थे। खादी की धोती और कुर्ते के साथ सिर पर हमेशा गांधी टोपी पूर्णचंद जी की गांधीवादी विचारों के साथ हमारे संविधान की मूल आत्मा को संरक्षित रखने की उनकी दृढ़ता का प्रतीक थी। उनके नेतृत्व में दैनिक जागरण की संपादकीय रीति-नीति की बुनियाद भी गांधीवादी विचारधारा ही थी। मैं समझता हूं कि इस मजबूत बुनियाद ने ही समाचार-पत्र के रूप में दैनिक जागरण को वह आधार दिया जिस पर चलते हुए वह आज शिखर तक पहुंचा है। भारत की धर्मनिरपेक्ष साझी संस्कृति के साथ संविधान और लोकतंत्र के प्रति गहरी निष्ठा ही संस्थाओं और विचारों को विशिष्ट बनाती हैं। नि:संदेह पूर्णचंद्र जी ने जीवनपर्यंत भारत के संवैधानिक लोकतांत्रिक गणतंत्र की मूल आत्मा और गांधीवादी मूल्यों के प्रति समर्पण को अपनी पत्रकारिता की पूंजी बनाए रखी।

अखबार के तौर पर दैनिक जागरण के इस लंबे सफर के तमाम अहम पड़ावों का बीते कई दशकों से केवल पाठक के तौर पर ही नहीं व्यक्तिगत रुप से भी मैं साक्षी रहा हूं। खासकर नरेन्द्र मोहन जी के नेतृत्व में अखबार के चौतरफा विस्तार और प्रसार को तो करीब से देखा है। नरेन्द्र मोहन जी से मेरा पुराना संपर्क और संवाद था मगर 1980 में जब मैं उत्तर प्रदेश सरकार में सूचना मंत्री बना तो यह संबंध और घनिष्ठ होता चला गया। उस समय पंजाब में खालिस्तान के नाम पर हिंसक आंदोलन चल रहा था। हिंसा की उग्रता देश के लिए बड़ी चिंता का विषय था और नागरिक के रूप में इसको लेकर मेरी भी अपनी चिंता थी। इसीलिए नरेन्द्र मोहन जी से खालिस्तान के नाम पर हिंसा की भयावहता और उसके दुष्परिणामों पर चर्चा करने मैं उनसे मिलने कानपुर गया। लंबी चर्चा के दौरान इस हिंसा को लेकर मैंने आग्रहपूर्वक अपनी चिंताए उनके समक्ष रखी। उन्होंने मुझसे कहा कि देश की एकता और अखंडता के लिए जागरण समूह और व्यक्तिगत रूप से उनसे भी जो बन सकेगा, वह करेंगे।

मुझे आज यह कहने में गर्व महसूस हो रहा है कि नरेन्द्र भाई ने जितना कहा था उससे कहीं आगे बढ़कर राष्ट्रीय एकता के लिए कलम चलाई। देश को आतंकवाद से पैदा होने वाली भयावहता से अवगत कराया। वे लगभग एक साल इस प्रयास में लगे रहे, जब तक कि आतंकवाद के बादल कमजोर पड़कर छंटने नहीं लगे। मैं उनके साथ इस दौरान निरंतर संवाद कर रहा था।

देश की चुनौतियों के साथ राष्ट्र निर्माण में समाचार पत्र की भूमिका और निष्पक्षता को लेकर नरेन्द्र मोहन जी का दृष्टिकोण बिल्कुल साफ था। मुझे आज भी उनका वो श्रद्धांजलि लेख याद है जो उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी की शहादत पर लिखा था। इंदिराजी के बलिदान को कलम के सिपाही ने जो सलाम दिया वह पत्रकारिता की वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियों के लिए नजीर होनी चाहिए। मेरा स्पष्ट मानना है कि अखबार का मूल दायित्व देश के संवैधानिक ढांचे की आत्मा को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए कलम चलाने के साथ जनता के हित को सर्वोपरि रखना है। नरेन्द्र मोहन जी ने पत्रकारिता के इस मूल तत्व और लक्ष्मणरेखा का सदैव पालन किया।

मुझे आज भी वह दौर याद है जब तमाम दबाव और प्रलोभन नरेन्द्र मोहन जी की पत्रकारिता के सफर में आए। मगर बड़ी कुशलता और दृढ़ता से उन्होंंने ऐसी चुनौतियों का सामना किया। एक दिन कानपुर से नरेन्द्र भाई बहुत

परेशान होकर लखनऊ आए तो उनकी मनोदशा भांप मैंने उनसे पहले चाय-नाश्ते का आग्रह किया मगर उन्होंने

केवल आधा प्याला दूध लिया। अमूमन वे आधा प्याला दूध के अलावा कुछ नहीं लेते थे। फिर बातचीत शुरू हुई तो मुझे कुछ हालात बताए और मैं देख रहा था जो हालात थे उसमें कोई भी परेशान हो सकता था। मगर उस स्थिति में भी वे दृढ़प्रतिज्ञ थे।

नरेन्द्र भाई ने मुझसे साफ कहा कि वे अपने पत्रकारिता मिशन और संवैधानिक मूल्यों के प्रति गहरी निष्ठा से कोई समझौता नहीं करेंगे और वाकई आने वाले दिनों में उनकी यह दृढ़ता मुझे अखबार में दिखाई पड़ी। किसी भी व्यापार में प्रतिद्वंद्विता तो होती है, पर मुझे प्रसन्नता है कि इस दौर में भी दैनिक जागरण ने नरेन्द्र भाई के बताए रास्ते पर चलते हळ्ए स्वस्थ, स्वतंत्र और निर्भीक पत्रकारिता का दामन नहीं छोड़ा।

लोकतंत्र में समाचार पत्र की निष्पक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति निष्ठा ही उसे विश्वसनीय बनाते हैं। यह विश्वसनीयता ही अखबार की सर्वोच्च पूंजी होती है। ऐसे में यह जागरण की विश्वसनीयता ही है कि आज यह सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला और सर्वाधिक प्रसारित अखबार है।

किसी भी समाचार-पत्र के लिए इस मुकाम पर पहुंचना कोई एक दिन की घटना नहीं हो सकती। नि:संदेह यह वर्षों के सतत परिश्रम और उच्च बौद्धिक प्रयासों का परिणाम है। इसमें अखबार के संपादकीय नेतृत्व के साथ-साथ संवाददाताओं और संपादक मंडल के योगदानों की अनदेखी नहीं की जा सकती। यही वजह है कि दैनिक जागरण सिर्फ नंबर वन अखबार बना ही नहीं बल्कि लंबे अर्से से इस शिखर पर टिका हुआ है।

मुझे विश्वास है कि गणेश शंकर विद्यार्थी के मुख्यालय का यह अखबार उनके दिखाए रास्ते पर चलते हुए संविधान और देश के लोकतंत्र को मजबूती देते हुए समाज का प्रतिबिंब बना रहेगा। खासकर ऐसे समय में जब देश के संविधान और गांधीवादी विचारों की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए जा रहे हों। मेरा विश्वास है कि अखबार का मौजूदा संपादकीय नेतृत्व और संपादक मंडल गांधीवादी मूल्यों और संविधान की हमारी मूल आत्मा को सहेज कर आगे बढ़ने की अपनी उस बुनियाद की राह पर ही आगे बढ़ेगा, जहां से दैनिक जागरण ने अपने पत्रकारिता की विकास यात्रा की शुरुआत की थी।

आज जब दैनिक जागरण अपनी 75वीं सालगिरह वर्ष मना रहा है तो मैं समाचार-पत्र के रूप में इसके सुखद भविष्य की कामना करता हूं। मेरी यह कामना भी है कि जब यह अपना शताब्दी वर्ष मनाए तो जागरण समूह की तरक्की के साथ दैनिक जागरण देश के जन-जन का अखबार बन जाए।

[ लेखक वरिष्ठ कांग्रेस नेता हैं ]