[तसलीमा नसरीन]। मैं 1988 या 89 में कश्मीर घूमने गई थी। उस साल के अंत तक घाटी में हिंसा शुरू हो चुकी थी। तब कुछ दिन डल झील में एक हाउसबोट में बिताए थे। हाउसबोट में शमीम नाम का एक लड़का काम करता था। सर्दियों के दिन थे तब। ठंड से बचने के लिए शमीम फिरन के अंदर छोटी अंगीठी-कांगड़ी लेकर चलता था। बख्शीश मिलने से शमीम खूब खुश होता था। तब मैंने शमीम जैसे कई कश्मीरी युवकों को देखा जो गरीबी में डूबे हुए थे।

कश्मीर में प्राकृतिक सुंदरता थी, लेकिन अधिकतर घरों, दुकानों और रास्तों पर मलिनता देखी। हर तरफ सुंदर लड़कियों के चेहरे थे, लेकिन उनके चेहरों से मुस्कान गायब दिखती। माहौल में अशांति की गंध बढ़ रही थी। कश्मीर में अनगिनत धर्म, वर्ण और जाति के लोग देश देशांतर से आए और बसे।

कश्मीर में इस्लाम का बढ़ा प्रभाव
पांचवीं शताब्दी में कश्मीर पहले हिंदू धर्म, फिर बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र रहा। यहीं से बौद्ध धर्म लद्दाख होते हुए चीन पहुंचा। नौवीं शताब्दी में यहां से दूरदूर तक शैववाद का विस्तार हुआ। 11वीं से 15वीं शताब्दी के बीच कश्मीर में इस्लाम का प्रभाव बढ़ा, हालांकि उससे पुराने धर्मों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, बल्कि पुराने धर्मों ने नवीन इस्लाम के साथ समन्वय स्थापित किया। कई लोगों को मानना है कि कश्मीरी सूफीवाद का उद्भव इसी समन्वय का नतीजा था।

आज कश्मीर का एक हिस्सा भारत के पास, एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में जबकि बाकी हिस्सा चीन के कब्जे में है। कश्मीर के लिए जो छीनाझपटी शुरू हुई, वह आज तक खत्म नहीं हुई। सर्वधर्म मिलन स्थल होने के बावजूद कश्मीर में 1990 में मुसलमानों ने सैकड़ों हिंदुओं (कश्मीरी पंडितों) का कत्लेआम किया। लाखों को भगा दिया। मुसलमान अब कश्मीर में अकेले रहना चाहते हैं। क्या कश्मीर कभी अकेले मुसलमानों का रहा है?

कश्मीर को पूरी तरह से अपने में समाहित किया गया 
इस साल अमरनाथ तीर्थयात्रा को सरकार ने अचानक स्थगित करने की घोषणा कर दी और फिर कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया। देश बंटवारे के बाद भारतीय हिस्से वाले कश्मीर को मिले कुछ विशेषाधिकारों को हटाकर कश्मीर को पूरी तरह से अपने में समाहित कर लिया गया।

अनुच्छेद 370 अस्थाई था, लेकिन यह अस्थाई व्यवस्था 70 साल तक टिक गई। इस बीच यहां पाकिस्तान से आतंकियों का आना जारी रहा। वे अलगाववादी युवाओं के दिमाग में भारत विरोध का विचार भरते रहे और और उन्हें आतंकी बनाते रहे।

मोदी सरकार की लोकप्रियता फिलहाल शिखर पर
अब तो कश्मीर में ही आतंकी पैदा हो रहे हैं। पुलवामा में हुए आतंकी हमले में कश्मीरी युवक का ही हाथ था। अनुच्छेद 370 हटने के बाद मोदी सरकार की लोकप्रियता फिलहाल शिखर पर है, किंतु कश्मीर के मुसलमान इससे चिंतित हैं कि अब कश्मीर कश्मीरी मुसलमानों का नहीं रहेगा। कश्मीर को भारत में मिलाने के फैसले के बाद मानवाधिकारों के लिए संघर्षरत लोग बहुत नाराज हैं। कश्मीर में नेताओं को नजरबंद करना, इंटरनेट एवं फोन बंद रखना, कर्फ्यू लगाना, स्कूल-कालेज, बाजार सब बंद कर देना... क्या इस तरह से कोई नियम बदलता है?

चर्चा करने से अनुच्छेद 370 हटाना संभव नहीं था
कश्मीर का एक-एक नेता कश्मीर को बेचकर खा रहा था, सभी आलीशान जिंदगी जीते थे। वे कभी नहीं चाहते थे कि कश्मीर को मिला यह अस्थाई विशेषाधिकार हटे। कश्मीरी पंडितों में से कई का मानना है कि स्थानीय लोगों से बातचीत किए बिना केंद्र सरकार ने जिस तरह जम्मू-कश्मीर के संवैधानिक अधिकारों में एकतरफा हस्तक्षेप किया वह ठीक नहीं, लेकिन शायद चर्चा करने से इस अस्थाई अनुच्छेद 370 को हटाना कभी संभव नहीं होता।

पहले ही तीन तलाक को प्रतिबंधित किया गया
भारत में सती प्रथा का समापन हुआ, विधवा विवाह की शुरुआत हुई, इसके लिए किसी का समर्थन नहीं लिया गया। कुछ अच्छे काम ऐसे होते हैं, जिन्हें बस कर देना चाहिए। कुछ दिन पहले ही तीन तलाक को प्रतिबंधित किया गया। दुनिया के लगभग सभी मुस्लिम देशों में इस कानून पर रोक है, लेकिन मुसलमानों के वोट के लिए अधिकांश लोग तीन तलाक के पक्ष में थे। बड़े-बड़े शिक्षित मुसलमान नेता भी तीन तलाक पर प्रतिबंध नहीं चाहते थे। वे समान नागरिक कानून भी नहीं चाहते। कश्मीर में नया कानून आने से कश्मीर की क्या क्षति हुई?गैर-कश्मीरी अब कश्मीरियों से जमीन खरीद सकेंगे, इसे छोड़ मुझे कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगता।

कश्मीरियों के विशेषाधिकार
कश्मीरियों का कश्मीर में ही रहना जरूरी क्यों है? क्या कश्मीर के लोग भारत के अन्य इलाकों में नहीं रहते? रहते हैं। भारत के किसी भी स्कूल या कालेज में कश्मीर के बच्चों को पढ़ने का अधिकार है, किसी भी जगह नौकरी करने और कारोबार करने का अधिकार है। अनुच्छेद 370 हटने से पहले क्या कश्मीर ऐसा स्वर्ग था, जहां खूब सुखशांति थी और अब वह लुप्त हो गई है?

भारतीय कश्मीर में कई लोग भारत में रहना चाहते हैं, कुछ पाकिस्तान के साथ जाना चाहते हैं जबकि कुछ स्वतंत्र कश्मीर का सपना देख रहे हैं। इन तीन इच्छाओं में से एक को प्राथमिकता देना ही इस समस्या का हल है। भारत क्यों अपने कश्मीर को पाकिस्तान के साथ जाने देगा?

अन्य सीमावर्ती राज्यों में उठ सकती थी मांग
कश्मीर के अलग होने से संभवत: भारत के अन्य सीमावर्ती राज्य मिजोरम, नगालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय और असम भी अलग होने की चेष्टा कर सकते हैं। एक बड़े देश को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए जो करना चाहिए, भारत वही कर रहा है। 1947 की भूल भारत फिर नहीं दोहराना चाहता। क्या भारत 1947 के टुकड़े-टुकड़े गैंग को हावी होने देगा? कभी नहीं। 

पाकिस्तान आगबबूला है। वह मुस्लिम-मुस्लिम भाई-भाई की राजनीति को आगे बढ़ाने की कुचेष्टा में लगा है। कश्मीर सिर्फ पाकिस्तान का है, पाकिस्तान के आम लोग आज तक यही मानते आए हैं। वह अब यह दुष्प्रचार कर रहा है कि भारत अब पीओके की तरफ कदम बढ़ा रहा है, लेकिन चीन को छोड़कर उसका यह राग कौन सुनेगा? 

कश्मीरियों के चेहरों पर फिर से मुस्कान बिखरेगी
आर्थिक और राजनीतिक स्वार्थ से इतर कौन किसकी मदद करता है? कश्मीर में कुछ भी अप्रिय घटने से मेरे जेहन में अक्सर शमीम का ख्याल आता है। कैसा होगा वह? आशा करती हूं कि कश्मीर को लेकर भारत-पाक में विवाद खत्म होगा। दोनों देश मित्रवत होंगे और कश्मीर से अनिश्चितता, असुरक्षा, दरिद्रता दूर होगी। कश्मीरी लड़कियों के चेहरे पर फिर से मुस्कान बिखरेगी। शांति स्थापित करने की क्षमता मनुष्यों में ही होती है।

 
(लेखिका प्रख्यात साहित्यकार हैं)

इसे भी पढ़ें: लाल चौक में बजी फोन की घंटी; व्यापारियों को मिली बड़ी राहत, जानें- घाटी के मौजूदा हालात

इसे भी पढ़ें: केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहले जम्मू-कश्मीर में होगी विकास की बयार, सरकार ने तैयार किया ये मेगा प्लान