नई दिल्ली, जेएनएन। चंद दिन पहले वित्त मंत्रलय का अतिरिक्त प्रभार संभालने वाले वित्त मंत्री पीयूष गोयल लोकसभा में लगभग 90 मिनट के अपने भाषण का जब समापन करने जा रहे थे तब सदन भाजपा सांसदों के ‘मोदी-मोदी’ के नारे से गूंज रहा था। इससे यही साबित हुआ कि यह कार्यवाहक वित्त मंत्री का नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अंतरिम बजट है। इसमें प्रधानमंत्री मोदी की पूरी छाप नजर आई। इसी के साथ यह भी नजर आया कि यह बजट आगामी लोकसभा चुनाव पर केंद्रित है।

कार्यवाहक वित्त मंत्री के भाषण का अधिकांश हिस्सा सरकार के पिछले पांच वर्षो की उपलब्धियों को गिनाने में गया। मुद्रा लोन से लेकर शौचालय और महिलाओं के लिए रसोई गैस कनेक्शन, राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण से लेकर मुद्रास्फीति की कम दर और स्वच्छ भारत से लेकर बिजली कनेक्शन तक की बातें हुईं। यह सब अपेक्षित भी था। अंतरिम बजट की सबसे उल्लेखनीय घोषणा छोटे और सीमांत किसानों को न्यूनतम आय उपलब्ध कराने वाली रही।

अगर इसे राजनीतिक तौर पर देखें तो यह राहुल गांधी की न्यूनतम आय गारंटी की योजना को सीधे-सीधे सरकार का जवाब है। हालांकि राहुल गांधी ने अपनी योजना का विवरण अभी तक नहीं दिया है। मोदी सरकार की यह योजना उन किसानों के लिए है जिनके पास दो हेक्टेयर या उससे कम खेती है। इन किसानों को सरकार साल में छह हजार रुपये देगी। यह पैसा साल में तीन किस्तों के जरिये सीधे किसानों के बैंक खाते में जाएगा।

गौरतलब यह है कि यह योजना एक दिसंबर, 2018 से लागू की जाएगी। सरकार का कहना है कि 31 मार्च, 2019 से पहले दो हजार रुपये की पहली किस्त किसानों को दे दी जाएगी। यानी यह किस्त लोकसभा चुनाव से पहले ही किसानों के खाते में पहुंचेगी। इसके लिए सरकार ने इस वित्त वर्ष के बजट में 20,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है।

अगर वर्ष 2015-2016 की कृषि जनगणना के आंकड़ों को देखें तो करीब 12.56 करोड़ परिवार सीमांत और छोटी किसानी के दायरे में आते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि छह हजार रुपये सालाना के हिसाब से इस योजना पर सरकार का कुल खर्च 75,000 करोड़ रुपये आएगा। प्रश्न यह है कि यह पैसा कहां से आएगा? अर्थशास्त्र में एक कहावत है कि ‘देयर इज नो फ्री लंच’। किसी न किसी को तो इसका खर्चा उठाना पड़ेगा। अमूमन ऐसा खर्चा भारतीय मध्य वर्ग ही उठाता है।

चूंकि एक तरह से यह विश्व की सबसे बड़ी आय समर्थन योजना होगी इसलिए यह भी देखना होगा कि भारत सरकार के पास इतनी बड़ी योजना चलाने की क्षमता है या नहीं? इस योजना के संदर्भ में एक प्रश्न यह भी उठता है कि इसके लिए कौन योग्य है और कौन नहीं? यह हिसाब लगाना आसान नहीं होगा। भारत के अधिकांश हिस्सों में खेतिहर जमीन के रिकॉर्डस कुछ खास विश्वसनीय नहीं हैं। इसके चलते इस पर निगाह रहेगी कि दो महीने से कम समय में सरकारी नौकरशाही इस योजना को किस तरह अंजाम देती है?

इस बजट की एक और बड़ी घोषणा अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए है। सरकार ने एक पेंशन योजना का एलान किया है। यह योजना उन लोगों के लिए है जो महीने में 15,000 रुपये या उससे कम कमाते हैं। इस योजना के तहत सरकार ऐसे लोगों को 60 साल की उम्र के बाद तीन हजार रुपये महीना पेंशन देगी। इसके लिए अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे व्यक्ति को इस योजना का हिस्सा बनकर हर महीने एक निश्चित योगदान देने की जरूरत है।

अगर 18 साल का कोई व्यक्ति इस योजना का हिस्सा बनता है तो उसे महीने में 55 रुपये इस योजना में डालने पड़ेंगे। सरकार भी अपनी तरफ से उतनी ही रकम डालेगी। ऊपरी तौर पर यह एक अच्छा इरादा है, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि सरकार यह कैसे पता करेगी कि किसी व्यक्ति की कमाई 15,000 रुपये है या उससे कम है? अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे ज्यादातर लोगों को भुगतान नकद में किया जाता है। इसके अलावा उनकी कमाई ऊपर-नीचे भी होती रहती है। ऐसा वेतनभोगी लोगों के साथ नहीं होता। स्पष्ट है कि व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही इस तरह की योजना को प्रारंभ करना उचित होगा।

2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट की परंपरा को तोड़ा और मध्य वर्ग की उम्मीदों को ध्यान में रखते हुए आयकर पर कुछ छूट दी। अगले वित्त वर्ष से पांच लाख रुपये तक कर योग्य आय वाले व्यक्तियों को इनकम टैक्स नहीं देना पड़ेगा। इस सबके बीच हम अगर सरकार की वित्तीय स्थिति देखें तो पाएंगे कि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 3.4 प्रतिशत रहा।

यह पहले के अनुमान 3.3 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा रहा। इसकी प्रमुख वजह यह रही कि साल की शुरुआत में सरकार का यह मानना था कि वह केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी से करीब 6.04 लाख करोड़ रुपये हासिल कर लेगी, लेकिन फिलहाल 5.04 लाख करोड़ रुपये की ही कमाई अपेक्षित है। जाहिर है कि यह चिंता का विषय है। ऐसे में अब यह बेहद जरूरी हो गया है कि वस्तु एवं सेवा कर की पूरी प्रणाली को और भी सरल बनाया जाए।

इस पर हैरानी नहीं कि बजट भाषण के अंत में वित्त मंत्री पूरी तरह चुनावी मोड में दिखे और उन्होंने मोदी सरकार के विजन 2030 की भी घोषणा कर डाली। इस विजन के तहत मोदी सरकार ने एक भारतीय को 2022 तक अंतरिक्ष में भेजने की तो बात की है, इसके अलावा देश को प्रदूषण मुक्त करने, पीने का साफ पानी उपलब्ध कराने, डिजिटल इंडिया पर जोर देने,भौतिक और सामाजिक ढांचे को मजबूत करने और मेक इन इंडिया कार्यक्रम के जरिये रोजगार निर्माण पर भी चर्चा की।

दरअसल, विजन 2030 के माध्यम से नए सिरे से अच्छे दिन जैसा माहौल बनाने की कोशिश की गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भी नरेंद्र मोदी ने इस देश को उम्मीद की किरण की दिखाई थी। उन्होंने रोजगार के पर्याप्त अवसर सृजित करने और ‘न्यूनतम सरकार एवं अधिकतम शासन’ के विचार को लागू करने का वादा किया था, लेकिन अब यह जगजाहिर है कि ये सब वायदे चुनावी जुमले ही अधिक निकले। इसमें संदेह नहीं अंतरिम बजट के जरिये एक बार फिर 2014 की तरह से उम्मीद जगाने की कोशिश की गई है। देखना यह है कि जनता दोबारा नरेंद्र मोदी की बातों पर विश्वास करती है या नहीं?

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(लेखक अर्थशास्त्री एवं इजी मनी ट्राइलॉजी के रचनाकार हैं)