प्रदीप शुक्ला। आदिवासी परिवार की एक बच्ची को गोभी का सूखा पत्ता उबालकर भात के साथ खाने की तस्वीर को अपने ट्विटर पर देख भड़के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने स्वीकार किया कि यह हमारे और प्रशासन के लिए शर्म की बात है। ऐसा नहीं है कि यह बच्ची पहली बार इस तरह पेट भर रही है। दुमका जिले के जरमुंडी प्रखंड के भोड़ावाद पंचायत के समलापुर गांव में अपनी नानी के साथ रहने वाली यह बच्ची अक्सर ऐसे ही पेट भरती है। वही क्यों, उसकी नानी-मां भी ऐसे ही जी रही हैं, क्योंकि इस परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है और एक साल से इन्हें राशन नहीं मिला है। यह परिवार गोभी के पत्ते सुखाकर रखता है और इसे उबालकर नमक के साथ भात में मिलाकर खाता है। राज्य के कई इलाकों से ऐसी खबरें लगातार आती रहती हैं और प्रशासन हर बार इसे झूठा साबित करने में मुस्तैदी से जुट जाता है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद इसका संज्ञान ले लिया तो जिला प्रशासन भी सक्रिय हो गया। नई सरकार के गठन के बाद से ही मुख्यमंत्री ट्विटर पर शिकायत का संज्ञान ले रहे हैं।

विपक्ष बेशक इस पर सवाल भी उठा रहा है, लेकिन राज्य के अफसरों में यह संदेश तो जा रहा है कि अगर कोई भी अपनी समस्या को मुख्यमंत्री के ट्विटर हैंडल पर टैग करता है तो कार्रवाई निश्चित होगी। इसलिए कई बार खबरें छपते ही अफसर खुद ही तत्परता से कार्रवाई में जुट जा रहे हैं। लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है। नौकरशाही को आम जनमानस के प्रति जितना संवेदनशील होना चाहिए, वह भाव उनमें नदारद है। यह समस्या कोई एक-दो माह या वर्ष में खड़ी नहीं हुई है और न ही इसका तत्काल निराकरण हो सकता है, लेकिन इतना तय है कि अगर मुख्यमंत्री इसी तरह दिशा-निर्देश के साथ जिम्मेदार अफसरों पर कड़ी कार्रवाई भी करेंगे तो संभव है व्यवस्था में बदलाव आ सके।

इससे भी बड़ा सवाल है कि ऐसी स्थितियां पैदा ही क्यों हो रही हैं? राज्य गठन के बीस वर्ष बाद भी आदिवासियों के जीवन में उतना बड़ा बदलाव क्यों नहीं आ पाया जिसकी राज्य गठन के समय उम्मीद की गई थी? हेमंत सोरेन की पार्टी को आदिवासियों का जबरदस्त समर्थन है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है, वह आदिवासियों की ताकत के बूते ही मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले भी वह और उनके पिता शिबू सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन आदिवासियों के चेहरों पर असली मुस्कान आना अभी बाकी हैं।

हेमंत सरकार जल, जंगल, जमीन की लगातार बात करती है। ये तीनों विषय आदिवासी अस्मिता से जुड़े हैं और उनकी तमाम समस्याओं के समाधान भी यहीं से निकलते हैं फिर भी सरकार को अब इससे आगे की सोचना चाहिए। राज्य में कोई भूखा न सोए यह सरकार की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए। अगले सप्ताह हेमंत सोरेन सरकार अपना पहला बजट लेकर आएगी। उम्मीद की जानी चाहिए, आदिवासियों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए सरकार कुछ बड़ी योजनाओं की घोषणा करेगी।

जनसंख्या नियंत्रण पर कानून की जरूरत : संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के पांच दिवसीय झारखंड प्रवास के दौरान दो बड़े मसलों पर देश के समक्ष संघ की राय स्पष्ट तौर पर सामने आई। पिछले काफी समय से राष्ट्रवाद शब्द को लेकर संघ में ही कई स्तर पर मंथन छिड़ा था कि इस शब्द का प्रयोग होना चाहिए अथवा नहीं? संघ के सह सर कार्यवाह मनमोहन वैद्य कई बार इस शब्द का विरोध कर चुके हैं। संघ प्रमुख ने यहां राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता के फर्क को समझाते हुए स्पष्ट किया कि हम सभी को राष्ट्रवाद शब्द से परहेज करना चाहिए।

उन्होंने अपनी एक विदेश यात्र का वृतांत बताते हुए कहा कि वहां लोगों ने उनसे राष्ट्रवाद शब्द के प्रयोग से बचने की सलाह दी थी क्योंकि उन्हें लगता था इससे फासीवाद की बू आती है।

उन्होंने कहा कि ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं जब कोई राष्ट्र बड़ा हुआ है तो दुनिया को नुकसान हुआ है, साथ ही स्पष्ट किया कि भारत के साथ ऐसा नहीं है। भारत जब-जब बड़ा हुआ है तो पूरी दुनिया को उसका फायदा मिला है। उन्होंने कहा, राष्ट्रवाद शब्द समाज के लिए ठीक नहीं है। यह शब्द सीमित करता है। वहीं राष्ट्रीयता शब्द विस्तार देता है। वाद शब्द हमेशा स्वार्थ के लिए होता है। स्वार्थ की पूर्ति होते ही उससे मोह भंग हो सकता है, जबकि राष्ट्रीयता से आत्मिक जुड़ाव होता है। दरअसल संघ चाहता है कि राष्ट्रवाद पर लोगों के बीच चर्चा हो। इस शब्द का प्रयोग किया जाए अथवा नहीं, राज्य भाजपा में विचार-विमर्श शुरू हो चुका है।

जनसंख्या नियंत्रण को लेकर भी संघ प्रमुख ने अपनी राय रखी। उन्होंने इस कानून की वकालत की, लेकिन यह भी जोड़ा कि कानून ऐसा बने जिससे देश को नुकसान नहीं हो। देश की जनसंख्या में संतुलन होना चाहिए, ताकि सबका भरण पोषण हो सके। समय-समय पर संघ के लोग जनसंख्या नियंत्रण कानून की वकालत करते रहे हैं। संघ चाहता है कि सरकार इस विषय पर लोगों के बीच सर्वसम्मति बनाए और कानून बनाए।

(स्थानीय संपादक, झारखंड) 

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