रोहित कौशिक। International Day for Biological Diversity: विश्वव्यापी लॉकडाउन के चलते जैवविविधता आज भले स्वस्थ दिखाई दे रही है, लेकिन यह सुधार अस्थायी है। औद्योगिक एवं मानवीय गतिविधियां जब पूरी तेजी से शुरू होंगी तो जैव विविधता पर इसका असर पहले की तरह ही पड़ेगा। वास्तविकता तो यही है कि जैव विविधता पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। जैव विविधता पर गहराता संकट पर्यावरण के साथ-साथ भाषा और संस्कृति को भी नष्ट कर रहा है।

अमेरिका की पेन स्टेट यूनिवर्सटिी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि पृथ्वी के जैव विविधताओं वाले उच्च क्षेत्रों में उच्च भाषाई विविधता भी होती है। यहां तक कि विश्व की 70 प्रतिशत भाषाएं उच्च जैव विविधता वाले स्थलों पर पाई जाती हैं। आंकड़े बताते हैं कि इन प्रमुख पर्यावरणीय क्षेत्रों में समय के साथ संस्कृति और भाषाओं के स्तर में गिरावट आई है। इस संबंध में शोध प्रमुख लैरी गोरेंफ्लो का कहना है कि उन्होंने भाषाई आंकड़ों के उपयोग से यह जानने का प्रयास किया कि भाषाओं और जैव विविधता का आपसी संबंध क्या है।

समृद्ध जैव विविधता के बिना हम पर्यावरण की रक्षा नहीं कर सकते हैं। दरअसल विकसित देश समय-समय पर पर्यावरण के मुद्दे पर अपनी हठधíमता का प्रदर्शन करते हैं। इसी वजह से पर्यावरण के विभिन्न मुद्दों पर कोई स्पष्ट नीति नहीं बन पाती है। दरअसल पर्यावरण की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। हालात यह हैं कि मौसम का समस्त चक्र भी अनियमित हो गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मौसम की यह अनिश्चितता और तापमान का उतार-चढ़ाव जैव विविधता के घटने और जलवायु परिवर्तन के कारण है।

जलवायु परिवर्तन के कारण एक ही ऋतु में किसी एक जगह पर ही मौसम में उतार-चढ़ाव या परिवर्तन हो सकता है। हमें यह मानना होगा कि जलवायु परिवर्तन की यह समस्या किसी एक शहर, राज्य या देश के सुधरने से हल होने वाली नहीं है। पर्यावरण की कोई ऐसी परिधि नहीं होती है कि एक जगह जैव विविधता के घटने, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन या प्रदूषण होने से उसका प्रभाव दूसरी जगह न पड़े। इसीलिए इस समय संपूर्ण विश्व में पर्यावरण के प्रति चिंता देखी जा रही है। हालांकि इस चिंता में खोखले आदर्शवाद से लिपटे हुए नारे भी शामिल हैं। जैवविविधता और जलवायु परिवर्तन पर होने वाले सम्मेलनों में हम सब ऐसे नारे सुनते रहते हैं।

सवाल यह है कि क्या खोखले आदर्शवाद से जलवायु परिवर्तन का मुद्दा हल हो सकता है? यह सही है कि ऐसे सम्मेलनों के माध्यम से विभिन्न बिंदुओं पर सार्थक चर्चा होती है और कई बार कुछ नई बातें भी निकलकर सामने आती हैं। लेकिन यदि विकसित देश एक ही लीक पर चलते हुए केवल अपने स्वार्थो को तरजीह देने लगें तो जलवायु परिवर्तन पर उनकी बड़ी-बड़ी बातें बेमानी लगने लगती हैं। जैव विविधता घटने के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन पर रोज नए-नए खुलासे हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर विकसित और विकासशील देशों की आपसी तनातनी के बीच पिछले दिनों हुए एक अध्ययन में पता चला है कि इस दौर में पिछले 11,300 वर्षो के मुकाबले धरती का तापमान सबसे अधिक है। तापमान बढ़ने की यह प्रक्रिया लगातार जारी है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि जैव विविधता घटने के कारण पृथ्वी लगातार गर्म हो रही है। धरती का तापमान बढ़ने के कारण ही अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड समेत कनाडा के ग्लेशियरों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इन ग्लशियरों के पिघलने से समुद्रों का जलस्तर बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस सदी के अंत तक इन ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्रों के जलस्तर में दो सेंटीमीटर की वृद्धि होगी।

पिछले दिनों विश्व बैंक ने भी चेतावनी दी थी कि यदि जलवायु परिवर्तन पर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो दुनिया से गरीबी कभी खत्म नहीं होगी। विश्व बैंक ने दुनिया की अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के संबंध में जारी रिपोर्ट में कहा था कि औद्योगिक प्रदूषण के कारण इस शताब्दी के अंत तक धरती का तापमान चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा जिससे भीषण गर्मी के साथ ही वैश्विक खाद्यान्न उत्पादन में भारी गिरावट और समुद्र का जल स्तर बढ़ने से करोड़ों लोग प्रभावित होंगे। तापमान में चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को हर कीमत पर रोकना होगा।

विकास के रास्ते में यह सबसे बड़ी चुनौती है। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से बांग्लादेश, मिस्न, वियतनाम और अफ्रीका के तटवर्ती क्षेत्रों में खाद्यान्न उत्पादन को तगड़ा झटका लगेगा, जबकि दुनिया के अन्य हिस्सों में सूखा कृषि उपज के लिए भारी तबाही मचाएगा। इससे दुनिया में कुपोषण के मामलों में वृद्धि होगी। इसके साथ ही उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तूफान और चक्रवातों का प्रकोप बढ़ेगा। ये समस्याएं दुनिया की गरीबी को कभी खत्म नहीं होने देंगी। रिपोर्ट में पर्यावरण प्रदूषण के कारण तापमान में वृद्धि के लिए घटती जैव विविधता और मानवीय गतिविधियों को ज्यादा जिम्मेदार ठहराया गया है।

[स्वतंत्र पत्रकार]