प्रदीप। Hubble Space Telescope महान खगोल विज्ञानी गैलीलियो ने जब दूरबीन के आविष्कार के पश्चात उसका पुननिर्माण किया और पहली बार खगोलीय अवलोकन में उपयोग किया था, तब से लगभग चार शताब्दियां बीत चुकी हैं। दूरबीनों ने खगोल विज्ञान में कई आकर्षक और पेचीदा खोजों को जन्म दिया है।

इनमें हमारे सूर्य से परे अन्य तारों की परिक्रमा कर रहे ग्रहों की खोज, ब्रह्मांड के विस्तार की गति में तेजी के सबूत, डार्क मैटर और डार्क एनर्जी का अस्तित्व, हम पृथ्वीवासियों के लिए खतरा बन सकते क्षुद्र ग्रहों और धूमकेतुओं वगैरह की खोज शामिल है। और इन चार सौ से ज्यादा वर्षो में बहुत से विशालकाय दूरबीनों का निर्माण पृथ्वी पर किया जा चुका है तथा कुछ दूरबीन को अंतरिक्ष में भी स्थापित किया जा चुका है। इन्हीं दूरबीनों में से एक है हब्बल स्पेस टेलीस्कोप। यह टेलीस्कोप खगोलशास्त्र के क्षेत्र में क्रांतिकारी सिद्ध हुआ है। इसकी महानतम उपलब्धियों ने इसे खगोलशास्त्र के इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण दूरबीन बना दिया है।

तकनीकी बदलाव के साथ नई नई चुनौतियां सामने आने के दौर में इन टेलिस्कोप में भी व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता लंबे अरसे से महसूस की जा रही है। लेकिन अधिक लागत के साथ पर्याप्त तकनीक के अभाव में इस दिशा में बहुत अधिक काम नहीं हो सकता है, लेकिन अब इस मामले में उम्मीद जगी है। इसके नए संस्करण को तैयार करने में विज्ञानियों को कामयाबी हाथ लगी है और आशा की जा रही है कि इसे अगले वर्ष तक अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है।

हब्बल स्पेस टेलीस्कोप को 25 अप्रैल 1990 को अमेरिकी स्पेस शटल डिस्कवरी की सहायता से इसकी कक्षा में स्थापित किया गया। इस अंतरिक्ष आधारित दूरबीन को खगोलशास्त्री एडविन पावेल हब्बल के सम्मान में हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन नाम दिया गया। यह टेलीस्कोप अभी 600 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी की कक्षा का चक्कर काट रही है। पृथ्वी की कक्षा का एक चक्कर लगाने में इसे 100 मिनट लगते हैं। अब इसकी जगह लेने को तैयार है लंबे समय से प्रतीक्षित इसका उत्तराधिकारी बेहद शक्तिशाली जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (जेडबल्यूएसटी) की लॉन्चिंग में बजटीय कारणों और तकनीकी चुनौतियों के कारण कई बार देरी हो चुकी है।

यही कारण है कि वर्ष 2009 में इस परियोजना में अनुमानित लागत को तकरीबन दोगुना कर दिया। नासा ने यह घोषणा की है कि यह अगली बड़ी अंतरिक्ष वेधशाला है जिसके सभी कलपुर्जे जोड़े या असेंबल किए जा चुके हैं। 9.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से तैयार जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप अगले वर्ष लॉन्च होगा। अगर सबकुछ ठीक रहा तो यह अंतरिक्ष में भेजा जाने वाला अब तक का सबसे बड़ा टेलीस्कोप बन जाएगा। यह स्पेस टेलीस्कोप अमेरिका की नासा, यूरोप की ईएसए और कनाडा की सीएसए अंतरिक्ष एजेंसियों का संयुक्त प्रयास है।

जेम्स वेब टेलीस्कोप इंजीनियरिंग के क्षेत्र में किसी चमत्कार से कम नहीं होगा, क्योंकि यह साढ़े छह मीटर मुख्य दर्पण से बना एक बड़ा इंफ्रारेड टेलीस्कोप होगा, जिसमें 22 मीटर लंबाई वाले सनशील्ड और साढ़े छह मीटर चौड़ाई के दर्पण आपस में जुड़े होंगे। कैमरे के लेंस के भीतर इंफ्रारेड किरणों के प्रवेश करने से बचाने के लिए इस पर सनशील्ड लगाया गया है। यह कवच तापमान को स्थिर रखने में मदद करेगा। यह 298 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी इसे सुरक्षित रख सकता है।

इस टेलीस्कोप के दर्पण को 18 भागों में इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसे फोल्ड किया जा सकता है और प्रक्षेपण के बाद खोला जा सकता है। यह टेलीस्कोप ब्रह्मांड की विभिन्न वस्तुओं की इंफ्रा रेड प्रकाश में भी जांच करने में सक्षम होगा। अंतरिक्ष का ज्यादातर हिस्सा गैस और धूल के विशाल बादलों से भरा है जिसके पार देखने की क्षमता ऑप्टिकल टेलीस्कोपों में नहीं है। मगर इंफ्रा रेड प्रकाश गैस और धूल के बादलों की बड़ी से बड़ी दीवारों को भेद सकने में सक्षम होता है।

यह अमेरिकी इतिहास का सबसे बड़ा स्पेस साइंस प्रोजेक्ट है जिसमें समय के साथ कई एडवांस टेक्नोलॉजी को जोड़ा गया है। इस पर नासा के अलावा यूरोपियन एजेंसी और 16 अन्य देश भी काम कर रहे हैं। इस टेलीस्कोप को ब्रह्मांड के कुछ बड़े रहस्यों को सुलझाने के उद्देश्य से निर्मित किया गया है। मोटे तौर पर इस वैज्ञानिक मिशन के चार मुख्य उद्देश्य हैं। पहला, बिग बैंग के बाद बनने वाले शुरुआती तारों और आकाशगंगाओं की खोज। दूसरा, तारों के चारों ओर के ग्रहों के परिवेश का अध्ययन। तीसरा, तारों और आकाशगंगाओं की उत्पत्ति को समझते हुए ब्रह्मांड की उत्पत्ति को सुलझाना। चौथा, जीवन की उत्पत्ति की गुत्थी को सुलझाना। वैज्ञानिकों को इस बात की पूरी उम्मीद है कि वह उक्त सभी मामलों में खरा उतरेगा और हमारे ज्ञान के क्षितिज को ऊपर उठाएगा।

[विज्ञान के जानकार]