डॉ. अजय खेमरिया। International Nurses Day 2020: कोरोना के कहर से कराहती दुनिया के दर्द को कम करने में चिकित्सकीय सेवा वर्ग के प्रति हम आज दंडवत मुद्रा में खड़े हैं। उनके सम्मान और उत्साहवर्धन के लिए उपकृत भाव से कभी करोड़ों लोग दीपक जलाते हैं, कभी ताली-थाली-घंटी बजाते हैं तो कभी सेना के विमानों के जरिये पुष्पवर्षा करवाते हैं। इन आकस्मिक दृश्यों के बीच कुछ सवाल नीतिगत विमर्श के केंद्र से गायब हैं, मसलन नर्सिग सेक्टर की विसंगतियां। जिस स्वास्थ्य सुविधाओं के बल पर दुनिया आज कोविड की भयावहता से मुकाबला कर रही है, उसका मेरुदंड यदि नर्सो को कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। स्वास्थ्य क्षेत्र का मेरुदंड कहने के लिए इस वर्ग की महत्ता को आंकड़े भी प्रमाणित करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड संकट के दौर में व्यापक संख्या में मरीज केवल नर्सो के सेवाभाव व समर्पण से ही स्वस्थ्य हुए हैं।

भारत में कुल चिकित्सकीय सेवा क्षेत्र का करीब 47 फीसद हिस्सा नर्सो का है, वहीं 23 फीसद डॉक्टर। इसके अलावा 5.5 प्रतिशत में डेंटिस्ट और 24.5 प्रतिशत में अन्य पैरामेडिकल स्टाफ शामिल हैं। खास बात यह भी है कि वैश्विक दृष्टि से नर्सो की यह भागीदारी 60 फीसद है यानी भारत के मुकाबले 13 फीसद अधिक। यह सही है कि सलाह और सर्जरी के बाद डॉक्टर अक्सर मरीज को नर्स के भरोसे पर छोड़ देते हैं। मरीज के स्वस्थ होने तक नर्स ही उपचार को अंजाम तक पहुंचाती हैं, लेकिन हमारे यहां इस भरोसेमंद कड़ी को कोई सामाजिक सम्मान नहीं है। न तो इन्हें पर्याप्त सुविधा ही दी गई है और न ही सेवा के अनुरूप प्रतिफल। भारतीय सेना में ट्रेनी नर्स के रूप में भर्ती होने वाली परिचारिका नायब सूबेदार से लेकर मेजर जनरल तक के पद पर प्रमोशन पाकर रिटायर होती हैं। दूसरी ओर सिविल अस्पतालों में 80 फीसद स्टाफ नर्स बगैर पदोन्नति के अल्प वेतन पर जीवन गुजारने को विवश हैं। नर्सिग का अध्ययन डिप्लोमा के आगे बीएससी, एमएससी, पीएचडी तक जाता है। एमबीबीएस पाठ्यक्रम का करीब 50 फीसद तक नर्सिग में पढ़ाया जाता है, लेकिन स्वास्थ्य क्षेत्र के इस मेरुदंड पर सरकार का कभी ध्यान नहीं गया।

वर्ष 2018 के आंकड़ों के अनुसार देश में 20 लाख नर्सो की जरूरत थी। वर्ष 2009 में इनकी संख्या 16.5 लाख थी जो 2015 में घटकर 15.6 लाख रह गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2030 तक विश्व में 60 लाख नर्सो की आवश्यकता होगी। भारत और फिलीपींस आज भी सर्वाधिक नर्स देने वाले देश हैं। यानी भारत स्वास्थ्य क्षेत्र की इस रीढ़ को कायम रखने वाला मुल्क है, लेकिन तथ्य यह है कि हमारे यहां इस सेवा का कोई एकीकृत ढांचा ही नहीं है। हर राज्य में नर्सिग सेवा शर्ते, वेतन भत्ते आदि अलग अलग हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, दिल्ली और हरियाणा में 20 हजार रुपये से कम वेतन पर संविदा में इनकी भर्तियां होती हैं। क्या यह वेतन सेवा के अनुपात में उचित कहा जा सकता है? उत्तराखंड में सरकार ने फार्मासिस्ट के समान वेतन करने के लिए कहा। मध्य प्रदेश में तीन अलग-अलग वेतनमानों पर इनकी भर्तियां होती हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, इटली और यूएई में नर्स 75 हजार से सवा लाख रुपये तक मासिक वेतन पर नियुक्ति पाती हैं। जाहिर है भारत में नर्सिग सेवा को सरकार ने खुद ही अपेक्षित प्राथमिकता नहीं दी है। भारत से हर साल करीब 20 हजार नर्स विदेश जाकर सेवाएं देती हैं। इनमें 60 फीसद तो केरल से होती हैं। अगर केरल की तरह अन्य राज्यों की नर्स भी अंग्रेजी में निपुण हों तो विदेश जाने वालों का यह आंकड़ा कई गुना अधिक हो सकता है। दुनिया की कुल 2.79 करोड़ नर्स में से 90 फीसद महिलाएं हैं। भारत में भी कमोबेश यही स्थिति है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड संकट के दौर में व्यापक संख्या में मरीज केवल नर्सो के सेवाभाव व समर्पण से ही स्वस्थ्य हुए हैं। ऐसे में सरकार के स्तर पर एकीकृत नर्सिग सेवा संवर्ग या मानक सेवा शर्तो का निर्धारण किया जाना आज वक्त की मांग है। एक तरफ सरकार महिलाओं के सशक्तीकरण की बात कहती है, लेकिन नर्सिग सेक्टर की करीब 90 फीसद महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण की तरफ कोई ध्यान नहीं है। कोविड संकट के बाद दुनिया का स्वास्थ्य क्षेत्र पूरी तरह बदलने वाला है, इसलिए भारत इस अवसर का लाभ भी उठा सकता है। इसके लिए हमें बुनियादी रूप से नर्सिग सेक्टर को एकीकृत रूप से पुन: खड़ा करना होगा। राष्ट्रीय नर्सिग सेवा शर्ते निर्धारित करने के साथ ही नर्सिग स्कूल्स की संख्या को भी बढ़ाना होगा। इन्वेस्टमेंट कमीशन ऑफ इंडिया के अनुसार इस सेक्टर में बड़े निवेश की आवश्यकता है, क्योंकि यह 12 फीसद की दर से बढ़ने वाला क्षेत्र है।

सरकार निजी क्षेत्र पर निर्भरता के स्थान पर खुद नर्सिग स्कूल्स का संचालन वैश्विक मांग के अनुरूप सुनिश्चित कर सकती है। न केवल भारत, बल्कि दुनिया में तेजी से इस सेवा क्षेत्र की मांग बढ़ेगी। अमेरिका में जहां 10 हजार लोगों पर 83 नर्स हैं, वहीं दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में यह औसत 8.7 है। जाहिर है भारत नए वैश्विक स्वास्थ्य जगत में एक बड़ा उद्धारक साबित हो सकता है। इसके लिए सरकारी स्तर पर एक स्थायी और समावेशी नर्सिग नीति की आवश्यकता है। हमें इस बात को संजीदगी से समझना होगा कि नर्सिग एक ऐसा पेशा है जो सदैव कायम रहेगा। जब तक इंसान रहेगा तब तक ऐसे लोगों की जरूरत पड़ती रहेगी, जो प्रेम और सहानुभूति के साथ पीड़ितों की सेवा कर सकें।

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