[ए. सूर्यप्रकाश]। हाल में नए संसद भवन की नींव रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में लोकतांत्रिक जड़ों पर प्रकाश डाला। ये जड़ें वर्ष 1215 में पेश हुए उस मैग्नाकार्टा से भी गहरी हैं जिसे इतिहास में लोगों को स्वतंत्रता प्रदान करने का आधार माना जाता है। इस संदर्भ में पीएम मोदी ने अनुभव मंटप जैसी लोक संसद का भी उल्लेख किया जो समाज के सभी वर्गों के लिए खुली थी। एक सदी पहले कर्नाटक में इसकी स्थापना विचारक-संत बसवेश्वर ने की थी। उनके समतावादी सिद्धांतों को कालांतर में कई देशों की जनप्रतिनिधि संस्थाओं ने अपनाया।  प्रधानमंत्री ने दसवीं शताब्दी के दौरान चोल साम्राज्य में प्रचलित मतदान प्रक्रिया पर भी प्रकाश डाला जिसके प्रमाण तमिलनाडु के कांचीपुरम से मिले हैं। उसमें प्रत्येक समुदाय को प्रतिनिधित्व प्राप्त था। उसमें प्रत्याशियों की एक प्रमुख अर्हता यही थी कि जो व्यक्ति अपनी संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा नहीं करेगा वह चुनाव में शामिल नहीं हो सकेगा।

प्रधानमंत्री ने प्राचीन भारत में प्रचलित संघ और सभा की व्यवस्था का भी जिक्र किया। ये अत्यंत प्रगतिशील लोकतांत्रिक परंपराएं थीं। दुनिया के दूसरे लोकतंत्रों के उलट भारत में चुनाव दर चुनाव मत प्रतिशत में बढ़ोतरी भी लोकतंत्र के साथ भारतीयों की सहजता- सक्रियता को दर्शाती है। भारत दुनिया का सबसे जीवंत और विशाल लोकतंत्र था। इस प्रकार भारत लोकतंत्र की जननी है। इन साक्ष्यों के आधार पर ही प्रधानमंत्री ने हैरानी जताई कि भारतीय लोकतंत्र को पश्चिमी नजरिये से क्यों देखा जाना चाहिए?

भारत को रखा 90वें स्थान पर

इससे यही प्रश्न उठता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिक पश्चिम के कुछ देशों को यह गुंजाइश क्यों देते हैं कि वे हमें लोकतंत्र पर भाषण दें जबकि उनके खुद के लोकतांत्रिक ढांचे में ही तमाम खामियां हैं। इस कड़ी में पश्चिम के कुछ एनजीओ और अकादमिक संस्थान भी बेसुरा राग छेड़ते हैं। ऐसा ही एक राग छेड़ा है स्वीडन की वैराइटीज ऑफ डेमोक्रेसी यानी वी-डेम नामक संस्था ने जो लोकतांत्रिक कसौटी पर देशों का कथित आकलन करती है। उसने हाल में भारत की लोकतांत्रिक रेटिंग घटाई है। हैरानी की बात यह है कि उसने भारत से ऊपर कई ऐसे देशों को जगह दी है, जो धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्र को धर्म से विलग रखने जैसे लोकतांत्रिक मानकों पर अत्यंत कमजोर हैं। इसमें भारत को 90वें स्थान पर रखा है जबकि डेनमार्क, स्वीडन, स्विट्जरलैंड और नॉर्वे जैसे देश बेहतरीन लोकतंत्र बताए गए हैं। यह धारणा उचित नहीं। इसे चुनौती देनी ही ही होगी।

एक मौलिक लोकतंत्र के हैं आठ प्रमुख लक्षण

दुनिया के दर्जनों लोकतांत्रिक देशों के संविधानों का मेरा निचोड़ यही कहता है कि एक मौलिक लोकतंत्र के आठ प्रमुख लक्षण होने चाहिए। पहला अभिव्यक्ति और अंत:करण की स्वतंत्रता का अधिकार। दूसरा धर्मनिरपेक्षता। तीसरा धर्म को राष्ट्र से विलग रखना। चौथा सरकार का गणतांत्रिक स्वरूप। पांचवां विधि के समक्ष समता का अधिकार। छठा लैंगिक समानता। सातवां प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण। और आठवां सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार। ये आठों तत्व भारतीय संविधान में गहराई से समाहित हैं।

हम सभी को अपने संविधान पर है गर्व

अब वी-डेम की रिपोर्ट में भारत से ऊपर देशों पर भी दृष्टि डाल लेते हैं। उसके अनुसार डेनमार्क सबसे बेहतरीन लोकतंत्र है। मगर क्या वाकई ऐसा है? उसके संविधान के अनुसार पवित्र बाइबल में उल्लिखित चर्च ही डेनमार्क का स्थापित चर्च होगा। साथ ही यह राज्य का दायित्व है कि वह डेनमार्क के चर्च की वित्तीय और अन्य तरीकों से मदद करे। ऐसे में डेनमार्क को भारत से ऊपर रखने वाले संस्थान को कुछ तथ्यों की गहन पड़ताल करनी चाहिए थी, क्योंकि वहां आधुनिक लोकतंत्र के आधारभूत तत्वों का अभाव है। उसका संविधान यही अपेक्षा करता है राज्य धर्म का पोषण करे। इसका अर्थ यही है कि भारतीय राज्य को हिंदू धर्म को वित्तीय और अन्य प्रकार से पोषित एवं प्रोत्साहित करना चाहिए। भारत में यह कतई स्वीकार्य नहीं होगा। इतना ही नहीं हमारे संविधान का अनुच्छेद 27 राज्य को किसी भी धर्म को प्रोत्साहन देने के लिए सरकारी खजाने से व्यय को प्रतिबंधित करता है और हम सभी को ऐसे संविधान पर गर्व है।

अर्जेंटीन जैसे देशों को इस सूची में भारत से रखा गया ऊपर

इस सूची में तीसरे स्थान पर रहा स्वीडन तो वास्तव में गणतंत्र ही नहीं है। उसके संविधान अनुसार राजा या रानी ही राष्ट्र प्रमुख होंगे। वहीं हमारा संविधान हमें राष्ट्र प्रमुख के चुनाव की गुंजाइश देता है। हम राजशाही नहीं हैं। स्वीडिश संविधान के अनुसार राजा या रानी पर किसी भी स्थिति में मुकदमा नहीं चल सकता। यानी वहां विधि के समक्ष समता वाली स्थिति ही नहीं है, जो हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 में है। स्वीडन धार्मिक शुद्धता का भी समर्थक है और वहां राजकुमार या राजकुमारी स्वेच्छा से विवाह तक नहीं कर सकते। उन्हें सरकारी स्वीकृति लेनी पड़ती है। इस प्रकार स्वीडन न तो गणतंत्र है और न ही धर्मनिरपेक्ष, क्योंकि राष्ट्रप्रमुख की निष्ठा चर्च के प्रति है और शाही खानदान भी अंत:करण की स्वतंत्रता से वंचित है। विधि के समक्ष समता नहीं है। इसके अतिरिक्त ईसाई सिद्धांतों पर गठित पापुआ न्यू गिनी और रोमन कैथोलिक धर्म को संरक्षण देने वाले अर्जेंटीना जैसे देशों को भी इस सूची में भारत से ऊपर जगह दी गई है। इतने पर भी वी-डेम चाहता है कि हम इन देशों को आदर्श लोकतंत्र के रूप में स्वीकारें। भारत यह कभी स्वीकार नहीं करेगा।

सेक्यूलर जैसे आदर्श हमारे संविधान की प्रस्तावना में हैं शामिल 

भारत न केवल एक सेक्युलर और लोकतांत्रिक देश है, बल्कि दुनिया का सबसे विविधतापूर्ण एवं जीवंत राष्ट्र भी है। सेक्युलर जैसे आदर्श हमारे संविधान की प्रस्तावना में शामिल हैं। यह 122 भाषाएं और 170 बोलियां बोलने वाले विभिन्न धार्मिक मान्यताओं वाले लोगों का देश है। ऐसे में जो भारत को गिरा रहे हैं, वे वास्तव में खुद ही लोकतंत्र का अवमूल्यन करने में जुटे हैं। लोकतंत्र की ऐसी मनमानी पश्चिमी अवधारणाओं को चुनौती देकर उन पर प्रहार की दरकार है। भारत को समवेत स्वर में प्रतिरोध करना होगा कि वे हमें लोकतंत्र पर भाषण न दें और उससे पहले अपने नस्लीय और सांप्रदायिक दुराग्रहों पर गौर करें।

हमें अब नेहरू के दौर वाली चुप्पी तोड़कर मुखर होकर लोकतंत्र पर विमर्श की कमान संभालनी होगी। भारत की कहानी इसी धुरी पर आगे बढ़े और विदेश मंत्रालय को इसे हमारी सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभारना होगा। साथ ही जब भी भारत को लोकतंत्र पर भाषण दिया जाए तो हम फर्जी लोकतंत्रों को आईना भी दिखाएं। तभी भारत को लोकतंत्र की जननी मानने वाली प्रधानमंत्री की दृष्टि को स्वीकार्यता मिलेगी।

(लेखक लोकतांत्रिक विषयों के जानकार और वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

[लेखक के निजी विचार हैं]